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बिना लोहे का राम मंदिर: ऐसे ही रहेगा 1हजार साल तक, जानें इससे जुड़ी खास बात
आखिरकार लंबे समय के इंतजार के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने जा रहा है। 5 अगस्त को हुए भूमि पूजन के बाद इसके निर्माण की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है। ऐसा अनुमान है कि राम मंदिर का निर्माण 36 माह में होने की उम्मीद है। इसका निर्माण 1000 साल को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।
अयोध्या: आखिरकार लंबे समय के इंतजार के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने जा रहा है। 5 अगस्त को हुए भूमि पूजन के बाद इसके निर्माण की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है। ऐसा अनुमान है कि राम मंदिर का निर्माण 36 माह में होने की उम्मीद है। इसका निर्माण 1000 साल को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।
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ऐसी कोशिश है कि समाज का हर वर्ग श्रीराम के दर्शन कर सके। उन्होंने बताया कि ट्रस्ट की तरफ से बैंक अकाउंट जारी किए गए हैं, इनमें लोग स्वेच्छा से दान दे सकते हैं। इसके अलावा तांबे की पत्तियां भी लोग भेज सकते हैं।
पत्थरों से मंदिरों का निर्माण
स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (न्यूयॉर्क) की तर्ज पर तांबे की परत बनाकर मंदिर का निर्माण होगा। मंदिर सालों साल तक ऐसे ही खड़ा रहे इसके लिए खास तरह से मंदिर निर्माण हो रहा है। ट्रस्ट के अनुसार मंदिर निर्माण में लगने वाले
को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों का उपयोग किया जाएगा। निर्माण के लिए 18 इंच लंबी, 3 मिलीमीटर गहरी और 30 मिलीमीटर चौड़ी 10,000 पत्तियों की आवश्यकता होगी। लोग इसे दान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इन तांबे की पत्तियों पर लोग इच्छानुसार अपने परिवार, क्षेत्र या मंदिरों का नाम गुदवा सकते हैं।
मंदिर निर्माण में कोई जल्दबाजी नहीं
चंपत राय ने कहा कि मंदिर निर्माण में कोई जल्दबाजी नहीं करेंगे, सभी काम व्यवस्थित और पूरी तैयारी से होंगे। अभी मलबा हटाने में ही बहुत सामग्री मिली है जिन्हें संभालकर रखा जा रहा है। बाद में इनको संग्रहालय में रखा जाएगा। मंदिर के लिए राम जन्मभूमि में 60 मीटर गहराई के मिट्टी के सैंपल लिए गए हैं। यहां लगने वाले 1200 खंभों के ऊपर की बिल्डिंग की मोटाई के लिए रिसर्च जारी है।
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भूकंपरोधी
राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए सीबीआरआई रुड़की और IIT मद्रास के साथ मिलकर निर्माणकर्ता कंपनी एल एंड टी के इंजीनियरों ने भूमि की मृदा के परीक्षण का काम शुरू कर दिया है। जमीन की मिट्टी की जांच के बाद आगे का काम शुरू होगा। मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है ताकि वह सहस्त्रों वर्षों तक न केवल खड़ा रहे बल्कि भूकंप, झंझावात या अन्य किसी प्रकार की आपदा में भी उसे किसी प्रकार की क्षति न हो।मंदिर के निर्माण में लोहे का प्रयोग नहीं किया जाएगा।