×

Ram Mandir Inside Story: राम मंदिर आंदोलन, बलिदान, सपनों का आकार लेता संसार

Ram Mandir Movement Inside Story: हम आपको अयोध्या आंदोलन की कुछ भूली बिसरी यादें बताते हैं। उनकी यादों को ताज़ा करते हैं, जो इस आंदोलन के समकालीन रहे। पर बीते बत्तीस सालों में जो पीढ़ी आई उसके सामने उस समय के मंजर का चित्र खींचने की कोशिश करते हैं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 7 Jan 2024 6:12 PM IST
Ram Mandir Inside Story Movement Babri Masjid History
X

Ram Mandir Inside Story Movement Babri Masjid History

Ram Mandir Movement: अयोध्या में राम मंदिर कभी एक सपना हुआ करता था। आज यह सपना जब अयोध्या में ज़मीन पर उतर रहा है , तो इससे जुड़ी हुई तमाम कथाएँ और तमाम पात्र का ज़िक्र करते हुए लोग अयोध्या और आसपास में मिल जायेंगे। हम आपको अयोध्या आंदोलन की कुछ भूली बिसरी यादें बताते हैं। उनकी यादों को ताज़ा करते हैं, जो इस आंदोलन के समकालीन रहे। पर बीते बत्तीस सालों में जो पीढ़ी आई उसके सामने उस समय के मंजर का चित्र खींचने की कोशिश करते हैं।

16 सितंबर, 1990 को आज के अयोध्या के हवाई अड्डे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की रैली थी। विहिप और तमाम हिंदू संगठनों ने कार सेवा की कॉल दे दी थी। मुलायम सिंह ने अपने भाषण में अयोध्या में उनकी सरकार द्वारा की गई चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की बात बताते हुए कहा,” ऐसी व्यवस्था की गई है कि परिंदा भी पर मार नहीं सकता है।” यह बात हिंदू जनमानस को बहुत भीतर तक बेध गयी।


हिंदू जनमानस में इस बयान की खासी प्रतिक्रिया हुई। विहिप व हिंदू संगठनों की कार सेवा के लिए आने वालों की तादाद बढ़ गयी। लोग केवल पूजा पाठ करने या कार सेवा करने के लिए ही नहीं पहुँच रहे थे। बल्कि लोग ग़ुस्से से भरे हुए भी थे। उधर कार सेवकों को अयोध्या लाने व पहुँचने व पहुँचाने की तैयारियाँ भी ज़ोरों पर थीं। सभी कारसेवकों को अयोध्या पहुँचने का नक़्शा दिया गया था। यह भी बताया गया था कि अयोध्या व आसपास के किस जगह पर उनकी सहायता के लिए कौन व्यक्ति मिलेगा। कहाँ दाना और कहाँ पानी मिलेगा। सरकार ने अयोध्या जाने वाली सभी रेलें बंद कर दी थी। सड़क परिवहन ठप कर दिया गया था। लेकिन कार सेवक आस पास के स्टेशनों पर उतर कर पैदल कूच कर दिये। धीरे धीरे लाखों कार सेवक अयोध्या में घुस आये। इनके रुकने की व्यवस्था कारसेवक पुरम में की गयी थी। तीस अक्टूबर, 1990 को उमा भारती सिर मुंडा के आई।


अशोक सिघल जी मोटर साइकिल से पुलिस के वेश में आये। ताकि इन दोनों को पुलिस व सुरक्षा बल पहचान न सकें। उमा भारती ने कोतवाली के समाने जुलूस शुरू किया। अशोक सिंहल जी ने हनुमान गढ़ी चौराहे से जुलूस शुरू किया।


कोठारी बंधुओं ने गुंबद पर भगवा ध्वज फहराया


जुलूस में अधिकांश लोग अपने चेहरों और शरीर पर चूना पोते थे ताकि आंसू गैस छोड़ी जाये तो असर न हो। अयोध्या में चारों ओर सरकारी बसें कार सेवकों को गिरफ़्तार कर जेल पहुँचाने के लिए खड़ी की गयी थीं। अयोध्या में हर दस पाँच कदम पर बहुत मज़बूत बैरिकेडिंग की गयी थी। जुलूस आगे बढ़ा तो पता नहीं कहाँ से इन्हें क़रीब की बस के पास खड़ा एक साधु मिल गया। साधु का अता पता आज तक नहीं चला। साधु बस की स्टेयरिंग पर बैठ गया। बस में जुलूस निकाल रहे तमाम कार्यकर्ता भी आनन फ़ानन में सवार हो गये। बस सारे मज़बूत बैरियर तोड़ कर मंदिर के पास पहुँच गयी। बस में सवार होकर मंदिर के क़रीब तक पहुँचे कार सेवक ढाँचे पर चढ़ गये। तोड़फोड़ किये।


