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Ayodhya Ram Mandir: कोठारी बंधु जो राम के काम के लिए अमर हो गये
Ram Mandir Kothari Brothers: अयोध्या आंदोलन के बारे में जो भी लोग थोड़ा बहुत जानते होंगे, उन्हें कोठारी बंधु ज़रूर याद होंगे।
Ram Mandir Kothari Brothers: अयोध्या आंदोलन के बारे में जो भी लोग थोड़ा बहुत जानते होंगे, उन्हें कोठारी बंधु ज़रूर याद होंगे। कोठारी बंधु यानी राम कोठारी। शरद कोठारी। ये वे कार सेवक थे, जिन्होंने न केवल मुलायम सिंह यादव के परिंदा पर नहीं मार पायेगा जैसी गर्वोक्ति को तार तार कर दिया। बल्कि कोठारी भाइयों ने विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ कर 30 अक्टूबर,1990 को सबसे पहले भगवा पताका फहराई । आज इन्हीं कोठारी बंधु के नाम पर सरयू के उत्तर में तक़रीबन दो सौ करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य स्मारक राम-शरद कोठारी स्मृति समिति के नाम से बन रहा है। कोठारी बंधुओं की बहन इसका देख भाल कर रही है। वहीं बहन जिनकी शादी की तैयारियों में शरीक रहने से बेहतर कोठारी बंधुओं ने अयोध्या की कार सेवा में जाना ज़रूरी समझा। यहाँ अयोध्या में राम लला के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को रुकने आदि की बेहतर व्यवस्था दी जानी है। इस स्मारक के लिए धनराशि कोलकाता के व्यापारियों ने चंदे से इकट्ठा की है। क्योंकि इन राम भक्तों पर बंगाल के लोगों को गर्व है। राम-शरद कोठारी को शतत नमन। क्योंकि राम मंदिर के लिए बलिदान देकर वे सदा के लिए अमर हो गये। शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए हैं। अयोध्या में उनकी कथाएँ सुनाई जा रही हैं।
राम मंदिर आंदोलन आज़ादी के बाद पहला और बड़ा जन संघर्ष था। देश भर में यह नारा गूंज रहा था- “राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे। बच्चा बच्चा राम का, जन्म भूमि के काम का।" इन नारों ने पूरे देश को उद्वेलित कर रखा था। विहिप ने कार सेवा का ऐलान कर दिया था। इन नारों ने कोठारी बंधु को ख़ासा प्रभावित किया। लिहाज़ा वर्ष 1990 में कोलकाता निवासी सगे भाई 22 वर्षीय राम कोठारी व 20 साल के शरद कोठारी ने भी भागीदारी का निर्णय लिया। उसी वर्ष दिसंबर के दूसरे हफ़्ते में उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी का विवाह था।
विवादित ढांचे पर दोनों भाइयों भगवा ध्वज फहराया
उनकी योजना थी कि कार सेवा में भाग लेने के बाद वापस लौट कर वे बहन की शादी में सम्मिलित होंगे। हालाँकि उनके पिता चाहते थे कि राम और शरद में से कोई एक आंदोलन में जाए। दूसरा विवाह की तैयारियां देखे। पर राम नाम में रमें दोनों भाइयों ने अयोध्या आने का निर्णय लिया और विवादित ढांचे पर सबसे पहले 30 अक्टूबर को भगवा ध्वज फहराया। इस दिन दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया।
पर दो नवंबर 1990 को हुए गोलीकांड में दोनों भाई बलिदान हो गए। यह भारतीय इतिहास की और असमान्य सदी थी। किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि अगस्त 1990 में शुरू होने वाली घटना इस तरह से सामाजिक परिवर्तन करेगी। आजादी के बाद की स्थिति को पूरी तरह से बदलकर रख देगी। वीपी सिंह की अगुवाई वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को एक साल से भी कम समय हुआ था । पर विरोधाभासी फैसलों के चलते उनकी सरकार पर लगातार खतरा मंडरा रहा था। भीतर और बाहर की चुनौती का सामना करने के लिए उस दौरान वीपी सिंह ने जनता पार्टी सरकार द्वारा गठित मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया। अगस्त में उन्होंने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों या ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण की घोषणा की।
राम मंदिर निर्माण के लिए आडवाणी की रथ यात्रा की घोषणा
