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UP Election 2022 : चुनाव परिणामों में छुपा रुस्तम न साबित हो जाए बसपा !
Up Election 2022 : इस बार सीधा मुकाबला सत्ताधारी भाजपा (Bjp) और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi party) को कहा जा रहा है।
UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh vidhansabha election) में इस बार सीधा मुकाबला सत्ताधारी भाजपा (Bjp) और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi party) को कहा जा रहा है। जबकि कांग्रेस (Congress) कौर बसपा (Bsp) को मुख्य मुकाबले से बाहर माना जा रहा है लेकिन यूपी (Up) में हमेशा बसपा छुपा रुस्तम साबित हुई है। इस बार के विधानसभा चुनाव में बसपा को ब्राम्हणों (Bsp ko brahmano ka sahara) का सहारा है। इसलिए उसके नेता लगातार ब्राम्हण उत्पीडन का आरोप भाजपा सरकार (Bjp government) पर लगा रहे हैं। विकास दुबे कांड (Vikash Dubey hatyakand) के बाद भाजपा ब्राम्हणों के उत्पीडन को लेकर घिरती आई है। वहीं बसपा अपने आप को ब्राम्हणों का सबसे बडा हितैषी होने का दावा कर रही है। चर्चा है कि इस बार भी मायावती 2007 के फार्मूले के तहत लगभग 100 ब्राम्हणों को उम्मीदवार बनाने जा रही है। बसपा के इस फार्मूले का उपयोग अब अन्य दल भी कर रहे हैं।
बसपा के 41 ब्राह्मण विधायक जीत कर आए
बसपा ने वर्ष 2007 में 89 दलित उम्मीदवार उतारे और दूसरे नंबर पर 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया। इस चुनाव में बसपा के 41 ब्राह्मण विधायक जीत कर आए। वर्ष 2007 में ही बसपा ने अपने दम पर सरकार बनाई। उस समय बसपा का वोटिंग प्रतिशत 30.43 फीसदी था और सीटें 206 मिली थीं। इस बार 100 के करीब ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारने की योजना पर काम चल रहा है। जब 2012 में वह सत्ता से बाहर हुई तो वोट प्रतिशत मात्र 5.14 प्रतिशत घटा जबकि सीटे घटकर 80 हो गयी। कुल मिलाकर बसपा को थोडा सा वोट बैंक खिसकने से 125 सीटे उसके हाथ से निकल गयी। इससे पूर्व 2002 में 23.19 और सीटे 98 मिली जबकि पूर्व में 1996 में कांग्रेस के साथ गठबन्धन में 19.64 तथा सीटों की संख्या 67 थी।
गठबंधन में सीधा लाभ एसपी को हुआ
पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में जब उसका सपा से गठबन्धन हुआ तो कहा गया कि इसका सीधा लाभ समाजवादी पार्टी को मिलने जा रहा है पर इसका उल्टा हुआ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल के गठबन्धन में तीन सीटों पर उतरे राष्ट्रीय लोकदल का खाता भी नहीं खुल सका। जबकि समाजवादी पार्टी पांच पर ही रह गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल न कर पाने वाली बसपा दस सीटों पर पहुंच गई।
बसपा की यह सोशल इंजीनियरिंग कामयाब होती नहीं दिख रही
साल 2007 के चुनाव में उतरने के लिए बसपा ने एक साल पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई थी। उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में दौरा करने का पर्याप्त मौका दिया। उस समय राजनीतिक पंडितों को शुरुआत में बसपा की यह सोशल इंजीनियरिंग कामयाब होती नहीं दिख रही थी, लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तो सब चौंकने को मजबूर हुए।
आने वाले चुनाव में वेस्ट यूपी में सियासी तस्वीर अलग हो सकती है। वेस्ट यूपी में दलित, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग (जाट) की एकता आंकड़ों में भाजपा को 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में मिले मतों से काफी भारी है। दलितों पर बसपा पिछड़ों (जाटों) पर रालोद और भाजपा, मुस्लिमों पर सपा बसपा, रालोद और कांग्रेस का दावा है।
बसपा सुप्रीमो ने इतना ही नहीं यह भी साफ किया कि इस बार वह पार्क व स्मारक नहीं बनवाएंगी। यह काम पूरा हो चुका है। उनका अब पूरा ध्यान प्रदेश के विकास पर केंद्रित होगा। इसका मतलब साफ है, वह यह बताना चाहती हैं कि अब वह सर्व समाज के लिए काम करेंगी।
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