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UP Politics: कांग्रेस के कार्यकाल में सबसे अधिक ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए, नारायण दत्त तिवारी तीन बार

UP Politics: यूपी में हर राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव के पहले ब्राह्मण समाज के हितों का दावा कर रहा है।

Shreedhar Agnihotri
Published on: 26 July 2021 7:06 AM GMT
Every political party is claiming the interests of Brahmin society before the assembly elections.
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कांग्रेस (फोटो- सोशल मीडिया)

UP Politics: इन दिनों उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को लेकर प्रदेश की राजनीति अपने उफान पर है। हर राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव के पहले ब्राह्मण समाज के हितों का दावा कर रहा है। कोई सरकार बनने के पहले लोकलुभावन वादे कर रहा है तो कोई अपनी पूर्व की सरकार में ब्राह्मणों के लिए किए गए कामों को गिना रहा है पर ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने की बात कोई नहीं कह रहा है।

दरअसल कुछ संगठनों ने इस बात पर अपनी राय रखी है कि यदि राजनीतिक दल ब्राह्मणों का हित वाकई में चाहते हैं तो क्यों नहीं विधानसभा चुनाव के पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात कहते हैं। पर इस मांग के बाद राजनीतिक दल पशोपेंश में है।

कांग्रेस की सरकार में सबसे अधिक ब्राह्मण मुख्यमंत्री

बस एक कांग्रेस है जो पिछले तीन दशकों से सत्ता से दूर होने के बाद दमदारी से यह बात कह रही है कि उसकी सरकारों में सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाए गए। इस बात में सच्चाई भी है कि उत्तर प्रदेश में अंतिम ब्राह्मण मुख्यमंत्री कांग्रेस की सरकार मेंं नारायण दत्त तिवारी ही हुए थें।

नारायण दत्त (फोटो- सोशल मीडिया)

कांग्रेस की सरकार में सबसे अधिक छह मुख्यमंत्री ब्राह्मण हुए हैं जिनमें प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोबिन्द वल्लभ पंत, सुचेता कृपालानी, कमला पति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी और श्रीपति मिश्र शामिल हैं। इनमें नारायण दत्त तिवारी को तीन बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनपाया गया।

जहां तक उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री की बात है तो 26 जनवरी 1950 संयुक्त प्रांत के प्रधान गोबिन्द बल्लभ पंत बने जो पहाड़ी ब्राह्मण थें। उनका कार्यकाल चार साल और 335 दिन का रहा।

इसके बाद कांग्रेस ने कायस्थ समाज से आने वाले प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. सम्पूर्णानन्द को 28 दिसम्बर 1954 को यह जिम्मेदारी दी। उन्होंने भी पांच साल 344 दिन तक यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए कई ऐतहासिक काम किए।

फिर कांग्रेस ने वैश्य परिवार से जुडे़ चंद्रभानु गुप्ता को सात दिसम्बर 1960 को यूपी का मुख्यमंत्री पद सौंपा। चंद्रभानु गुप्ता यूपी के दो साल और 298 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद कांग्रेस ने एक बार फिर दो अक्टूबर 1963 को ब्राह्मण मुख्यमंत्री के तौर पर सुचेता कृपलानी को प्रदेश की कमान सौंपी जो कि प्रदेश में पहली महिला मुख्यमंत्री बनी।

एक बार फिर ब्राम्हण मुख्यमंत्री

उन्होंने तीन वर्ष 162 दिन प्रदेश की जिम्मेदारी संभालने का काम किया। पर 1967 में जब कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष एकजुट हुआ तो पहली बार भारतीय क्रांति दल के चौ चरण सिंह मुख्यमंत्री बने जो जाट समुदाय के थें।

तीन अप्रैल 1967 को वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने पर वह अपनी कई दलों के समर्थन से बनी अपनी सरकार चला नहीं पाए और केवल 328 दिनों में ही उनकी सरकार 25 फरवरी 1968 को गिर गयी।

प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया जो कि एक साल तक लगा रहा। पर इसके बाद कांग्रेस ने फिर से राज्य में अपनी सरकार गठित की और चन्द्रभानु गुप्ता को प्रदेश की कमान सौंपने का काम किया।

राजनीतिक उठापटक के बीच चरण सिंह को फिर मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला और 18 फरवरी 1970 को उन्होंने प्रदेश की डोर अपने हाथ में ली। इस बीच फिर से प्रदेश को राष्ट्रपति शासन का सामना करना पड़ा।

चौधरी चरण सिंह (फोटो-सोशल मीडिया)

इसके बाद कांग्रेस ने पहले त्रिभुवननारायण सिंह को 18 अक्टूबर 1970 को 167 दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाया और इसके बाद एक बार फिर ब्राम्हण मुख्यमंत्री के तौर पर कमलापति त्रिपाठी को चार अप्रैल 1971 को मुख्यमंत्री पथ की शपथ दिलवाई। कमलापति त्रिपाठी ने दो वर्ष 69 दिन इस बड़े पद की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

कई बार राष्ट्रपति शासन का सामना कर चुके उत्तर प्रदेश को 12 जून 1973 को फिर से राष्ट्रपति शासन का सामना करना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस हाईकमान पहाड़ी ब्राम्हण हेमवती नन्दन बहुगुणा को 8 नवम्बर 1973 को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी। जिसे उन्होंने दो वर्ष 21 दिनों तक बेहतरीन ढंग से निभाया।

पर हर बार की तरह एक बार फिर प्रदेश में 30 नवम्बर 1975 को राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। 52 दिनों का राष्ट्रपति शासन रहने के बाद कांग्रेस ने पहाड़ क्षेत्र से जुडे़ ब्राम्हण नारायण दत्त तिवारी को 21 जनवरी 1976 को प्रदेश की कमान सौंपने का काम किया।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दिया इस्तीफा

एक साल 99 दिन तक यह जिम्मेदारी संभालने के बाद 30 अप्रैल 1977 को विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की हार के बाद वह मुख्यमंत्री पद से हट गए। इसके बाद संवैधानिक कार्यो को पूरा करने के चलते प्रदेश में 54 दिन राष्ट्रपति शासन रहा और जनता पार्टी की सरकार में रामनरेश यादव को मुख्यमंत्री पद मिला।

इसके बाद जनता पार्टी की सरकार में हुए विवाद के चलते 28 फरवरी बनारसी दास प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने केवल 354 दिन ही यह भूमिका निभाई। इसी बीच कांग्रेस ने क्षत्रिय समाज के विश्वनाथ प्रताप सिंह को यूपी की जिम्मेदारी दी। पर डकैतों के आंतक को खत्म करने में नाकामयाब रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब इस्तीफा दे दिया तो कांग्रेस ने फिर से ब्राम्हण समुदाय के श्रीपति मिश्र को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी।

19 जुलाई 1982 से दो अगस्त 1984 तक वह मुख्यमत्री रहे। फिर कांग्रेस ने एक और प्रयोग किया और गोरखपुर के क्षत्रिय समुदाय के वीर बहादुर सिंह को 24 सितम्बर 1985 को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। उन्होंने दो वर्ष 274 दिन तक अपनी जिम्मेदारी का वहन किया।

पर कांग्रेस हाईकमान ने एक बार फिर ब्राम्हण मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी बार नारायणदत्त तिवारी पर अपना विश्वास जताते हुए 25 जून 1988 को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपने का काम किया। जिसे उन्होंने 5 दिसम्बर 1989 तक निभाया। इसके बाद से न तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और न ही प्रदेश में कोई ब्राम्हण मुख्यमंत्री नहीं बन सका है।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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