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मायावती को उम्मीद: ब्राह्मण दिलाएंगे सत्ता की चाभी, अब खुशी दुबे का केस लड़ेंगे सतीश चन्द्र मिश्र

UP Politics News : उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले ब्राह्मण बिरादरी को लेकर राजनीति एक बार फिर गरमाने लगी है।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Divyanshu Rao
Published on: 21 July 2021 12:37 PM IST (Updated on: 21 July 2021 1:07 PM IST)
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बसपा सुप्रीमो मायावती उनके साथ बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा,और खुशी दुबे (डिजाइन फोटो: न्यूज़ट्रैक) 

UP Politics News : उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले ब्राह्मण बिरादरी को लेकर राजनीति एक बार फिर गरमाने लगी है। कानपुर के बिकरू कांड के बाद शुरू हुई ब्राह्मण राजनीति की गति चुनाव नजदीक आते ही तेज हो गयी है। इसमें सबसे आगे बसपा दिखाई दे रही है। पार्टी इस बडे़ वोट बैंक को साधने के लिए ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन 23 जुलाई से शुरू कर रही है। यही नहीं, देश के जाने माने अधिवक्ता और बसपा के राष्ट्रीय महासचिवव सतीश चन्द्र मिश्रा बिकरू कांड की कथित आरोपित और जेल में बंद खुशी दुबे की रिहाई के लिए केस लडेंने की सोच रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल पुलिस मुठभेड़ में आठ पुलिस कर्मियों के शहीद होने के बाद पुलिस ने अपराधी विकास दुबे का एनकाउन्टर कर दिया था। पुलिस ने विकास दुबे के भतीजे अमर दुबे का भी एनकाउन्टर कर दिया था, जिसकी दो दिन पहले ही खुशी दुबे के साथ शादी हुई थी। इसके बाद पुलिस ने खुशी दुबे को भी आरोपित मानते हुए गंभीर धाराओं में जेल भेज दिया था। बेहद गरीब परिवार से जुड़ी खुशी की पैरवी न होने के कारण उसे एक साल से जेल में ही रहना पड़ रहा है, जबकि किशोर न्याय बोर्ड ने भी उसे नाबालिग माना है।

अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तो ब्राह्मण वोटों को अपने पाले में करने के लिए अन्य दलों की तरह ही बसपा ने अपने पैर बढाएं हैं। पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र को इन ब्राह्मण सम्मेलनों की जिम्मेदारी दी गयी है। इसमें उनके सहयोग के लिए बसपा नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री नकुल दुबे को भी लगाया गया है। सतीश चन्द्र मिश्रा अयोध्या में अपना सम्मेलन कर इस समाज को अगले चुनाव के लिए यह संदेश देने का प्रयास करेंगे कि उनकी असली शुभचिंतक पार्टी बहुजन समाज पार्टी ही है।

बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

यहां यह बताना जरूरी है कि 2007 में ब्राह्मण के दम पर विधानसभा में 206 विधायकों वाली बसपा ने अकेले पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। तब दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा ने जब 5 जून 2005 से ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन करना शुरू किया तो लोगों को आश्चर्य हुआ। यहीं नहीं 2007 के चुनाव में बसपा ने 56 ब्राह्मण कैंडिडेट्स भी मैदान में उतारे। इसमें 41 कैंडिडेट्स चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।

प्रेस वार्ता करती बसपा सुपीमो मायावती (फाइल फोटो: सोशल मीडिया )

यही कारण है कि बसपा एक बार फिर ब्राह्मण वोटों को लेकर बेहद फिक्रमंद दिखाई दे रही है और एक बार फिर अगले विधानसभा चुनाव में वह ब्राह्मण को अधिक से अधिक टिकट देने की भी तैयारी में है।

दरअसल, प्रदेश का यह बड़ा वोट बैंक है। इसके अलावा वोट से ज्यादा यह वर्ग प्रदेश की राजनीति में किसी भी दल की हवा बनाने का भी काम करता है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि ब्राह्मण वोटर्स की लगभग 30 जिलों में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

इन जिलों में ताकतवर हैं ब्राह्मण

वैसे अगर देखा जाय तो ब्राह्मण वोट बैंक यूपी के लगभग हर जिले में है, लेकिन फैजाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, गाजीपुर, गोंडा, बस्ती, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, जौनपुर कानपुर, रायबरेली, फर्रुखाबाद, कन्नौज, उन्नाव, लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई, इलाहाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ, अमेठी, हमीरपुर, हरदोई, जालौन, झांसी, चित्रकूट, ललितपुर, बांदा आदि में ब्राह्मण बहुतायत हैं, जो किसी भी दल की किस्मत बदलने की ताकत रखते हैं। इसीलिए अबकी बार एक बार फिर से इनको अपने पाले में लाने के लिए सतीश चंद्र मिश्रा को आगे करने का काम कर रही हैं।



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Divyanshu Rao

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