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अयोध्या बम विस्फोट साजिश: HC ने उम्रकैद की सजा पाए आतंकियों को रिहा करने के दिए आदेश
सत्र न्यायालय से दोषसिद्ध होने के बाद उम्र कैद की सजा पाए दो आतंकियों को रिहा करने के आदेश गुरूवार (2 फरवरी) को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिए हैं।
लखनऊ: अयोध्या में बम विस्फोट की साजिश रचने के आरोप में सत्र न्यायालय से दोषसिद्ध होने के बाद उम्र कैद की सजा पाए दो आतंकियों को रिहा करने के आदेश गुरूवार (2 फरवरी) को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिए हैं। कोर्ट ने दोनों आतंकियों की रिहाई के आदेश संबंधित कानूनों के तकनीकी पक्ष के आधार पर दिए हैं। हालांकि कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
यह आदेश जस्टिस सत्येंद्र सिंह चौहान और जस्टिस अनंत कुमार की बेंच ने अल्ताफ हुसैन उर्फ मोहम्मद अल्ताफ उर्फ रोहित उर्फ अब्दुल रहमान और सलीम कमर उर्फ नीरज कुमार सिंह उर्फ बाबू उर्फ मुन्ना की ओर से दाखिल अपील पर दिया है।
दोनों आरोपियों के खिलाफ अयोध्या के थाना रामजन्मभूमि में आईपीसी की धारा 121 ए, विस्फोटक सामग्री अधिनियम और यूपी गैंगस्टर अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
विचारण के बाद 17 जुलाई 2008 को फैजाबाद के विशेष न्यायाधीश ने दोनों आरोपियों को दोषसिद्ध करते हुए आईपीसी की धारा 121ए के तहत उम्र कैद और 50 हजार रुपए जुर्माने, विस्फोटक सामग्री अधिनियम की धारा 4 के तहत 10 साल कारावास और 25 हजार रुपए जुर्माना, गैंगस्टर एक्ट की धारा 3 के तहत पांच साल कारावास और 25 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी।
अपीलार्थियों की ओर से धारा 121 ए के तहत दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए कहा गया कि वे अन्य दोनों धाराओं के तहत मिली सजा को भुगत चुके हैं। जबकि 121 ए के तहत अभियोजन चलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी से अनुमति नहीं ली गई थी। लिहाजा 121ए के तहत सजा नहीं दी जा सकती थी। हालांकि सरकारी वकील ने दलील दी कि यह बिंदु सत्र न्यायालय के समक्ष ही उठाया जाना चाहिए था।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि 121ए के तहत अभियोजन चलाने से पूर्व अनुमति लिया जाना आवश्यक है। लिहाजा इस धारा के तहत अपीलार्थियों की दोषसिद्धि को बनाए नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने 121ए के तहत दोषसिद्धि को खारिज करते हुए दोनों को रिहा करने का आदेश दिया, यदि उन पर अन्य कोई मामला न हो।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह मामले के तथ्यों पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है। मामले को मात्र 121ए के तहत स्वीकृति लिए जाने के कानूनी बिंदु पर निर्णित किया जा रहा है।
क्या था तकनीकी बिंदु ?
सीआरपीसी की धारा 196 के अनुसार, आईपीसी के चैप्टर 6 के तहत दंडनीय अपराधों पर कोर्ट, केंद्र अथवा राज्य सरकार की ओर से अभियोजन की स्वीकृति के आभाव में संज्ञान नहीं ले सकती।