कोलकाता के कोठारी बंधुओं ने एक गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा दिया। गुबंद को ऊपरी तौर पर थोड़ी थोड़ी क्षति भी पहुँचा दी। मुलायम सिंह को बता दिया कि कार सेवक क्या कर सकते है? उस समय राजनाथ सिंह स्वतंत्र भारत के संपादक थे। वे संघ से जुड़े थे। वो यह चिल्लाते हुए आये कि हो गयी कार सेवा।

फिर दो ,1990 को कार सेवा करने की बात रखी गयी। दिगंबर अखाड़ा की ओर से हनुमान गढ़ी चौराहे के आगे डेढ़ सौ फ़ीट ज़मीन पर कार सेवक बैठ गये। वे बैठे बैठे ही बढ़ते रहे। इस भीड़ का नेतृत्व विनय कटियार कर रहे थे। चारों ओर शोर शराबा हो रहा था। कहीं से आकर एक सिपाही को पत्थर लग गया। पुलिस सुभाष जोशी फ़ैज़ाबाद के एसएसपी थे। सीआरपीएफ़ का इंस्पेक्टर सरदार था, उसने गोली चलाया। पुलिस उसके बाद पिल गयी। दिगंबर अखाड़ा और हनुमान गढ़ी चौराहे से दो सौ गज चलिये लाल बिल्डिंग के सामने कोठरी बंधु मारे गये। इस गोलीबारी में चौदह और लोगों के मारे जाने की अब तक सूचना मिल सकी है।

1992 का समय आया। कार सेवा का दूसरा चरण । इसमें यह तय हुआ था कि कार सेवक सरयू नदी से जल व बालू लेकर आयेंगे और कार सेवा करेंगे। कारसेवकों के आने जाने का रास्ता भी पहल से तय था। कहाँ कार सेवा करेंगे यह भी तय था। पर कारसेवक बेहद ग़ुस्से में थे। इस बार कार सेवकों को आज के राम मंदिर के बेहद क़रीब राम कथा कुंज में रोका गया था।

जब कार सेवक कारसेवक पुरम में रुके थे, तब वो ढाँचे पर चढ़ने में कामयाब हो गये थे। रामकथा कुंज जिसे एक तरह से मंदिर का गर्भगृह भी कह सके हैं, वहाँ रुके कार सेवक ढाँचे को बख्श देंगे। यह सोचा जाना ही ग़लत था। इस दिन यानी 6 दिसंबर, 1992 को ग्यारह बजते बजते सब लोग रामकथा कुंज में इकट्ठा हो गये।


पहली दिसंबर से पाँच दिसंबर के बीच नल व अंगद टीला पर मकान गिराने का सामान लाकर कुछ कार सेवक ढाँचे को ज़मींदोज़ करने की प्रैक्टिस कर रहे थे। राम कथा कुंज से घोषणा हो रही थी। यही से कार सेवकों को निर्देश दिये जा रहे थे। तकरीबन साढ़े ग्यारह बजे कार सेवक सारे निर्देशों को धता बताते हुए विवादित ढाँचे पर चढ़ गये। दिवार को ऊपर से नहीं गिराये। नीचे से छेद करके ऐसा किये कि ढाँचा गिर गया। सायं पाँच बजे अंतिम ढाँचा गिरा।

वहाँ तैनात सीआरपी व अन्य सुरक्षा बल चुपचाप सारा दृश्य देख रहे थे। क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने गोली चलाने के आदेश ही नहीं दिये थे। तकरीबन चौबीस घंटे तक प्रशासन का कोई अफ़सर देखने तक नहीं आया।

