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UP Election 2022 : पश्चिम यूपी में किसका खेल बनाएंगे, किसका खेल बिगाड़ेंगे दलित मतदाता

Up Election 2022: विधानसभा चुनाव के पहले दौर में जाटो और किसानों के वोट बैंक को लेकर सारे दल अपनी ताकत लगा रहे हैं।

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Report NetworkPublished By Ragini Sinha
Published on: 5 Feb 2022 5:46 AM GMT
UP Election 2022 : पश्चिम यूपी में किसका खेल बनाएंगे, किसका खेल बिगाड़ेंगे दलित मतदाता
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UP Election 2022 : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले दौर में जहां जाटो और किसानों के वोट बैंक को लेकर सारे दल अपनी ताकत लगा रहे हैं। वहीं, दलित वोटों की चुप्पी कोई बड़ा सियासी गुल खिला सकती है। इस पूरे क्षेत्र में दलितों की आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है जो किसी भी दल की किस्मत बदलने की ताकत रखती है।

पश्चिमी यूपी में जाटव, खटिक , भुइयार, पासी, वाल्मीकि जैसी अनुसूचित वर्ग की बिरादरियां हैं, पर इनमें पचास प्रतिशत से अधिक वोटर जाटवों का माना जाता है। वाल्मीकि, भुइयार बिरादरियों पर भाजपा का कब्जा रहा है। ऐसे में इस बार निशाने पर जाटव हैं। इसके पहले के चुनावों इस बडे वोट बैंक को बसपा अपनी ओर खीचती रही है। पर इस बार यह वोट बैंक किस तरफ करवट बदलता है यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही तय होगा। वर्ष 1993 में बसपा चुनावी मैदान में पहली बार उतरी। इस चुनाव में उसकी मतों में हिस्सेदारी 11.12 प्रतिशत की थी। बसपा ने 67 सीटों पर जीत हासिल की थी।

बसपा को 30.43 फीसदी वोट मिले थे

1996 के चुनाव में वोट शेयर बढ़कर 19.64 प्रतिषत हो गया। 2002 में मतों की हिस्सेदारी 23.06 प्रतिशत तक पहुंची और 98 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई। इसके बाद वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियिरिंग के चलते बसपा अपने दम पर सरकार में आई। जब बसपा को 30.43 फीसदी वोट मिले और 206 सीटों के साथ उसने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल की। लेकिन 2012 के चुनाव में उसका सियासी गणित गड़बड़ा गया और इसका लाभ सपा को मिला। लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से यहां भाजपा ने अपने झंडे गाड़नेे षुरू किए।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सियासी फिजां के चलते उसे बड़ी सफलता मिली थी। पर इस बार किसान आंदोलन के जरिए सारा गणित बिगडा दिख रहा है। इस लिए भाजपा के सारे नेता नरेन्द्र मोदी अमित षाह और योगी आदित्यनाथ के अलावा अन्य सभी पूरी ताकत से इस पूरे क्षेत्र में जुटे हुए हैं।

गठबंधन और भाजपा दोनों की ही नजर दलित मतदाताओं पर

सपा- रालोद गठबन्धन के नेताओं अखिलेश और जयंत ने अपना पूरा डेरा वही डाल रखा है। जबकि बसपा और कांग्रेस दोनों चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। गठबंधन और भाजपा दोनों की ही नजर दलित मतदाताओं पर है।

हिन्दू वोटों में ब्राम्हण पंजाजी वैश्य, पाल, बघेल, यादव, कोरी, कश्यप, जाट, गुर्जर जातियां है। इस बेल्ट में 21 प्रतिषत के आसपास दलित है। 13 प्रतिषत यादव, 5 प्रतिशत कुर्मी, 17 प्रतिशत जाटव, 15 प्रतिशत ब्राम्हण,13 प्रतिशत ठाकुर, 19,3 प्रतिशत मुसलमान तथा 19, 7 प्रतिशत अन्य जातियां है।सहारनपुर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर आदि जिलों में भी दलित मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है।

एक अनुमान के अनुसार स्याना में 57 हजार, सिकंदराबाद में 70 हजार, अनूपशहर में 70 हजार, शिकारपुर में 62 हजार, खुर्जा में 58 हजार, डिबाई में 30 हजार, बुलंदशहर में 60 हजार, मुरादनगर में 80 हजार, मोदीनगर में 55 हजार, साहिबाबाद में 80 हजार, गाजियाबाद में 75 हजार, सिवालखास में 40 हजार,सरधना में 52 हजार, हस्तिनापुर में 71 हजार, किठौर में 65 हजार, मेरठ कैंट में 65 हजार, मेरठ शहर में 13 हजार, मेरठ दक्षिण में 75 हजार, आगरा, एत्मादपुर में 70 हजार, आगरा छावनी में 95 हजार, आगरा दक्षिण में 40 हजार, आगरा उत्तर में 45 हजार, आगरा ग्रामीण में 80 हजार, फतेहपुर सीकरी में 60 हजार, खैरागढ़ में 40 हजार, बाह में 35 हजार, बुढ़ाना में 32 हजार,चरथावल में 55 हजार, खतौली में 47 हजार, मीरापुर में 53 हजार, मुजफ्फरनगर में 22 हजार, पुरकाजी में 75 हजार, शामली में 35 हजार तथा थानाभवन में 60 हजार दलित मतदाता किसी का भी खेल बिगाडने की ताकत रखते हैं।







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