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आजमगढ़ में जर्जर हुए श्रमदान से बने पुल

seema
Published on: 9 Aug 2019 11:54 AM IST
आजमगढ़ में जर्जर हुए श्रमदान से बने पुल
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आजमगढ़ में जर्जर हुए श्रमदान से बने पुल

संदीप अस्थाना

आजमगढ़: यूं तो मरने के लिए जहर सभी पीते हैं, जिन्दगी तेरे लिए जहर पिया है मैंने। खलील-उर रहमान की ये लाइनें आजमगढ जिले में श्रमदान व आम लोगों के सहयोग से कई पुल बनवाकर लोगों के दिलों को जोडऩे वाले शकील तोवां व बीबी का जेवर गिरवी रखकर पुल बनवाने वाले फिनिहिनी गांव के बेचू चौहान सहित उन सारे लोगों पर सटीक बैठती है जिन्होंने इस नेक काम का बीड़ा उठाया। इतिहास गवाह है किजब भी कोई नेक काम करता है, आम आदमी के लिए जीता है तो उस पर अंगुलियां उठायी जाती है। इन लोगों पर भी अंगुलियां उठीं। आरोप-प्रत्यारोप लगे मगर ये लोग आम आदमी के लिए सब सह गए और विचलित नहीं हुए।

उसी का परिणाम है कि सरकारी फंड को धता बताते हुए लोगों ने जनसहयोग से आजमगढ़ में कई पुल खड़ा कर दिया। आज स्थिति यह है कि इनमें से अधिकांश पुल जर्जर हो चुके हैं, मगर इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। सरकारी अफसर और जनप्रतिनिधि जिस तरह से पुल के निर्माण के दौरान चुप्पी साधे हुए थे, ठीक उसी तरह से वे आज पुल के मरम्मत के नाम पर भी चुप बैठे हुए हैं।

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जनसहयोग से बना पुल टूटने के कगार पर

जनपद के निजामाबाद तहसील क्षेत्र के शिवराजपुर गांव में भी जनसहयोग से इसी तरह का एक पुल बनवाया गया है। तमसा नदी पर बना यह पुल आज टूटने के कगार पर है। शिवराजपुर, मदारपुर, केवटाडीह आदि गांवों को जोडऩे वाले इस पुल को गांव के लोगों ने खून पसीना बहाकर बनाया है। इसमें सरकार का एक पैसा भी नहीं लगा है। पुल के दोनों तरफ जो रास्ता बनाने के लिए दीवार बनायी गयी है वो फट चुकी है। एक तरफ की गिर भी चुकी है। किसी दिन बड़ा हादसा भी हो सकता है। ऐसे में तीनों गांव का आवागमन बाधित हो सकता है। सब मिलाकर शिवराजपुर गांव में वर्ष 2007 में श्रमदान से बना यह पुल पूरी तरह से खस्ताहाल हो गया है। श्रमदान व जनसहयोग से यह पुल शकील तोवां ने बनवाया था। इस पुल को बनाने में सबसे बड़ा आर्थिक सहयोग इसी जिले के रहने वाले वापी, गुजरात के प्रमुख उद्योगपति रहे मरहूम इसरारूल हक साहब ने दिया था।

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मरम्मत के प्रति प्रशासन उदासीन

शिवराजपुर के लोग इस पुल के निर्माण को लेकर काफी उत्साहित थे और हर किसी ने तन, मन, धन से सहयोग दिया था। हर किसी के अंदर बस एक ही इच्छा थी कि जल्द से जल्द पुल बनकर तैयार हो जाए। हाजी अख्तर अली, मरहूम सज्जाद अहमद, मरहूम डा सैफुल्लाह साहब, अब्दुल बहाव, मुहिद्दीन, यूसुफ, शब्बीर अहमद पुल का निर्माण शुरू होने से लेकर काम खत्म न होने तक लोगों का हौसला बढ़ाते रहे। जो जिस लायक था उससे वे सहयोग की अपील कर रहे थे। आज जब यह पुल टूटने के कगार पर है तो शिवराजपुर और उसके आसपास की हर आंख उदास है। सभी पुल को निहार रहे हैं मगर किसी विधायक, सांसद व अधिकारी को आम आदमी की उदासी और उसके जज्बात से कोई लेना-देना नहीं दिख रहा है। इसी तरह से शकील तोवां के नेतृत्व में श्रमदान व जनसहयोग से जिले में जो भी दर्जन भर पुल बनवाए गए हैं, वे सभी जर्जर हो गए हैं। इन जर्जर हो चुके पुलों की मरम्मत करवाने वाला कोई नहीं है। सरकार उदासीन व अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। शायद आमजन को पुल बनवाने वाले शकील तोवां से ही मरम्मत की भी आस है।

बीबी का जेवर गिरवी रखकर पुल बनवाया

पुल बनवाने के लिए बीबी का जेवर गिरवी रख दिया था। समाज के लिए यह जीवट का काम किया था आजमगढ़ जिले के फिनिहिनी गांव निवासी बेचू चैहान ने। वजह यह रही कि फिनिहिनी गांव में ही बेचू के पिता रामू चैहान ने अपने पैसे से पुल बनवाया था। यह पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका था। ऐसे में अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए बेचू ने उसी जगह पर सात पावे का पुल बनवा दिया। आज जबकि यह पुल जर्जर हो चुका था और कोई इसकी मरम्मत कराने वाला नहीं रहा तो बेचू ने अपना लाखों रुपये करके इसकी मरम्मत करवा दी।

