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Rae Bareli News: बैसवारे की धरती से ''बा'' संग गांधी ने फूंका आजादी का बिगुल
Rae Bareli News: आज भी लालगंज के गांधी चबूतरा से महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के सभा का प्रमाण मिलता है। यहीं से उन्होंने आजादी का बिगुल फूंका था।
Rae Bareli News: त्याग और समर्पण का भाव बैसवारे के कण कण में रचा-बसा है। इसी धरती पर राना बेनी माधव बख्श सिंह ने अंग्रेजों को धूल चटाई थी। यही वजह है कि आजादी की लड़ाई में अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने बैसवारे (Baiswara) को चुना। बछरावां (Bachhrawan) के साथ लालगंज (Lalganj) में जनसभा की। यहां की सभा में पत्नी कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) भी मौजूद थीं। आज भी लालगंज के गांधी चबूतरा से उनके सभा का प्रमाण मिलता है। यहीं से उन्होंने आजादी का बिगुल फूंका था। नमक सत्याग्रह (Namak Satyagraha) , झंडा सत्याग्रह (Flag Satyagraha) हो या फिर पूर्ण स्वराज आंदोलन (Swaraj Movement), जिले के लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। बापू के आने के बाद लोगों में ऐसा जोश भरा कि यहां पर सबसे सफल आंदोलन हुआ।
1925 में साधारण धोती और कुर्ता पहनकर पहुंचे गांधीजी को सुनने और देखने के लिए आसपास के जिलों से लोग आए। वे इलाहाबाद से प्रतापगढ़ होते हुए लखनऊ की ओर जा रहे थे। दोबारा 1929 में आए। लालगंज में जिले की जनता ने हाथों-हाथ लिया था। सभा स्थल पर ही चबूतरा बनाया, जिसका नाम गांधी चबूतरा रखा गया।
आजादी की लड़ाई का जुनून, महिलाओं ने दे दिए थे आभूषण
7 जनवरी, 1921 किसान आंदोलन (Kisan andolan) में हुए गोलीकांड के बाद जिले की धरती पर आजादी की लड़ाई तेज हो गई थी। यही वजह रही कि गांधीजी ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए हर आंदोलन को रायबरेली (Rae Bareli) से जोड़ा। यहां पर सहयोग भी मिला। गांधी जी को ग्रामीणों ने आर्थिक मजबूती प्रदान करते हुए 1857 रुपये की थैली प्रदान की थी। इस जनसभा में बापू के साथ कस्तूरबा गांधी भी थीं। आजादी की लड़ाई में कोई आर्थिक कमी न होने पाए, इसके लिए कस्तूरबा को रायबरेली की महिलाओं ने अपने आभूषण दे दिए थे। गांधी जी ने सलोन के मोहनगंज में भी रुककर जनसभा को संबोधित किया था।
नमक सत्याग्रह शुरू करने की मिली जिम्मेदारी
वर्ष 1929 को सबसे पहले गांधीजी बछरावां आए थे। यहां माता प्रसाद मिश्र व मुंशी चंद्रिका प्रसाद ने उनका स्वागत किया था। रात्रि विश्राम सुदौली कोठी में किया। अगले दिन लालगंज पहुंचे थे। यहां एकत्र हुई भारी भीड़ से वह इस कदर अभिभूत थे कि उन्होंने तय किया था कि सयुंक्त प्रांत में नमक सत्याग्रह की जिम्मेदारी रायबरेली को दी जाएगी। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ महात्मा गांधी ने 1930 को नमक सत्याग्रह शुरू करने की घोषणा शुरू कर दी। महात्मा गांधी के निर्देश पर जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने इसकी शुरुआत रायबरेली से करने को कहा। गांधी जी ने इस संबंध में स्वयं एक पत्र लिखकर रायबरेली के शिवगढ़ निवासी और साबरमती आश्रम में रहने वाले बाबू शीतला सहाय को भेजा।
रायबरेली में महात्मा गांधी ने पत्नी कस्तूरबा गांधी संग आजादी के आंदोलन की अलख जगाई थी।
हिंदू हाई स्कूल का नाम हुआ महात्मा गांधी इंटर कॉलेज
महात्मा गांधी के प्रति विशेष संबंध और लगाव रहा है । रायबरेली वासियों में महात्मा गांधी के नाम से शिक्षण संस्थायें भी हैं। लखनऊ प्रयागराज हाईवे पर बछरावां में श्री गांधी विद्यालय इंटर कॉलेज के नाम से कॉलेज संचालित है। आज इस कॉलेज की बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है। छत से पानी टपकता है। विद्यालय के पास 30 से 35 बीघा से ज्यादा जमीन है। जमीन का रखरखाव सही से न होने के कारण जमीनों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं। विद्यालय में कंट्रोलर नियुक्त है। रायबरेली शहर में भी महात्मा गांधी इंटर कॉलेज के नाम से कॉलेज संचालित है । लेकिन यह नाम हमेशा से नहीं रहा है। शुरुआत में इस इंटर कॉलेज का नाम हिंदू हाई स्कूल था। 1942 के आज़ादी के आंदोलन में हिंदू हाई स्कूल के छात्रों ने बढ़-चढ़कर योगदान दिया था। जिस कारण कॉलेज के छात्रों को तत्कालीन कोतवाल ने पकड़ा था । लेकिन तत्कालीन डीएम रंधावा के हस्तक्षेप से वे छात्र मुक्त हो सके थे। हिंदू कॉलेज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना एक साथ एक दिन हुई थी। रायबरेली के राजर्षि रामपाल सिंह जो महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे और उनके अनुयाई भी थे। उन्होंने हिंदू हाई स्कूल का नाम बदल कर महात्मा गांधी इंटर कॉलेज रख दिया था।
महात्मा गांधी के समकालीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित मार्तंड वैद्य की नातिन प्रख्यात साहित्यकार डॉ भुनेश्वरी तिवारी उम्र 80 वर्ष अपनी स्मृतियों के झरोखों से बताती हैं कि मां हम लोगों को गीत सुनाती थी। मेरा भाई उन गीतों पर अभिनय करता था। बताते बोलते वह गुनगुनाने भी लगती हैं।
आजादी का हुआ सवेरा।
विपदाओं का मिटा अंधेरा।
तप गांधी का है रंग लाया मंगल दीप जलाओ। आओ सांवरिया आओ।
गांधी का चरखा अजब बना है।
मैंने दिन छुट्टी न पाती हूं।
ए हो सँवारिया जो जायो बजरिया।
तो लायो चुनरिया खादी की। जय बोलो महात्मा गांधी की।
खादी की चुनरी को रंगे रंगरेजवा।
खादी की चुनरी से डरे अंग्रेजवा।
रही न शान फिरंगी की।
जय बोलो महात्मा गांधी की।
बाल गीत जिस पर बच्चे अभिनय करते थे। मैया मेरे लिए मंगा दो छोटी धोती खादी की। जिसे पहन कर बन जाऊंगा मैया मैं भी गांधीजी।
आंखों में ऐनक पहनूंगा कमर घड़ी लटकाउंगा। लिये हाथ में एक लकुटिया भरी सभा में जाऊंगा।
भरी सभा में बैठूंगा सच्ची बात सुनाऊंगा।
मैया मेरे लिए मंगा दो छोटी धोती खादी की।