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Babri Masjid Demolition History: 6 दिसंबर को ऐसा क्या हुआ था जिसे भूलाना मुश्किल है, आइए जानते हैं
Babri Masjid Demolition History: इस घटना के पीछे कई राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारण थे। 1980 के दशक में बीजेपी और हिंदू संगठनों ने बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को प्रमुखता दी।
Babri Masjid Demolition History: 6 दिसंबर, 1992 भारतीय इतिहास का एक अहम और विवादास्पद दिन था, जब अयोध्या में स्थित बाबरी मस्जिद को एक बड़े विवाद और हिंसा के बाद ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना के परिणामस्वरूप देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे और हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ गया। बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने का घटनाक्रम भारतीय राजनीति, धर्म, और समाज के लिए गहरे निहितार्थ लेकर आया। इसके परिणामस्वरूप न केवल राजनीतिक और कानूनी विवाद बढ़े, बल्कि सांप्रदायिक हिंसा और सामाजिक ध्रुवीकरण भी हुआ। यह घटना आज भी भारतीय राजनीति और समाज के कई पहलुओं में चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है।
बाबरी मस्जिद का इतिहास और विवाद
बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में मुग़ल सम्राट बाबर के आदेश पर हुआ था। इस मस्जिद के निर्माण को लेकर विवाद यह था कि इसे उसी स्थान पर बनवाया गया था, जहाँ हिंदू विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्म हुआ था। हिंदू समुदाय का कहना था कि वहां एक प्राचीन मंदिर था जिसे विध्वंस कर मस्जिद बनाई गई थी। इस विवाद का मुद्दा वर्षों से अदालतों और राजनीतिक मंचों पर चर्चा का विषय बना रहा।
6 दिसंबर, 1992 की घटनाएँ
1990 के दशक में भारतीय राजनीति में खासकर उत्तर भारत में एक नया मोड़ आया। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण की मांग को जोर-शोर से उठाना शुरू किया। इसके तहत 6 दिसंबर,1992 को लाखों की संख्या में कारसेवक (हिंदू कार्यकर्ता) अयोध्या पहुंचे, जिनका उद्देश्य बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना था।
दिन के दौरान, कारसेवकों की बड़ी भीड़ ने बाबरी मस्जिद पर आक्रमण किया और उसे ध्वस्त कर दिया। सुरक्षा बलों और प्रशासन की उपेक्षा में, कारसेवकों ने मस्जिद की दीवारों और गुंबदों को तोड़ दिया, जिससे मस्जिद पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। इस घटना ने एक गंभीर सांप्रदायिक तनाव को जन्म दिया और देशभर में हिंसा फैल गई।
कारण और कड़ी घटनाएँ
इस घटना के पीछे कई राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारण थे। 1980 के दशक में बीजेपी और हिंदू संगठनों ने बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को प्रमुखता दी। इसके तहत, राम जन्मभूमि आंदोलन ने देशभर में ज़ोर पकड़ लिया और इसके परिणामस्वरूप हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ने लगा।
राम जन्मभूमि आंदोलन (1980-1990)
1980 के दशक में, बीजेपी और VHP ने राम जन्मभूमि के मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बना दिया। 1986 में, अयोध्या में हिंदू पक्ष की अपील पर जिला अदालत ने बाबरी मस्जिद के दरवाजों को खोलने का आदेश दिया, जिससे हिंदू भक्तों को अंदर जाने की अनुमति मिली। इसके बाद से, राम मंदिर के निर्माण की मांग तेज हो गई।
1989 में कारसेवा और क्यूमल मंडल आयोग रिपोर्ट
1989 में बीजेपी ने चुनावी मुद्दे के रूप में राम मंदिर को उठाया। इसके बाद, 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा निकाली, जो हिंदू भावनाओं को भड़काने और समर्थन जुटाने का एक बड़ा कदम था। इस यात्रा के दौरान कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार में सांप्रदायिक हिंसा हुई।
6 दिसंबर,1992 के बाद की घटनाएँ और कानूनी मामले
हिंसा का फैलाव: बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद, देशभर में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई। मुंबई, दिल्ली, गुजरात, और उत्तर प्रदेश समेत कई स्थानों पर दंगे भड़क उठे, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के बाद इस मामले पर कई कानूनी और राजनीतिक बहसें हुईं। हाई कोर्ट कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और यह आदेश दिया कि बाबरी मस्जिद स्थल को हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच समान रूप से बांटा जाए। हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने 2019 में राम जन्मभूमि मामले पर अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी गई और मुस्लिमों को अयोध्या में एक अलग स्थान पर मस्जिद बनाने की बात कही।
जिम्मेदार नेता और पार्टी: लाल कृष्ण आडवाणी (बीजेपी) ने राम रथ यात्रा के जरिए राम मंदिर के निर्माण को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया था और बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के प्रमुख नेताओं में से एक थे।उमा भारती भी इस आंदोलन में प्रमुख नेता थीं। उन्होंने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई।विनय कटियार भी इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे और बाबरी मस्जिद के ध्वस्तीकरण में सक्रिय रूप से शामिल थे।इस घटना के बाद, कई राजनीतिक नेता और संगठनों ने इस घटना को भड़काने और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए आलोचना की। इस घटनाक्रम में बीजेपी और उसके सहयोगियों को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसके बाद की प्रतिक्रियाएँ
