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Ayodhya News: आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय ने विकसित की एक साथ 10 औद्यानिक फसलों की प्रजातियां
Ayodhya News: औद्यानिक फसलों के विकसित होने वाली प्रजातियों में आंवला की दो प्रजातियां हैं जिसमें नरेंद्र आंवला-25 और नरेंद्र आंवला- 26 शामिल है। बेल की तीन प्रजातियां विकसित हुईं हैं जिसमें नरेंद्र बेल-8, नरेंद्र बेल-10 और नरेंद्र बेल-11 शामिल है।
Ayodhya News: उत्तर प्रदेश के जनपद अयोध्या में स्थित आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय ने नैक मूल्यांकन में सफलता हासिल करने के बाद एक और कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। एक साथ 10 औद्यानिक फसलों की प्रजातियां विकसित करने के बाद इतिहास के पन्नों में कृषि विश्वविद्यालय का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया है। कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह के कुशल मार्ग दर्शन में यह सभी प्रजातियां उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय द्वारा विकसित की गईं हैं।
विश्विद्यालय परिसर में दौड़ी खुशी की लहर
इसीके साथ भारत सरकार के कृषि एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा इन प्रजातियों की पहचान एवं अधिसूचना भी जारी कर दी गई है। यह बड़ी उपलब्धि विश्विद्यालय के हाथ लगने पर पूरे विश्विद्यालय परिसर में खुशी की लहर दौड़ गई। कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने इस सफलता के लिए वानिकी अधिष्ठाता, निदेशक शोध एवं परियोनाओं में कार्यरत समस्त वैज्ञानिकों, संबंधित विभागाध्यक्षों एवं कर्मचारियों को बधाई एवं शुभकमनाएं दीं।
विकसित होने वाली प्रजातियों में शामिल हैं
औद्यानिक फसलों के विकसित होने वाली प्रजातियों में आंवला की दो प्रजातियां हैं जिसमें नरेंद्र आंवला-25 और नरेंद्र आंवला- 26 शामिल है। बेल की तीन प्रजातियां विकसित हुईं हैं जिसमें नरेंद्र बेल-8, नरेंद्र बेल-10 और नरेंद्र बेल-11 शामिल है। लौकी की दो प्रजातियां विकसित हुईं हैं जिसमें नरेंद्र सीता एवं नरेंद्र कामना शामिल है। बैगन की एक प्रजाति नरेंद्र सुयोग को वैज्ञानिकों ने विकसित किया है।
इसी क्रम में सरसो की एक प्रजाति विकसित हुई है जो नरेंद्र सरसो साग-1 एवं हल्दी की एक प्रजाति नरेंद्र हल्दी-4 को विकसित किया गया है। कृषि विवि के मीडिया प्रभारी आशुतोष सिंह ने बताया कि भारत सरकार के अधिसूचना संख्या- F.NO. 3-76/2024 SD-IV द्वारा इन प्रजातियों को अधिसूचित एवं विमोचित किया गया है।
प्रजातियों को विकसित करने में मुख्य रूप से वरिष्ठ वैज्ञानिक/कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह, अधिष्ठाता डा. संजय पाठक, डा. हेमन्त कुमार सिंह मुख्य अन्वेषक एरिड जोन फ्रूट, डा प्रदीप कुमार मुख्य अन्वेषक मसाला परियोजना, डा. भानुप्रताप विभागाध्यक्ष फल विज्ञान, डा. सीएन राम विभागाध्यक्ष सब्जी विज्ञान, डा गुलाब चंद्र यादव पूर्व मुख्य अन्वेषक सब्जी परियोजना, वैज्ञानिक डा. विक्रमा प्रसाद पांडेय, वैज्ञानिक डा. एच.के. सिंह, वैज्ञानिक डा. अच्छे लाल यादव, वैज्ञानिक डा प्रवीण कुमार मौर्या तथा तकनीकि सहायक में नंदलाल शर्मा, राजकुमार गुप्ता व शिव सरन गुप्ता का योगदान रहा।
विकसित प्रजातियों की विभिन्न विशेषताएं
1-नरेंद्र आंवला 25- इस विकसित आंवला प्रजाति की प्रति पेड़ उत्पादन क्षमता 150-160 किलोग्राम है। मध्यम समय में परिपक्वता है। यह आंवला च्यवनप्राश, मुरब्बा और कैंडी बनाने के लिए अधिक उपयुक्त है।
2-नरेंद्र आंवला 26- इस आंवला प्रजाति की भी उत्पादन क्षमता प्रति पेड़ 160 किग्रा है। यह फल चमकीला और हरे-पीले रंग का है।
3-नरेंद्र बेल 8- इस बेल का वजन 1.0 किलोग्राम से 1.25 किग्रा. है। इस पेड़ का प्रति पेड़ उत्पादन क्षमता 125-145 किलोग्राम है।
4-नरेंद्र बेल 10- इस बेल का आकार बिल्कुल गोल है। इसका वजन 1.25 से 1.5 किग्रा. है। यह बेल जूस, मुरब्बा एवं कैंडी के लिए अधिक उपयुक्त है। इसकी उत्पादन क्षमता 100-110 फल प्रति पेड़ है।
5-नरेंद्र बेल 11- इस बेल का आकार भी गोलाकार है। इस बेल का वजन 1.75 से 2.0 किग्रा. तक है। इस बेल की उत्पादन क्षमता 150 से 175 किग्रा. प्रति पेड़ है।
6-नरेंद्र सरसो (साग-1)- इस सरसो के पत्ते हरे रंग के और बड़े हैं। सरसो की उत्पादन क्षमता 286 कुंटल प्रति हेक्टेयर है।
7-नरेंद्र हल्दी 4- इसकी मध्यम परिपक्वता अवधि 235-240 दिन की है। करक्यूमिन 6.67 प्रतिशत और इस हल्दी की उत्पादन क्षमता 345-350 कुंटल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रजाति पत्ती धब्बा एवं लीफ ब्लाच के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
8-नरेंद्र कामना (लौकी)- इस लौकी प्रजाति को उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखण्ड सहित देश के विभिन्न राज्यों के लिए संस्तुत की गई है। इस लौकी की उच्च उत्पादन क्षमता 350 कुंटल प्रति हेक्टेयर है। ये बुआई के 30 से 35 दिन में तुड़ाई हेतु तैयार हो जाती है।
9-नरेंद्र सीता (लौकी)- यह लौकी की संकर प्रजाति है। यह क्षारीयता के प्रति सहिष्णु एवं उच्च उत्पादन 450-500 कुंटल प्रति हेक्टेयर है।
10-नरेंद्र सुयोग (बैगन)- यह सफेद रंग की प्रजाति है तथा मधुमेह के रोगियों के लिए अधिक लाभदायक है। इसकी औसत उपज 500-550 कुंटल प्रति हेक्टेयर है।