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दुखद : आजमगढ़ में गरीबी के कारण विक्षिप्त अधेड़ की नहीं हो पा रही रिहाई
संदीप अस्थाना की स्पेशल रिपोर्ट
आजमगढ़। मेरे पिया गये रंगून, न चिट्ठी लिखी न टेलीफून...। एक पुराने फिल्मी गीत को अगर तोड़-मरोडक़र इस तरह से प्रस्तुत किया जाए तो इन शब्दों में आजमगढ़ की एक सच्ची व्यथा व्यक्त होती है। आजमगढ़ का एक विक्षिप्त अधेड़ न जाने कैस म्यांमार पहुंच गया और फिर वहां से भारत तो पहुंच गया मगर अभी तक यहां स्थित अपने घर नहीं पहुंच पाया है। वह इंफाल में जेल की हवा काट रहा है। परिवार के पास इतने पैसे तक नहीं है कि उसकी जमानत कराकर उसे घर वापस लाए।
यह व्यथा कथा है आजमगढ़ जिले के दीदारगंज थाना क्षेत्र के गोसड़ी गांव के रहने वाले 45 वर्षीय मेवालाल राजभर पुत्र हरिलाल राजभर की। पिछले पांच वर्षों से वह विक्षिप्तता का जीवन जी रहा है। ऐसा नहीं है कि वह बचपन से पागल था। गरीबी के दलदल में धंसने और पारिवारिक जिम्मेदारियां बढऩे के बाद भाइयों ने उसे अलग कर दिया। मां-बाप ने भी विपत्ति की इस घड़ी में मुंह मोड़ लिया।
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अपनी पत्नी व चार संतानों के साथ मेवालाल अपनी पुश्तैनी जमीन के थोड़े से हिस्से में झोपड़ी डालकर रहने लगा। गोसड़ी जैसे पिछड़े गांव में उसे काम के एवज में मजदूरी मिलना भी काफी मुश्किल होता है। इस कारण परिवार की ठीक से परवरिश नहीं हो पा रही थी। इन्हीं समस्याओं में जकड़ा मेवालाल पागलपन का शिकार हो गया। ऐसी स्थिति में मेवालाल के दवा-इलाज व परिवार के परवरिश की पूरी जिम्मेदारी उसकी पत्नी ज्ञानती पर आ गयी।
मेवालाल के मां-बाप, भाई व अन्य परिजन पहले से ही मुंह मोड़े हुए थे। उसके विक्षिप्त होने पर भी उन्होंने तरस नहीं खाया और मेवालाल व उसके परिवार को उनके हाल पर ही छोड़े रखा। ऐसे में पति व बच्चों के पेट की अगन बुझाने से लेकर दवा-इलाज तक के सारे खर्चों के लिए हाड़-तोड़ मजदूरी करना ज्ञानती की नियति बन गयी।
पागलपन में पत्नी पर किया था हमला
मेवालाल के ऊपर जब पागलपन का दौरा पड़ा तो उसने पहला हमला अपनी पत्नी ज्ञानती पर ही बोला। उसने कुल्हाड़ी से अपनी पत्नी के सिर पर प्रहार कर दिया। खून से लतपथ ज्ञानती बेहोश हो गयी। वह तो दिन का समय था और ज्ञानती घर के बाहर मौजूद थी। ऐसे में उसके हमला करने के बाद तत्काल गांव के लोगों ने उसे पकड़ लिया। मेवालाल तो ज्ञानती को कुल्हाड़ी से काट ही डालता मगर गांव के लोगों की सक्रियता से उसकी जान बच गयी। ज्ञानती को गंभीर चोटें आयी थी मगर परिवार की समस्या को देखते हुए वह मजदूरी करना नहीं छोड़ी।
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दो साल पहले अचानक हो गया लापता
दो साल पहले मेवालाल अचानक लापता हो गया। ज्ञानती ने अपने पति की खोज के लिए हर दरवाजा खटखटाया। थाना, कचहरी उसने देखा नहीं था। ऐसे में गांव के बड़े आदमियों के यहंा रोने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था। गांव के बड़े लोगों ने उसका साथ भी दिया। वह लोग आॢथक मदद देकर हर संभावित स्थान पर उसकी खोज करवाये, साथ ही थाने में गुमशुदगी दर्ज करवाये। यह अलग बात है कि इन सारी कार्रवाइयों का कोई निष्कर्ष नहीं निकला। पति के लापता होने के दर्द के बीच ज्ञानती अपने चार बच्चों सोनू उम्र 8 वर्ष, मोनू उम्र 6 वर्ष, गोलू उम्र 4 वर्ष व शुभम उम्र 2 वर्ष को जिलाती-खिलाती चली आ रही है।
