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Ayodhya Ram Mandir: राम जन्म भूमि मंदिर का क्या है इतिहास, जानिए राम राज्य के बाद क्या हुआ था अयोध्या का
Ayodhya Ram Mandir History: 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है वहीँ क्या आप इसके इतिहास के बारे में जानतें हैं। आइये जानते हैं।
Ayodhya Ram Mandir: जहां तक इतिहास का सवाल है, अयोध्या अपने अस्तित्व काल में ही नष्ट हो गई थी और स्थापित हो गई थी। वाल्मिकी रामायण में उल्लेख है कि भगवान श्री राम ने अपने जीवनकाल में ही अयोध्या को उजाड़ दिया था और अपनी समस्त प्रजा सहित स्वर्ग के लिए आगे बढ़ गए थे। उन्होंने अपने पुत्रों के लिए अयोध्या के बाहर से शासन करने की व्यवस्था की थी।
राम जन्म भूमि मंदिर का इतिहास
बड़े बेटे लव को श्रावस्ती (सहेत-महेट) को राजधानी बनाकर शासन करने के लिए कहा गया और बुद्ध के काल तक यह स्थान कौशल संपदा की राजधानी बना रहा। इसके बाद मौर्य काल में भी यह कौशल संपदा (मगध साम्राज्य का प्रांत) राजधानी थी। वहीँ विंध्य क्षेत्र में स्थित कुशावती नगर की स्थापना दूसरे पुत्र कुश के शासन के लिए की गई थी और उसके बाद से आज तक यह महाकौशल के नाम से प्रसिद्ध है।
रामायण में ये भी बताया गया है कि भगवान श्री राम के बाद ऋषभ काल में अयोध्या फिर से बसी होगी। वो जैनियों के पहले तीर्थकर थे और उन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दुओं में ऐसी मान्यता है कि अयोध्या को तीसरी बार बसाने का श्रेय उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को जाता है। एक मुकदमे में कहा गया कि उन्होंने अयोध्या में 360 मंदिर बनवाये थे। कुछ लोग उन्हें उज्जैन के गर्दभील वंश के राजा विक्रमादित्य मानते हैं, जिन्होंने 57 ईसा पूर्व में शकों को नष्ट कर विक्रम संवत की शुरुआत की थी और कुछ लोग उन्हें गुप्त वंश के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य मानते हैं। जो भी हो, श्री रामजन्मभूमि मंदिर निश्चित रूप से उन 360 मंदिरों में शामिल थी।
श्री रामजन्मभूमि स्थल पर निर्मित मंदिरों की वर्तमान श्रृंखला का आरंभ इसी काल में माना जाता है। समय के साथ मंदिर कमजोर होते गए और उनका जीर्णोद्धार किया गया, जिसका कार्य 11वीं शताब्दी ई० के प्रारंभ तक चलता रहा। 1032-33 ई. में सालार मसूद यहां आया और जन्मस्थल मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया। 14 जून 1033 को बहराईच के युद्ध में राजा सुहेल देव ने उन्हें मार डाला।
6 दिसंबर, 1992 को ध्वस्त किए गए विवादित ढांचे के मलबे में पाए गए 20 पंक्तियों के शिलालेख (इस मुकदमे में कागज़ संख्या 203C-1/3 के रूप में दायर की गई मुहर) से
अयोध्या नगर में ऐसा प्रतीत होता है कि गहरवाल राजा गोविंदचंद्र के शासनकाल (1114 से 1154 ईस्वी तक) के दौरान साकेत मंडल के शासक ने इस स्थान पर एक बहुत ही भव्य मंदिर बनवाया था। इसके निर्माण की आवश्यकता इस दृष्टि से पड़ी कि लगभग 70-80 वर्ष पूर्व इसे ध्वस्त कर दिया गया था।
राजा अनयचंद्र द्वारा निर्मित 11वीं-12वीं शताब्दी (गहरवाल काल का) का ये मंदिर वर्ष 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा फिर से ध्वस्त कर दिया गया था। मीर बाकी को अवध में छोड़ने के बाद बाबर ग्वालियर की ओर चला गया। लगभग 13 मिहीने के बाद दोनों की मुलाकात हुई जिसका उल्लेख बाबरनामा में किया गया है।
और अब हिन्दुओं के लम्बे इंतज़ार के बाद अब राम मंदिर बनने जा रहा है और 22 जनवरी को रामलला की प्राणप्रतिष्ठा होगी।