सिर्फ आश्वासन ही मिला

जिले के मेहनगर तहसील क्षेत्र में गाजीपुर जिले के बार्डर पर एक छोटा सा गांव है फिनिहिनी। बार्डर का गांव होने के कारण यह आज भी उपेक्षित है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस इलाके के लोग बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। देश की आजादी के बाद से लेकर अब तक स्थितियां एक समान हैं। स्थितियां यह थीं कि शेरपुर कुटी-बोंगरिया मार्ग पर स्थित इस गांव में 40 साल पहले कोई पुल नहीं था। ऐसे में इस इलाके के लोगों को तैरकर नदी पार करना पड़ता था। बरसात के दिनों में बाढ़ के पानी से जब नदी उफान पर होती थी तो लोगों की काफी फजीहत होती थी। बाढ़ के पानी में डूबकर अक्सर जिन्दगियां थम जाया करती थीं। इस इलाके के लोगों ने उस समय तमाम जनप्रतिनिधियों से संपर्क साधा। यहां तक कि इस जिले के रहने वाले रामनरेश यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल में इसी जिले के मो.मसूद खां पीडब्लूडी मंत्री थे, लोग उनसे भी मिले। बावजूद इसके हर जगह यहां के लोगों को बस आश्वासनों की ही घुट्टी पिलाई गयी।

रामू चौहान ने लिया पुल बनवाने का संकल्प

ऐसी स्थिति में इस इलाके के लोगों ने जनप्रतिनिधियों से पुल मिलने की आस छोड़ दी। फिनिहिनी गांव के रहने वाले रामू चौहान ने तो 40 साल पहले बगैर किसी स्वार्थ के समाज के लिए जो कदम उठाया, वह अविस्मरणीय माना जाता है। वजह यह कि उन्होंने अपने दम पर इस पुल को बनाने का संकल्प लिया। अपने संकल्प को पूर्ण करने के लिए उन्होंने गांव के ही रहने वाले सीता पांडेय से सात बिस्वा जमीन की रजिस्ट्री कराई और उस जमीन को पुल को जोडऩे वाले रास्ते के लिए दे दिया। साथ ही पुल का निर्माण कार्य पूर्ण करा दिया। सात पावे का बना यह पुल दर्जनों गांवों को जोड़ता था तथा प्रतिदिन इस पुल से हजारों लोग गुजरते थे।

मरम्मत में नहीं ली एक पैसे की मदद

एक दशक पहले यह पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका था। ऐसे में लोग जनप्रतिनिधियों से मिले। हर चुनाव में नेताओं ने इस इलाके के लोगों से इस पुल को बनवाने का वादा किया। यह अलग बात है कि चुनाव बाद हर नेता वादा भूल गया। ऐसे में इस पुल को बनवाने वाले स्व. रामू चौहान के बेटे बेचू चौहान ने अपने पैसे से इस पुल का निर्माण शुरू करा दिया। पुल के निर्माण के दौरान पैसों की कमी पड़ी तो एक लाख में पत्नी का जेवर गिरवी रख दिया। फिलहाल तमाम दुश्वारियों के साथ सात पावे का पुल बनकर तैयार हो गया। इस काम के लिए बेचू ने किसी से एक पैसे की मदद नहीं ली।

धंसे पुल से गिरी कार तो करा दी मरम्मत

फिनिहिनी गांव स्थित इस जर्जर हो चुके पुल के अचानक डेढ़ दशक पहले धंस जाने की वजह से एक कार गिर गयी। इसे कुदरत की माया ही कहा जाएगा कि कुछ ही नीचे जाकर कार अटक गयी। कार में आधा दर्जन लोग सवार थे। यदि कार नीचे गिरती तो शायद उस पर सवार कोई व्यक्ति जीवित नहीं बचता। टूटे पुल के सरिये में कार के अटक जाने के बाद गांव के लोग जुटे। ग्रामवासी बेचू चौहान ने क्रेन, ट्रैक्टर आदि मंगाकर कार को खिंचवाया और उसी दिन अपने पिता द्वारा बनवाए गए इस पुल के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। कुछ ही दिनों में उनका संकल्प पूरा हो गया और पुल बनकर तैयार हो गया। मौजूदा समय में यह पुल फिर जर्जर हो चुका था। इस बरसात की शुरुआत में इस पुल से चलना काफी मुश्किल था। यही वजह रही कि बरसात में आमजन की दिक्कतों को देखते हुए अपना लाखों रुपया खर्च करके उन्होंने इस पुल की मरम्मत करवा दी।

समाज के लिए कुछ करना ही मकसद

अपने गांव व इलाके के लिए इतना सब कुछ करने के पीछे बेचू की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी नहीं है। वह अपना ईंट भ_ा चलाने के साथ अपने पिता के नाम पर परसूपुर दौलताबाद गांव में श्री रामू चौहान प्राथमिक विद्यालय चला रहे हैं।बेचू चौहान का कहना है कि समाज के लिए कुछ न करें तो जीवन का अर्थ ही क्या है। उनका कहना है कि सुन्दर मकान बनाने से क्या फायदा, उससे समाज तो लाभान्वित नहीं होता है। बेचू कहते हैं कि यह पुल मेरे लिए किसी मंदिर से कम नहीं है। उनका कहना है कि उनके पिता द्वारा बनवाया गया यह पुल उनके लिए एक धरोहर है। वह इसका अस्तित्व खत्म नहीं होने देंगे। बेचू कहते हैं कि समाजसेवा की प्रेरणा उनको अपने पिता से मिली है। वह अभी समाज के लिए कर ही क्या पाए हैं। बेचू कहते हैं कि अपने लिए तो सभी जीते हैं मगर अपने लिए जीना भी क्या जीना है। ऐसी जिन्दगी तो जानवर भी जी लेते हैं। दूसरों के लिए जिन्दगी जीने वाले लोग ही सही मायने में इंसान कहलाने के काबिल होते हैं।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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