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Raebareli News: 15 अगस्त नज़दीक आते ही जज्बाती हो जाते हैं मदन कुमार सिंह, कारगिल युद्ध में किया था ये बड़ा काम

रायबरेली के रहने वाले मदन कुमार सिंह को सेना डाक सेवा के लिए नौकरी करते हुए कारगिल युद्ध में देश की सेवा करने का मौका मिला जो इनके जीवन की अमिट छाप है।

Narendra Singh
Published on: 13 Aug 2021 6:35 AM GMT
Madan Kumar Singh, a resident of Rae Bareli, got an opportunity to serve the country in the Kargil War while working for the Army Postal Service, which is an indelible mark of his life.
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रायबरेली: 15 अगस्त नज़दीक आते ही जज्बाती हो जाते हैं मदन कुमार सिंह

Rae Bareli News: मदन कुमार सिंह राहाटीकर प्रतापगढ़ के मूल निवासी हैं और रायबरेली के प्रगतिपुरम में परिवार सहित निवास करते हैं। सेना डाक सेवा के लिए नौकरी करते हुए कारगिल युद्ध में देश की सेवा करने का मौका मिला जो इनके जीवन की अमिट छाप है। कारगिल युद्ध के दौरान सैनिकों और घायल सैनिकों की सेवा करते थे।

मदन कुमार सिंह, युद्ध में घायल सैनिक जिनके हाथ पांव कट जाते थे उनकी सेवा और सहायता करते थे। उनकी भाषा की जानकारी करना और उनकी भाषा से संबंधित लोगों को उनके पास लाना उनकी भाषा के अखबार और रेडियो में गाने सुनवाना जिससे वह अच्छा महसूस कर सकें सब कुछ मदन कुमार करते थे। देशभक्ति के गाने सुनवाकर सैनिकों में जोश भरने का काम कर रहे थे जिससे उनको दर्द महसूस न हो सके। घायल शरीर में दोबारा नई ऊर्जा आ जाती थी और घायल सैनिक फिर से युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए तैयार हो जाते थे।

कारगिल युद्ध के दौरान घायल सैनिकों की सहायता करते थे मदन कुमार

आपको बता दें कि कारगिल युद्ध के दौरान मदन कुमार सिंह छुट्टी पर अपने घर पर थे। सेना का बुलावा आने पर अपने देश की सेवा के लिए घर से निकल पड़े। कारगिल पहुंचकर युद्ध क्षेत्र में भारतीय सेना का शौर्य और साहस देख कर बहुत गौरवान्वित हुए और अपनी ड्यूटी में जुट गये। घायल सैनिकों की सेवा और सहायता की ड्यूटी देशभक्ति की भावना के साथ निभायी। मोबाइल का जमाना नहीं था वर्ना सेना का शौर्य और साहस और सैनिकों की सेवा के वीडियो आज की पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक और यादगार होते।

देश की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं मदन कुमार

मदन कुमार सिंह को रिटायर्ड हुए 16 साल हो गए लेकिन देश की सेवा का जज्बा जस का तस है। उनका कहना है कि देश की सेवा के लिए यदि फिर से बुलावा आया तो मैं बिल्कुल तैयार हूं। सेना डाक सेवा की नौकरी में अंडमान और निकोबार जाने का भी सौभाग्य मिला। सेल्यूलर जेल रोज जाता था वहां के फांसी के फंदे पर लटक कर देखता था। यह महसूस करने की कोशिश करता था हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़कर बलिदान दिया था। उनको फांसी के फंदे पर झूलते समय कैसा महसूस होता रहा होगा।

Shashi kant gautam

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