हिंदू निर्वाचन क्षेत्र में विभाजन को देखते हुए भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन को हवा दी। लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा की घोषणा कर दी। यह यात्रा 15 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से शुरू हुई। यात्रा को 45 दिनों तक देश के अलग-अलग कोने से होते हुए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। आडवाणी ने फैसला किया था कि वह प्रतिदिन 300 किलोमीटर की यात्रा करेंगे, जिसमें छह सार्वजनिक सभाओं को संबोधित कर राम मंदिर के पक्ष में जनमत तैयार करेंगे। 1989 के आम चुनावों में बीजेपी अयोध्या लहर पर सवार होकर 84 सीटें जीतने में कामयाब हुई।
राम और शरद कोठारी नियमित रूप से कोलकाता में अपने घर के करीब बड़ा बाजार में बुराबार की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखा में जाया करते थे। आरएसएस की तीन साल की होने वाली ट्रेनिंग के दो साल पूरे भी कर लिये थे। 20 अक्टूबर, 1990 को उन्होंने अपने पिता हीरालाल कोठारी को अयोध्या यात्रा की योजना के बारे में बताया। उनके पिता उन्हें इस यात्रा में भेजने के पक्ष में नहीं थे। पर उस समय दोनों ही भाइयों ने यात्रा में जाने का फैसला किया। कोठारी बंधुओं की बहन बताती हैं कि उनके पिता इस शर्त पर सहमत हुए कि दोनों भाई उन्हें हर दिन पत्र जरूर लिखेंगे। अयोध्या जाने से पहले, उन्होंने कई पोस्टकार्ड खरीदे । ताकि वे पत्र लिख सकें। मैंने रोना शुरू कर दिया जब मैंने सुना कि मेरे दोनों भाई अयोध्या जाने वाले हैं।
बहन की शादी में शामिल होने का वादा नहीं पूरा कर सके कोठारी बंधू
पूर्णिमा कहती हैं, उन्होंने मुझसे वादा किया था कि वे वापस आकर मेरी शादी में शामिल होंगे।' 22 अक्टूबर को राम और शरद अयोध्या के लिए एक ट्रेन में सवार हुए। पहले हफ्ते के एक दिन डाकिया आज के कोलकाता के खेलत घोष लेन स्थित एक घर में पोस्टकार्ड लेकर पहुँचता है। बकौल पूर्णिमा कोठारी, “चिट्ठी देख मैं बिलख पड़ी। उसने मॉं और बाबा का ध्यान रखने को लिखा था। साथ ही कहा था कि चिंता मत करना हम तुम्हारी शादी में पहुँच जाएँगे।” यह पत्र था पूर्णिमा के भाई शरद कोठारी का जो अपने बड़े भाई रामकुमार के साथ अयोध्या में 2 नवंबर को ही शहीद हो चुके थे। चिट्ठी शहादत से कुछ घंटों पहले ही लिखी गई थी।
पूर्णिमा की शादी भी उसी साल दिसंबर में हो गई। लेकिन, बहन से किया वादा पूरा करने दोनों भाई घर लौट नहीं पाए। राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। बनारस आकर दोनों भाई रुक गए। सरकार ने गाड़ियॉं रद्द कर दी थी। टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। यहॉं से सड़क रास्ता भी बंद था। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुँचे। 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुँचने वाले शरद पहले आदमी थे।
सरदार इंस्पेक्टर की गोली लगने से दोनों भाई हुए शहीद
दोनों भाइयों के साथ कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले राजेश अग्रवाल के मुताबिक, वे 30 अक्टूबर को तड़के 4 बजे अयोध्या पहुँचे । वे बताते हैं कि मस्जिद की गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा कोठारी बंधुओं ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की दावे की हवा निकाल दी थी। उस दिन दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। फिर आया 2 नवंबर का दिन। दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। एक सरदार इंस्पेक्टर की गोली लगने से दोनों भाइयों ने दम तोड़ दिया।
जगह दिगंबर अखाड़ा और हनुमान गढ़ी चौराहे से दो सौ गज चलिये लाल बिल्डिंग के सामने की थी। इसी लाल बिल्डिंग के सामने कोठरी बंधु शहीद हुए। बेटों की मौत से पिता हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए। उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था।
भाइयों की याद में पूर्णिमा उनके दोस्त राजेश अग्रवाल के साथ मिलकर ‘राम-शरद कोठारी स्मृति समिति’ नाम से एक संस्था चलाती हैं। अब दोनों के नाम पर अयोध्या में सड़क भी होगी। आज मंदिर निर्माण के समय मंदिर के गुम्बदों पर फहर रही केसरिया धर्म ध्वजा देख कर कोठारी बंधु जीवंत हो उठते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं ।)