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ऐसा भी है एक बाबा, जो जंजीरों में जकड़कर करता है मरीजों का इलाज

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 'मेक इन इंडिया' का नारा देकर लोगों को जगा रही है, लेकिन 21 वीं सदी के देशवासी अब भी 20वीं सदी के तौर तरीकों के साथ अपनी जिंदगी जी रहे। जिले के जामो थाने से 14 किलोमीटर दूर बनी बाबा झाम दास की कुटिया की तस्वीरें इसका प्रमाण हैं।

priyankajoshi
Published on: 10 Sept 2017 10:10 AM IST
ऐसा भी है एक बाबा, जो जंजीरों में जकड़कर करता है मरीजों का इलाज
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अमेठी: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 'मेक इन इंडिया' का नारा देकर लोगों को जगा रही है, लेकिन 21 वीं सदी के देशवासी अब भी 20वीं सदी के तौर तरीकों के साथ अपनी जिंदगी जी रहे है। जिले के जामो थाने से 14 किलोमीटर दूर बनी बाबा झाम दास की कुटिया की तस्वीरें इसका प्रमाण हैं।

यहां बाबा आने वाले पेशेंट का ट्रीटमेंट जंजीरों में जकड़कर करता है। जिसे देख कर बड़ा सवाल उठता है क्या बीजेपी के मेक इन इंडिया की तस्वीर ऐसी ही है?

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जामो के बाबा झाम दास की कुटिया का मामला

अमेठी के जामो थाना क्षेत्र से लगभग 14 किलोमीटर स्थित बाबा झाम दास की कुटिया के बारे में अमेठी का ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो नहीं जानता। पागल, मानसिक रूप से विक्षिप्त ऐसे सभी व्यक्तियों का इलाज बाबा झाम दास की कुटिया में दशकों से हो रहा है। लेकिन इलाज का जो तरीका है वो हैरान करने वाला है और इस पर उंगलियां भी उठ रही हैं।

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जंजीर से बांधकर करते है इलाज

लोगों की मानें तो यहां की मान्यता है कि वो व्यक्ति जो मानसिक रूप से परेशान हैं या कि जिन्हें पागल घोषित कर दिया जाता है उनका इलाज बाबा झाम दास की कुटिया पर किया जाता है। लोगों की मानें तो इलाज के नाम पर मरीज के गले में लोहे से बनी जंजीर पहना बांस के सहारे उन्हें पेड़ से बांध दिया जाता है। यही नहीं इन व्यक्तियों को कुटिया में बने हौज में सुबह और शाम नहलाने के लिए खोला जाता है, और फिर बाबा की समाधि का दर्शन करा दोबारा बांध दिया जाता है।

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प्रत्येक पूर्णमासी को लगता है बड़ा मेला

स्थानीय लोगों की मानें तो यहां आज से नहीं बल्कि दशकों से यहां लोगों का इलाज चल रहा है। यहां की पुजारिन की मानें तो दूर-दूर से वो लोग यहां आते हैं जिनका इलाज कहीं नहीं हो पाता है, और फिर वो यहां से ठीक होकर जाते हैं। इलाज के नाम पर केवल मरीज को जंजीरों में जकड़ा जाता है और बाबा की भभूत खिलाई जाती है और सुबह शाम नहलाया जाता है। यही नहीं यहां प्रत्येक पूर्णमासी को बड़ा मेला लगता है और केवल दिमागी रूप से परेशान लोगों का इलाज ही नहीं बल्कि श्वान के काटने का भी इलाज यहां होता है। लोगों की माने तो श्वान के काटने पर भी लोग पागल हो जाते हैं, लेकिन यहां वह भी ठीक होकर जाते हैं।

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फिलहाल, आज के हाईटेक जमाने में इस तरह का इलाज कहां तक सही है, इसे आप बेहतर समझ सकते हैं। लोग डॉक्टर पर कम और ऐसे बाबाओं का ज्यादा यकीन करते हैं और इलाज कराते हैं। इस मामले पर न तो वहां के स्थानीय नेता कुछ कहते हैं और न ही प्रशासन, सभी मौन हैं। कोई भी ऐसे इलाज और बाबा को लेकर बोलना नहीं चाहता है।

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इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

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