कार सेवकों ने मलबे से मंदिर का एक ढाँचा खड़ा किया

इस बीच कार सेवकों ने मलबे से मंदिर का एक ढाँचा खड़ा कर दिया। इसके लिए कार सेवकों ने हाथ से मसाला बनाया। बग़ल से पानी लिया। राम लला की मूर्ति अयोध्या के राजा विमलेंद्र प्रताप मिश्र के यहाँ से लाकर रख दी गयी। राम लला का पूजा पाठ शुरू हो गया। 7/ 8 की रात को सीआरपीएफ़ के डीआईजी ब्रज मोहन सारस्वत शाल ओढ़े कर आये। घटना स्थल का मुआयना किया। देखा कार सेवकों की संख्या कम है। तब फ़ोर्स लेकर आये मंदिर परिसर को क़ब्ज़ा कर लिया। सबको भगा दिया। 8 तारीख़ को रासुका में विनय कटियार को निरुद्ध करके नैनी जेल भेज दिया।

विहिप सुप्रीम कोर्ट गया कि हमारा मंदिर बना है। हमें पूजा का अधिकार मिलना चाहिए । सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूजा शुरू हो गयी। पच्चीस फ़ीट दूरी से लोग दर्शन करने लगे। बाद में प्रसाद मिलने लगा। टेंट लग गया। दोनों पक्षों के वकील पंद्रह दिन में मौक़ा मुआयना करने लगे।


लेकिन यह कहानी तो 1949 यानी आज़ादी के दो साल बाद से ही शुरू हो गयी थी। 1949 में ही निर्मोही अखाड़े के अभिराम दास ने ढाँचे में भगवान राम की मूर्ति रख दी। और मुक़दमा कर दिया कि राम लला सीखचों में क़ैद हैं। अभी इस अखाड़े के धर्म दास हैं। आगे चलकर राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी। इसके अध्यक्ष गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी बनाये गये। देवकी नंदन अग्रवाल भी इसके सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह को एक पत्र दिया कि राम जन्म भूमि पर जबरन ताला लगा हुआ है। जांच हुई कि आख़िर ताला क्यों और किसके आदेश से लगा है । उस समय तत्कालीन फ़ैज़ाबाद के ज़िलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय थे। ज़िला प्रशासन से लेकर जिला अदालत तक सब जगह खोजने के बाद भी कोई ऐसा काग़ज़ या आदेश नहीं मिला, जिसके कारण ताला लगाना पड़ा हो। यानी ताला लगाने का कोई आदेश नहीं मिला।

मंदिर का शिलान्यास: Photo- Social Media

6, दिसंबर 1992

इस बीच वकील पांडेय जी ने एक मुक़दमा किया। डीएम व एसपी फ़रवरी, 1986 को तलब हुए। तब करमवीर सिंह एसपी थे। इनसे अदालत ने पूछा कि ताला खोलने को लेकर क़ानून व्यवस्था को लेकर किसी अंदेशे की बात है क्या? इन दोनों लोगों ने कहा- नहीं। सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी है। हम देख लेंगे। इसके बाद ताला खोलने का आदेश हो गया। ताला किस आर्डर से लगा यही नहीं मिला, तो यह पता लगना और भी कठिन था कि ताला किसने लगाया? चाबी किसके पास ? वैसे भी ताले में जंग लग गया था। लिहाज़ा ताला तोड़ दिया गया। राम लला के दर्शन व पूजा पाठ के रास्ते खुल गये । उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास का आदेश दे दिया। 1898 में राजीव गांधी ने एक दलित के हाथों मंदिर का शिलान्यास करा दिया। दलित ने पहली ईंट रखी। पर बाद में कांग्रेसी पीछे हट गये। पर बात तो कई कदम आगे बढ़ गई थी। लिहाज़ा यह आंदोलन भाजपा, संघ व विहिप के साथ ही साथ हिंदू संगठनों के हाथ आ गया। फिर 30, अक्टूबर 1990 व 2, नवंबर 1990 की घटनाएँ हुई। 6, दिसंबर 1992 हुआ।

रामजन्म भूमि मंदिर का शिलान्यास

तुष्टिकरण के चलते कांग्रेस ने जो कदम पीछे खींचे थे, उसे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे बढ़ाते हुए 5 अगस्त, 2020 को सर्वोच्च अदालत के फ़ैसले के बाद रामजन्म भूमि मंदिर का शिलान्यास किया।


अब आप सब सत्तर एकड़ भूमि में निर्मित भव्य व दिव्य राम मंदिर में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के 22 जनवरी 2023 को गवाह बनने जा रहे हैं।

(लेखक घटना के चश्मदीद रहे हैं। स्मृति के आधार पर लिखा है। ये लेखक के निजी विचार हैं।लेखक पत्रकार हैं।)

Shashi kant gautam

Shashi kant gautam

Next Story