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UP Electon 2022: पिता की राह पर RLD के जयंत चौधरी, तलाश रहे हैं गठबन्धन के नए रास्ते
UP Electon 2022: रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की प्रियंका गांधी से मुलाकात और उनके साथ हवाई सफर करना कई सियासी संकेत दे रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का भी यह मानना है कि रालोद का यदि कांग्रेस से गठजोड होता है तो वो उसके लिए ज्यादा लाभकारी होगा।
UP Electon 2022: राजनीति के क्षेत्र में कहा जाता है कि न तो कोई स्थाई मित्र होता और न ही कोई स्थायी शत्रु होता है। यही कारण है कि 2022 के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) के पहले राजनीतिक दलों में गठबन्धनों की हवा तेज होती जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) और लोकसभा चुनाव (Lokshaba Election) के अलावा उपचुनावों में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के साथ चल रहा रालोद फिर से नई तलाश में है। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी (RLD President Jayant Choudhary) का भले ही सपा से गठबन्धन हो पर हाल ही में उनकी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ( Priyanka Gandhi) से बढ़ती नज़दीकियों कई तरह के सवाल खडे हो रहे हैं। हाल ही में जयंत चौधरी की प्रियंका गांधी से मुलाकात और उनके साथ हवाई सफर करना कई सियासी संकेत दे रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का भी यह मानना है कि रालोद का यदि कांग्रेस से गठजोड होता है तो वो उसके लिए ज्यादा लाभकारी होगा। क्योंकि इस पूरे क्षेत्र जाट और मुस्लिम गठजोड प्रभावी है। किसान आंदोलन के बाद जाट एक बार फिर रालोद की तरफ लौटता दिख रहा है। साथ ही कांग्रेस की भी मुसलमानों मे स्थिति मजबूत हुई है। इसलिए कहा जा रहा है कि जयंत चौधरी अखिलेश यादव का साथ छोडकर कांग्रेस से कदम ताल कर सकते हैं।
रालोद के अतीत पर यदि गौर करें तो 2012 विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में राष्ट्रीय लोकदल (RJD) का गठबन्धन कांग्रेस के साथ था । लेकिन इसका लाभ उसे नहीं मिल पाया। उसे केवल 9 सीटे ही हासिल हो सकी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उसका पत्ता साफ ही रहा। जिसके बाद रालोद अध्यक्ष अजित सिंह किसी नए विकल्प की तलाश में लगातार रहे। इसके पहले 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में चौ अजित सिंह का भाजपा के साथ गठबन्धन हुआ था। भाजपा ने उनके लिए 9 सीटे छोड़ी थी जिसमें 5 पर रालोद को विजय मिली। लेकिन चुनाव बाद वह मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बन गए।
लोकसभा का जब 1991 में चुनाव हुआ तो छोटे चौधरी परम्परागत विरोधी पार्टी कांग्रेस के साथ हो लिए और केन्द्र में मंत्री बन गए। जबकि इसके पहले वह कांग्रेस के विरोध में ही जनता दल मे थे। जनता दल-भाजपा की सरकार में शामिल होकर मंत्री बने थे। 1996 में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडे़ और जब राव सरकार सत्ता से बाहर हो गयी तो उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन करके मुलायम सिंह यादव के साथ चुनावी गठबन्धन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा।
जब यह गठबन्धन सरकार नहीं बना पाया तो 1999 में चौ अजित सिंह का कांग्रेस प्रेम एकबार फिर परवान चढ़ा। उन्होंने कांग्रेस से दोस्ती कर चुनाव तो लड़ा । लेकिन जब केन्द्र में भाजपा की सरकार बन गयी तो वह भाजपा के साथ हो लिए और केन्द्र में मंत्री बन बैठे। साल 2002 में जब यूपी में विधानसभा का चुनाव हुआ तो उन्होंने यह चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। लेकिन मायावती की सरकार गिरने पर जब यूपी में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो उनकी पार्टी इस सरकार में सत्ता की भागीदार बन बैठी। चौ अजित सिंह की बसपा से भी दोस्ती रही। लेकिन इस बारे में चौ अजित सिंह बराबर सफाई देते रहे कि केन्द्र में अटल सरकार के साथ होने के कारण ही वह यूपी में भाजपा बसपा गठबन्धन में साझीदार हैं। वह इस सरकार में 2002 से 2003 तक साथ रहे। 2004 का लोकसभा चुनाव सपा से मिलकर लड़ा । लेकिन जब विधानसभा चुनाव 2007 नजदीक आए तो उन्हे सपा बुरी लगने लगी।
सपा से अलग होकर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़े। फिर 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हमराही हो गए। 1986 में जब चौ अजित सिंह राजनीति में आए तो वह सीधे राज्यसभा में दाखिल हो गए। इसके बाद उन्होंने लोकदल (अ) का गठन किया। 1988 में उन्होंने अपने दल का जनता पार्टी में विलय कर पार्टी के अध्यक्ष हो गए। 1989 में जब जनता दल बना तो उन्होंने अपनी पार्टी का इसमें विलय कर दिया और इसके महासचिव हो गए। जब इसी साल वीपी सिंह की सरकार बनी तो वह इसमें शामिल होकर केन्द्र में मंत्री बन गए। फिर जब कांग्रेस की सरकार बनी तो वह फिर केन्द्र में मंत्री बन गए। 1996 में कांग्रेसी विरोधी लहर देखकर वह काग्रेस से अलग हो गए। उन्होंने भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन कर लिया। लेकिन 1998 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर लिया।
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