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Ayodhya Lok Sabha Chunav Result: अयोध्या में राम मंदिर पर भारी पड़ा यह फैक्टर, सपा ने ऐसे लगाई सेंध
Ayodhya Lok Sabha Chunav Result 2024: फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा के हार का कारण उम्मीदवार का ओवर कॉन्फिडेंस में होना...
Ayodhya Lok Sabha Chunav Result 2024: देश की हॉट सीटों में शामिल फैजाबाद लोकसभा सीट चर्चा का विषय बनी हुई है। यहां से लगातार दो बार के भाजपा सांसद रहे लल्लू सिंह चुनाव हार गए हैं। फैजाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत अयोध्या आता है। इसी अयोध्या के बल पर भाजपा 1990 से देश की सियासत करती आ रही है। राम मंदिर बनने के बाद उम्मीद थी कि भाजपा यहां से ऐतिहासिक जीत दर्ज करेगी। लेकिन इसके ठीक उलट हुआ। सपा के अवधेश प्रसाद ने भाजपा के लल्लू सिंह को 54,567 वोट से हराकर उनके विजय रथ को रोक दिया। जिसके बाद प्रदेश समेत देश में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि राम मंदिर की राजनीति करने वाली भाजपा आखिर क्यों अयोध्या में शिकस्त खा गई।
भाजपा का दलित प्रेम नहीं दिखा धरातल पर
दरअसल, फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा के हार का कारण उम्मीदवार का ओवर कॉन्फिडेंस में होना, पार्टी के अंदर भीतरघात के अलावा ओबीसी व दलित आरक्षण समाप्त कर देने की अफवाह ने चुनाव परिणाम बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। लोकसभा चुनाव 2014 व 2019 में भाजपा विजय का कर्णधार रहा ओबीसी व दलित वर्ग तीसरी बार भाजपा नेतृत्व पर भरोसा नहीं कर सका। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा देकर सबका विश्वास हासिल करने की जरूर कोशिश की। लेकिन अयोध्या की धरती पर इसको साकार रूप देकर सामाजिक सोच की खाई को पाटने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। अंबेडकर की जयंती का कार्यक्रम भाजपा का एक दस्तावेजी कार्यक्रम बनकर रह गया। इस कार्यक्रम से दलितों का सरोकार नहीं रहता। भाजपा नेताओं की ओर से सार्वजनिक रुप से कोई ऐसा कार्यक्रम भी नहीं चलाया गया, जिससे दलित समाज के लोग उनसे जुड़ सके। सहभोज के आयोजन समाचार की सुर्खियों तक ही सीमित रहीं। इससे दलित वर्ग अपनत्व का अनुभव नहीं कर सका। इंडिया गठबंधन ने इसी मानसिकता का लाभ उठाया और भाजपा नेतृत्व ने जब 400 पार का नारा दिया तो विपक्षी नेताओं ने एससी-एसटी व ओबीसी के आरक्षण को साजिश का शिगूफा छोड़ दिया। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने काउंटर की कोशिश की लेकिन वह इस नारा देने का औचित्य नहीं सिद्ध कर सके।
बेरोजगार युवाओं के दिल पर बैठ गई यह बात
विपक्ष द्वारा चुनाव में प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पेपर लीक होने के मामले को भी जमकर उठाया। यह भी प्रचारित किया गया कि सरकार की मिलीभगत से ही पेपर लीक हो रहे हैं। क्योंकि बार-बार होने वाली परीक्षाओं से सरकारी कोष भरकर बंदर बांट की जा रही है। इसके साथ सरकारी नौकरियों में आउट सोर्सिंग से भर्ती और पढ़ें-लिखे बेरोजगारों से वसूली की घटनाओं ने भी युवाओं के दिमाग में यह बात भरने में सफलता पा ली कि सत्ता में बैठे लोगों की फितरत ही ऐसी है कि वह खाली पदों को भरने के बजाय कम दाम में अधिक काम कराना चाहते हैं।
जिनका घर टूटा नहीं मिला मुआवजा
राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर अयोध्या को पर्यटन स्थली के रूप में विकसित करने का दंभ पालना भी भाजपा को लगे आघात का एक खास वजह रही। इस पर्यटन स्थली के लिए अयोध्या की सड़कों का चौड़ीकरण करने के दौरान स्थानीय नागरिकों व विस्थापित दुकानदारों को लेकर सरकार के नुमाइंदों ने कोई चिंता नहीं की। जिनका घर टूटा उनको उचित मुआवजा आज तक नहीं मिला। सरकारी अधिकारियों के निर्देश पर अपना घर छोड़ने वाले नगर वासियों की हालत ऐसी हो गई कि उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं था। अपनी समस्या लेकर जिस दर पर जा रहे थे वहां समाधान के बजाय राम विरोधी न बनने की घुट्टी पिलाया जा रही थी।इसके कारण भाजपा के मूल समर्थक व्यापारी वर्ग ने मतदान से दूरी बना ली। इसके पहले शहर को अपने रीति से नियंत्रित करने का गुमान पालने बयान वीरों ने चैत्र रामनवमी मेला को फ्लाप करने का इतिहास भी रचा। इसकी गूंज बहुत दूर तलक गई। जिसकी आस्था के बदौलत धर्म-कर्म जिंदा है वरना तो आधुनिक भक्तों की उनके धार्मिक पर्यटन तक सीमित है। राज्य सरकार के विकास के दावों की अयोध्या के दामन पर इस कदर कलई खुली कि जनता ने मुँह ही मोड़ लिया। विकास के लंबे चौड़े दावों का एक कोना भी पूरी तरह ठीक नही किया जा सका है। इससे अयोध्या निवासियों को बड़ी दिक़्क़त का सामना करना पड़ रहा है।
इंडिया गठबंधन ने बसपा के कोर वोटर में ऐसे लगाई सेंध
विपक्ष के नेताओं ने आरक्षण के मुद्दे को लेकर ऐसा चक्रव्यूह रचा कि एक तरफ जहां भाजपा उस जाल में फंस गई तो दूसरी ओर बसपा भी भाजपा की 'बी' टीम साबित हो गई। यही कारण रहा कि बसपा के मूल कैडर का वोट बहुत आसानी से सपा कांग्रेस गठबंधन के खाते में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के ही शिफ्ट हो गया। बता दें कि बसपा के वोट बैंक की शिफ्टिंग में एक बड़ा फैक्टर सपा के उम्मीदवार का दलित बिरादरी का होना भी रहा। बसपा उम्मीदवार सच्चिदानंद पाण्डेय सचिन को पांचों विधानसभा में मिलाकर कुल 46,407 वोट मिले। वहीं सीपीआई उम्मीदवार व पूर्व आईपीएस अधिकारी अरविंद सेन भी अपनी पिता की विरासत को गंवा बैठे। उन्हें महज 15,367 वोट मिले।
अवधेश प्रसाद 1977 में पहली बार बने थे विधायक
अवधेश प्रसाद ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत जनता पार्टी से की थी । 1977 में पहली बार अयोध्या जिले की सोहावल विधानसभा से चुनाव जीतकर सदन पहुंचे थे। इसके बाद तो अवधेश प्रसाद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 1985 से लेकर 2022 तक 8 बार विधानसभा चुनाव जीतते रहे। कुल 9 बार विधायक रहे। 2017 में ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। सपा की स्थापना से ही जुड़े रहे अवधेश प्रसाद दलित समाज से आते हैं। अवधेश प्रसाद को विधानसभा में वरिष्ठ सदस्य के रूप में जाना जाता है। अखिलेश यादव के बगल में ही इन्हें बैठने का स्थान दिया गया है। दलित मतदाताओं पर खासी पकड़ होने के साथ-साथ यादव और मुस्लिम का समीकरण इनके साथ रहा है। यही कॉकटेल इस चुनाव में काम कर गया। बता दें कि फैजाबाद लोकसभा सीट पर अब तक हुए 17 चुनावों में कांग्रेस की 7, भाजपा की 5 बार जीत मिली है। जबकि जनता पार्टी, सीपीआई और बसपा को एक बार जीत मिली है। वहीं सपा को दूसरी बार सफलता मिली है। यहां करीब 1.50 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। हिंदू मतदाताओं में सबसे अधिक 7.20 लाख ओबीसी मतदाता हैं। इनमें भी सबसे अधिक यादव हैं। उसके बाद फिर कुर्मी, पाल सहित कई जातियां हैं। एससी मतदाताओं की संख्या 4.70 लाख है तो सामान्य मतदाता भी कम नहीं हैं। इनकी संख्या 5.65 लाख है।