Ram Mandir Ayodhya: जानिए कौन सी हैं वो चौपाइयां जिसमे सुंदरता से वर्णित है प्रभु राम के वनवास से लौटेने का समय और राज्याभिषेक!

Ram Mandir Ayodhya: भगवान् राम की प्राणप्रतिष्ठा का कार्यक्रम 22 जनवरी को होने वाला है वहीँ क्या आप जानते हैं कि रामचरितमानस में प्रभु श्री राम के आगमन और उनके राज्याभिषेक की चौपाइयां क्या हैं।

Shweta Srivastava
Published on: 21 Jan 2024 5:00 AM GMT (Updated on: 21 Jan 2024 5:00 AM GMT)
Ram Mandir Ayodhya
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Ram Mandir Ayodhya (Image Credit-Social Media)

Ram Mandir Ayodhya: भगवान् श्री राम पूरे 14 वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या आये तो अयोध्यावासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। पूरी अयोध्या दुल्हन की तरह सजाई गयी। इसके बाद उनका राज्य तिलक भी लिया गया। आइये जानते हैं कैसे हुआ था भगवान् का भव्य स्वागत और किसने किया था रामजी का राज्याभिषेक। साथ ही रामचरितमानस में इसको लेकर कौन सी चौपाइयां वर्णित हैं आइये जानते हैं।

प्रभु राम के वनवास से लौटेने और उनके राज्याभिषेक की प्रसिद्ध चौपाइयां

रावण को हराकर अयोध्या लौटने पर श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण का अयोध्यावासियों ने भव्य स्वागत किया था। इसके बाद प्रभु श्री राम का राजतिलक हुआ। उनके राज्याभिषेक की तैयारी गुरु वशिष्ठ के आदेश पर ही शुरू हुई। आइये जानते हैं उनके वनवास से आगमन के बाद और राज्याभिषेक की पौराणिक कथा और रामचरितमानस में वर्णित वो चौपाइयां।

जब श्री राम 14 साल के लम्बे वनवास के बाद अपनी नगरी अयोध्या लौटे तो पूरे नगर ने हर्ष और उल्लास के साथ श्रीराम-लक्ष्मण माता सीता का स्वागत किया। जब अयोध्यावासियों को उनके प्रभु के वापस अयोध्या लौटने की खबर मिली तो पूरी अयोध्या में जश्न का माहौल व्याप्त हो गया था। जिसे बेहद ख़ूबसूरती से तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में वर्णित किया। उन्होंने लिखा,

सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।

चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारी नर बृंद।।

इसका अर्थ है,आनंदकांद श्री राम जी अपने महल को चले। आकाश फूलों की दृष्टि में छा गया। नगर के स्त्री पुरुषों के समूह अटारियों पर चढ़कर उनके दर्शन कर रहे हैं।

कंचन कलस बिचित्र संवारे। सबन्हि धरे सजि निज निजद्वारे ।।

बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मंगल हेतू ।।

इसका अर्थ है,सोने के कलशों को विचित्र ढंग से अलंकृत करके सब लोगों ने अपने अपने दरवाज़े पर रख लिया है। सभी लोगों ने मंगल के लिए बंदनवार, पताका और ध्वज लगाए हैं।

जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥

रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥

इसका अर्थ है, जिनके विरह में आप दिन-रात सोचते (घुलते) रहते हैं और जिनके गुणसमूहों की पंक्तियों को आप निरंतर रटते रहते हैं, वे ही रघुकुल के तिलक, सज्जनों को सुख देनेवाले और देवताओं तथा मुनियों के रक्षक राम सकुशल आ गए।

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥

इसका अर्थ है, शत्रु को रण में जीतकर सीता और लक्ष्मण सहित प्रभु आ रहे हैं; देवता उनका सुंदर यश गा रहे हैं। ये वचन सुनते ही भरत सारे दुःख भूल गए। जैसे प्यासा आदमी अमृत पाकर प्यास का दुःख को भूल जाए।

हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए॥

पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई॥

इसका अर्थ है, इधर भरत भी हर्षित होकर अयोध्यापुरी में आए और उन्होंने गुरु को सब समाचार सुनाया। फिर राजमहल में खबर जनाई कि रघुनाथ कुशलपूर्वक नगर को आ रहे हैं।

सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाईं॥

समाचार पुरबासिन्ह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए॥

इसका अर्थ है,खबर सुनते ही सब माताएँ उठ दौड़ीं। भरत ने प्रभु की कुशलता का कहकर सबको समझाया। नगर निवासियों ने यह समाचार पाया, तो स्त्री-पुरुष सभी हर्षित होकर दौड़े।

दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला॥

भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधुरगामिनी॥

इसका अर्थ है,(राम के स्वागत के लिए) दही, दूब, गोरोचन, फल, फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थालों में भर-भरकर हथिनी की-सी चालवाली सौभाग्यवती स्त्रियाँ (उन्हें लेकर) गाती हुई चलीं।

इसके बाद श्री राम श्री राम के राजतिलक का आयोजन किया गया। आपको बता दें कि गुरु वशिष्ठ ने ब्राह्मणों के साथ मिलकर श्री राम के राजतिलक की योजना बनाई इसके बाद मंत्री सुमंत्र जी ने साभी ब्राह्मणों के साथ मिलकर श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू कर दीं।

अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई॥

राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई॥1॥

इसका अर्थ है, अवधपुरी बहुत ही सुंदर सजाई गई है। देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की झड़ी लगा दी। श्री रामचंद्रजी ने सेवकों को बुलाकर कहा कि तुम लोग जाकर पहले मेरे सखाओं को स्नान कराओ॥1॥

जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई॥

बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे॥2॥

इसका अर्थ है, श्री जानकीजी के सहित रघुनाथजी को देखकर मुनियों का समुदाय अत्यंत ही हर्षित हुआ। तब ब्राह्मणों ने वेदमंत्रों का उच्चारण किया। आकाश में देवता और मुनि 'जय, हो, जय हो' ऐसी पुकार करने लगे॥2॥

प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा॥

सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी॥3॥

इसका अर्थ है, (सबसे) पहले मुनि वशिष्ठजी ने तिलक किया। फिर उन्होंने सब ब्राह्मणों को (तिलक करने की) आज्ञा दी। पुत्र को राजसिंहासन पर देखकर माताएँ हर्षित हुईं और उन्होंने बार-बार आरती उतारी॥3॥

बिप्रन्ह दान बिबिधि बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे॥

सिंघासन पर त्रिभुअन साईं। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं॥4॥

इसका अर्थ है, उन्होंने ब्राह्मणों को अनेकों प्रकार के दान दिए और संपूर्ण याचकों को अयाचक बना दिया (मालामाल कर दिया)। त्रिभुवन के स्वामी श्री रामचंद्रजी को (अयोध्या के) सिंहासन पर (विराजित) देखकर देवताओं ने नगाड़े बजाए॥4॥

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

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मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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