जाने कैसे पहुंच गया म्यांमार
दो वर्ष पहले पागलपन की स्थिति में अचानक घर से लापता हुआ मेवालाल राजभर न जाने कैसे म्यांमार पहुंच गया। पैसे, वीजा व पासपोर्ट न होने से उसका म्यांमार पहुंचना हर किसी को हैरत में डाले हुए है। वहां सुरक्षा एजेंसियों ने मेवालाल को पकड़ लिया। सुरक्षा एजेंसियों को जब यह यकीन हो गया कि यह विक्षिप्त है तो उन्होंने उसे असम रायफल्स को सौंप दिया। असम रायफल्स ने उसे इंफाल पुलिस के हवाले कर दिया। इंफाल पुलिस ने किसी तरह से उसका ब्योरा पता किया। इसके बाद इंफाल पुलिस उसे कोर्ट ले गयी और आग्रह किया कि उसे छोड़ दिया जाए। कोर्ट ने यह कहते हुए उसे छोडऩे से इनकार कर दिया कि अभी तो वह पागलपन में म्यांमार चला गया था। मित्र देश होने के कारण उसने उसे भारत के हवाले कर दिया।
परिवार व रिश्तेदारों ने खड़े कर दिए हाथ
इंफाल पुलिस के जाने के बाद मेवालाल की पत्नी ज्ञानती ने अपनी सास पनियारी, ससुर हरिलाल के साथ ही अपने पति के दोनों बड़े भाइयों नन्दलाल व सुक्खू से मदद की गुहार लगाई। अपने पति को किसी भी तरह से छुड़ा लाने को कहा मगर किसी का दिल नहीं पसीजा। सभी ने आॢथक तंगी की बात कहकर हाथ खड़े कर दिये। ज्ञानती हिम्मत हारने वालों में नहीं थी। उसने इसी जिले के दुर्वासा इलाके के सुल्तानपुर गांव स्थित अपने मायके से भी मदद मांगी मगर वहंा भी बात नहीं बनी। ज्ञानती के भाइयों ने भी पैसे न होने का हवाला दिया। ये भी पढ़ें: हाय रे लालच! दहेज के लिए रोज सहती थी जुल्म, आखिरकार लगा ही ली फांसी
अब ज्ञानती के साथ खड़ा हुआ है समाज
हर जगह से थक-हार जाने के बाद ज्ञानती ने गांव के बड़े लोगों का दरवाजा खटखटाया। गांव का हर बड़ा आदमी उसे आॢथक मदद देने के लिए तैयार हो गया। सबसे बड़ी मदद गांव के सामाजिक कार्यकर्ता मनोज सिंह ने की। उन्होंने गांव व इलाके के कई सम्पन्न लोगों से उसे आॢथक मदद दिलाई। इसके साथ ही आजमगढ़ जिला मुख्यालय के अपने संबंधों का इस्तेमाल करते हुए लोगों को आॢथक मदद देने के लिए प्रेरित किया। समाजसेवी मनोज सिंह के आग्रह पर ही आजमगढ़ की दो अग्रणी सामाजिक संस्थाएं भारत रक्षा दल व प्रयास इस गरीब को हर संभव मदद देने को तैयार हो गयी हैं।
गरीबी देखकर इंफाल पुलिस भी हुई भावुक
मेवालाल के गांव में उसके बाबत छानबीन करने आई इंफाल पुलिस भी उसके परिवार की गरीबी को देख भावुक हो उठी। वहंा से आए इंस्पेक्टर ने परिवार के सदस्यों व गांव के लोगों का बयान लिया। सबके बयान से यह साफ हो गया कि वह विक्षिप्त है। पत्नी ने रोते हुए बताया कि उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। ऐसे में वह इतनी दूर से अपने पति को जमानत पर छुड़ाकर कैसे लाए।
आने-जाने व कोर्ट-कचहरी के लफड़े में भी पैसे खर्च होंगे। इन स्थितियों के बीच इंफाल से आये इंंस्पेक्टर ने मेवालाल की पत्नी ज्ञानती को अपना मोबाइल नम्बर देते हुए यह आश्वासन दिया कि वह किसी को लिवाकर आए। उसके रहने-खाने व वकील की व्यवस्था वह कर देंगे। यह अलग बात है कि पत्नी इतने पैसे का भी जुगाड़ नहीं कर सकी है। ऐसे में मेवालाल अभी भी इंफाल की जेल में जिन्दगी के दिन काट रहा है।