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UP Me Kisan Andolan: हर सरकार में हुए किसान आंदोलन, सबसे अधिक मायावती सरकार में
कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन बढ़ता जा रहा
UP Me Kisan Andolan: पिछले एक साल से कृषि बिलों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन (Kisan Andolan) को लेकर कितनी ही बार किसानों का केंद्र और प्रदेश सरकार से टकराव हो चुका है, कितने निरपराध लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। पर अब तक कोई बीच का रास्ता निकलता नजर नहीं आ रहा है। जबकि कई बार दोनों के बीच बातचीत का दौर चल चुका है। पंजाब और दिल्ली से निकला यह आंदोलन अब चुनाव वाले राज्यों खास तौर पर यूपी और उत्तराखंड पहुंच चुका है।
यह पहला मौका नहीं है जब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में किसी सरकार को किसानों के आंदोलन (Kisan Death In Kisan Andolan) का सामना करना पड़ा हो। हर सरकार में किसानों की नाराजगी झेलने के कई मौके आ चुके हैं। जिसमें किसानों की मौत (Kisanon Ki Muat)हुई तो पुलिस कर्मी और बेगुनाहों को भी जान से हाथ धोना पड़ा है। उत्तर प्रदेश में जब पहली बार कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार 1991 में बनी तो कुशीनगर के रामकोला में गन्ना किसानों के उग्र आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पडी थी। जिसमें दो किसानों को अपनी जान से हाथ धोना पडा था।
मायावती की 2007 (Mayawati Sarkar) वाली सरकार में किसानों का बडा आंदोलन भटटा परसौल में हुआ। यमुना एक्सप्रेस वे का निर्माण होना था और किसान अपनी जमीन का मुआवजा मांग रहे थें। इस आंदोलन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किसानों का भरपूर साथ दिया। पुलिस की जबर्दस्त घेराबंदी को तोडते हुए वह मोटरसाइकिल से घटना स्थल पर पहुंच गए थें।
बसपा की इस सरकार में किसानों के कई आंदोलन हुए तब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और उनके सहयोगी राजबब्बर ने किसानों के इस आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। इसी सरकार के दौरान दादरी में एक बडा आंदोलन हुआ। इसमें पुलिस फायरिंग में दो किसानों की मौत हो गयी। अगले साल यानी 2010 फिर टप्पल में टाउनशिप के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों का बड़ा आंदोलन हुआ। टप्पल आंदोलन के बाद भी प्रदेश सरकार ने किसानों का मुआवजा बढ़ा दिया था।
मायावती की 2007 वाली सरकार में भट्टा परसौल में हुए किसान आंदोलन में संघर्ष में तीन पुलिसकर्मी और तीन किसान मारे गए थे। बाद में प्रदेश सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए टप्पल टाउनशिप को योजना ही रद्द कर दी थी।
इसके अलावा आगरा के जलेसर में भी टाउनशिप के विरोध में और मुआवजा बढ़ानें की मांग को लेकर एक बडा आंदोलन हुआ था। इससे पहले वर्ष 2010 में ही इलाहाबाद के करछना इलाके में किसानों का एक आंदोलन इस बात पर हुआ क्योंकि राज्य सरकार यहां निजी क्षेत्र लग रहे बिजलीघर के लिए जमीन अधिग्रहण करना चाह रही थी। इसमें एक किसान को अपनी जान से हाथ धोना पडा था।