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जानिए इस खास स्थान के बारे में, जहां पर राम मंदिर आंदोलन का खींचा गया था खाका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखे जाने के बाद पूरा देश जश्न में डूबा हुआ है। हर जगह लोग खुशियां मना रहे हैं और अपने-अपने ढंग से प्रभु श्री राम की महिमा का गुणगान कर रहे हैं।

Newstrack
Published on: 5 Aug 2020 10:21 AM GMT
जानिए इस खास स्थान के बारे में, जहां पर राम मंदिर आंदोलन का खींचा गया था खाका
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखे जाने के बाद पूरा देश जश्न में डूबा हुआ है। हर जगह लोग खुशियां मना रहे हैं और अपने-अपने ढंग से प्रभु श्री राम की महिमा का गुणगान कर रहे हैं।

इसके साथ ही लोग अब उस दिन की प्रतीक्षा में हैं कि कब भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार होगा और उन्हें प्रभु श्री राम के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा।

लेकिन क्या आपको पता है कि देश के अंदर एक और जगह ऐसी हैं। जहां पर अयोध्या की तरह ही लोग आज जश्न में सराबोर हैं और प्रभु की महिमा का गुणगान कर रहे हैं। ये जगह आज जय श्रीराम के नारों से गूंज उठा है। वो जगह कही और नहीं बल्कि देश की राजधानी नई दिल्ली में स्थित संकट मोचन मंदिर आश्रम है।

PM Narendra Modi

इसी स्थान पर तैयार हुई थी आन्दोलन की रूपरेखा

ये वही स्थान है, जहां राम मंदिर आंदोलन की योजनाओं की रूपरेखा तैयार हुई थी और उन्हें बाद में अमलीजामा पहनाया गया। आर के पुरम स्थित संकट मोचन मंदिर परिसर में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) का यह कार्यालय खास तौर पर कम चहल पहल वाला नजर आता है, लेकिन मंदिर आंदोलन के इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तब यह कार्यालय राम मंदिर आंदोलन से बहुत करीब से जुड़ा हुआ है जिसका 'ध्यान कक्ष’’ ऐसी बैठकों का मुख्य केंद्र हुआ करता था।

विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के पदाधिकारियों ने बताया कि अशोक सिंघल जी के निर्देश पर एक सभागार भागवन राम और राम मंदिर के रिकार्ड रूम के रूप समर्पित किया गया और यहां आज भी राम जन्मभूमि आंदोलन और अदालती मामलों से जुड़े कागजात और रिकार्ड मौजूद हैं।

दोनों मंदिर में है ये खास समानता

आश्रम के पदाधिकरियों ने बताया कि अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थान और आर के पुरम स्थित संकट मोचन मंदिर आश्रम में एक समानता भी है और दोनों स्थानों पर प्रवेश करने के साथ ही हनुमान दरबार है।

संकट मोचन मंदिर आश्रम स्थित कार्यालय में अशोक सिंघल के मार्गदर्शन में दिनचर्या एकदम निर्धारित रूप से चलती थी। सुबह पांच बजे सभी स्वयंसेवक, कर्मचारी आदि मंदिर प्रांगण में आ जाते थे तथा योग, ध्यान करते थे तथा प्रतिदिन शाखा लगती थी ।

संगठन के संयुक्त महामंत्री सुरेन्द्र जैन के मुताबिक संकट मोचन मंदिर आश्रम वह पवित्र स्थान है जहां पर देशभर के वरिष्ठतम संत, महापुरूष, अध्यात्मिक गुरू आते जाते रहे और जिन्होंने भगवान श्रीराम की जन्मस्थली को मुक्त कराने के लिये आजीवन संघर्ष किया।

इसी स्थान से राम मंदिर से जुड़ी तमाम योजनाओं को आगे बढ़ाया गया। यहीं पर अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, चंपत राय जैसे दिग्गजों, विहिप कार्यकर्ताओं ने साधु संतों के निर्देश के अनुरूप आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम किया।'

1984 में रामजन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन

संगठन के के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसलके अनुसार 21 जुलाई, 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में बैठक कर विहिप ने रामजन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन किया।' बंसल ने बताया कि इसके बाद 1984 के अगस्त माह से ही संकट मोचन मंदिर आश्रम ही बैठकों का केंद्र बन गया। साधु संतों के आदेश को क्रियान्वित करने की रूपरेखा इसी दफ्तर में तैयार की जाती थी।

यह पूरा आंदोलन 80 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था, तब आंदोलन की कमान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद ने इसकी संभाली। आंदोलन के दौरान अप्रैल 1984 में सरयू नदी के किनारे हुई धर्म संसद अहम पड़ाव थी। इसी धर्म संसद में राम मंदिर को लेकर निर्णायक आंदोलन शुरू करने का फैसला हुआ ।

उन्होंने बताया, देश भर के साधु-संतों के साथ में मिलकर लगातार योजनाएं बनाना, बातचीत करना और उनको किस तरीके से मूर्त रूप देना है, उस पर भी लगातार विचार-विमर्श होता था।’’ विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय कार्यालय में अशोक सिंघल का कमरा पहली मंजिल पर जस का तस बना हुआ है । यहां पर आज भी एक चौकी है और साथ में ही वहां एक उनका अपना छोटा सा मंदिर भी मौजूद है ।

विष्णु हरि डालमिया की भूमिका मार्गदर्शक की रही

प्रारंभ से ही कार्यालय में तीन ‘ध्यान कक्ष’हैं जिसमें एक बड़ा और दो छोटे कक्ष हैं। बड़ी बैठकें बड़े ध्यान कक्ष में आयोजित की जाती थी जिसमें अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, चंपत राय आदि साधु संतों के साथ विचार विमर्श करते थे । छोटी बैठकें या वन टू वन मीटिंग छोटे ध्यान कक्ष में हुआ करती थी।

विहिप के पदाधिकारियों ने बताया कि राम मंदिर आंदोलन में विष्णु हरि डालमिया की भूमिका मार्गदर्शक की रही, जबकि अशोक सिंघल मुख्य भूमिका में रहे और चंपत राय ने पर्दे के पीछे रहकर सतत रूप से काम किया ।

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