TRENDING TAGS :
Ayodhya Ram Mandir: कौशल्या माँ ने खाया था ये प्रसाद जिससे उन्हें मिले रामलला जैसे पुत्र,क्या आपको भी चाहिए इन गुणों से युक्त संतान?
Ayodhya Ram Mandir: भगवान् राम के जन्म को लेकर हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ रामायण और रामचरितमानस में लिखा है कि कैसे राजा दशरथ और कौशल्या माँ ने उन्हें प्राप्त किया था।
Ayodhya Ram Mandir: भगवान् श्री राम, विष्णु भगवान् के 7वें अवतार थे जिन्होंने राजा दशरथ की पहली संतान के रूप में जन्म लिया था। राजा दशरथ ने श्री राम के जन्म से पहले एक यज्ञ करवाया था जिसके बाद उनका जन्म हुआ। लेकिन कहा जाता है कि कौशल्या माँ ने जब एक प्रसाद ग्रहण किया तब उन्हें भगवान् राम पुत्र के रूप में मिले।
कौशल्या माँ ने खाया था ये प्रसाद
रामायण और रामचरितमानस हिन्दू धर्म का पवित्र ग्रन्थ है जहाँ आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण लिखी थी और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। दोनों में भगवान् राम के जीवन का पूरा सार छिपा है। अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया था। जिसकी ज़िम्मेदारी सभी विद्वान ऋषि-मुनियों और वेदविज्ञ प्रकांड ब्राह्मणों पर थी। जिसका संचालन पूरे विधि-विधान से हुआ। इस दौरान गुरु वशिष्ठ और ऋंग ऋषि भी पहुंचे थे।
यज्ञ समाप्ति के बाद राजा दशरथ ने सभी ऋषियों, पंडितों व ब्राह्मणों को धन-धान्य और गौ इत्यादि भेंट स्वरुप देकर विदा किया। जिसके बाद राजा दशरथ ने यज्ञ क्र प्रसाद खीर (चरा) को अपनी तीनों रानियों कौशिल्या, कैकई और सुमित्रा को खिलाया। जिसके बाद ये तीनों रानियां गर्भवती हुईं।
रामलला का जन्म चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। कहा जाता है कि इस समय सूर्य, मंगल,शनि, बृहस्पति और शुक्र ग्रह अपमे उच्च स्थानों में विराजमान थे। जिसमे कर्क लग्न का उदय होता है उस समय रानी कौशल्या के गर्भ से रामलला का जन्म हुआ। जिसके बाद सभी अयोध्यावासियों ने जश्न मनाया। पृथ्वी से लेकर पूरे ब्रह्माण्ड जश्न में डूब गया। देवताओं ने पुष्प वर्षा भी की।
नन्हे रामलाला के मुख पर एक अनोखा तेज था। जिसने सभी को मोह लिया। अवतार के रूप में धरती पर हुआ. रामलला का शिशु रूप अत्यंत ही मनमोहक और आकर्षक था.शिशु का चेहरा जो भी एक बार देखता वो उन्हें बस निहारता ही रह जाता। इसके बाद कैकयी ने भरत, और रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। चरों पुत्रों के मुख का तेज़ इतना ज़्यादा था कि राजा दशरथ इसे देखकर अत्यंत प्रसन्न और गर्व से झूम उठे थे। उनकी ख़ुशी का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में काफी ख़ूबसूरती से किया है, उन्होंने लिखा है,
दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा।।
इसका अर्थ है, जब राजा दशरथ ने अपने पुत्र के जन्म की खबर अपने कानो से सुनी तो मानो राजा दशरथ ब्रह्मानंद में समा गए। उनका मन प्रेम से भर गया, शरीर पुलकित हो गया। उन्होंने बुद्धि को धीरज देकर उठाना चाहा।