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाया। यह फैसला भारतीय न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि यह दशकों पुराने विवाद का समाधान कर रहा था, जो धार्मिक और सांप्रदायिक दृष्टिकोण से बहुत संवेदनशील था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा। यह भूमि हिंदू समुदाय को दी जाएगी, क्योंकि अदालत ने माना कि वहां पहले एक मंदिर था और हिंदू समुदाय का दावा मजबूत था।
मुस्लिम समुदाय के लिए अयोध्या में ही एक अलग स्थान पर मस्जिद बनाने की अनुमति दी गई। यह स्थान एक सार्वजनिक ट्रस्ट द्वारा मुस्लिमों को सौंपा जाएगा, ताकि वे वहां मस्जिद बना सकें।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान और कानून के तहत निर्णय लिया और यह कहा कि किसी भी स्थान पर पूजा स्थल को तोड़कर उसे बदलने का इतिहास नहीं होना चाहिए। लेकिन, कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों समुदायों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
फैसले के बाद की प्रतिक्रियाएँ
हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया:राम मंदिर के निर्माण की अनुमति मिलने के बाद विशेष रूप से, भाजपा और अन्य हिंदू संगठनों ने इसे अपनी बड़ी जीत के रूप में देखा। । अयोध्या में भी भारी संख्या में लोग एकत्रित हुए और दीप जलाए गए। कई श्रद्धालुओं ने इस फैसले को 'धार्मिक विजय' के रूप में देखा।5 अगस्त,2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। इस मौके पर अयोध्या में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया, जिसमें मंदिर निर्माण की शुरुआत की गई।
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया:मुस्लिम समुदाय ने फैसला स्वीकार किया। लेकिन कुछ ने इसे निराशाजनक बताया। हालांकि, कई मुस्लिम नेताओं ने यह भी कहा कि वे अदालत के फैसले का सम्मान करेंगे और मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक स्थान को स्वीकार करेंगे। मस्जिद के निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने की प्रक्रिया 2020 में शुरू हुई। यह मस्जिद निर्माण एक शांतिपूर्ण तरीके से किया जाएगा और मुस्लिम समुदाय इस पर सहमति में था।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ:फैसले के बाद, भारतीय राजनीति में भी विभाजन और चर्चा का माहौल था। बीजेपी ने फैसले का स्वागत किया और इसे धर्मनिरपेक्षता और भारतीय न्यायिक प्रणाली की जीत बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फैसले के बाद कहा कि यह भारत के लोकतांत्रिक और संविधानिक मूल्यों के अनुरूप है।विपक्षी दलों और कुछ अन्य सामाजिक संगठनों ने फैसले की आलोचना की और इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर बढ़ने का कदम माना।
कानूनी मामले और आरोप: इसमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता जैसे लाल कृष्ण आडवाणी, डॉ मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, और अन्य नेताओं का नाम शामिल था।2020 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की अदालत ने बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया, यह फैसला भी विवादों का विषय बना।
विवाद का मुख्य कारण
आंदोलन के दौरान राजनीति का हस्तक्षेप: इस विवाद को राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। जब बीजेपी और संघ परिवार ने राम मंदिर के निर्माण को अपना मुख्य मुद्दा बनाया, तो यह एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया। इस आंदोलन को 'हिंदुत्व' के एजेंडे के रूप में देखा गया, जो अंततः बीजेपी को सत्ताधारी पार्टी बनाने में सहायक साबित हुआ।
कारसेवकों का आक्रोश और प्रशासन की चुप्पी: 6 दिसंबर, 1992 को जब कारसेवक बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई कर रहे थे, तब राज्य और केंद्र सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई थी। यहाँ तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे यह सवाल खड़ा हुआ कि क्या इस घटना को रोकने की सचमुच कोशिश की गई थी, या फिर इसे जानबूझकर होने दिया गया।
विवाद के सांप्रदायिक पहलू: इसने भारतीय समाज को दो गहरे खंडों में बाँट दिया: एक पक्ष जिसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से राम मंदिर का निर्माण अत्यंत आवश्यक लगता था, और दूसरा पक्ष जो इसे सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी मानता था। इस ध्रुवीकरण ने न केवल हिंदू-मुस्लिम संबंधों को प्रभावित किया, बल्कि इसके दूरगामी प्रभाव भारतीय राजनीति, मीडिया और सांस्कृतिक संवाद पर भी पड़े।
कानूनी प्रक्रियाओं की धीमी गति: बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के बाद लगभग दो दशकों तक कानूनी प्रक्रियाएँ लंबित रही। इस दौरान, सैकड़ों मुकदमे चल रहे थे, जिनमें कई प्रमुख राजनेताओं और हिंदू संगठनों के नेताओं को आरोपी बनाया गया। इस फैसले को लेकर भी कई तरह की आलोचनाएँ सामने आईं, क्योंकि कई लोगों ने इसे 'अपराध का समर्थन' और 'न्याय का मजाक' करार दिया।
विकसित देशों में संदर्भ: बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के बाद भारत को एक 'धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र' के रूप में अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को पुनर्निर्मित करनी पड़ी। खासकर पश्चिमी देशों में भारत के लोगों की इस घटनाक्रम पर निगाहें थीं। यह भी देखा गया कि समाज और राजनीतिक संगठनों ने इस विवाद को कैसे हैंडल किया।
सुप्रीम कोर्ट का 9 नवंबर, 2019 का फैसला बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद का एक ऐतिहासिक समाधान था। इस फैसले ने धार्मिक समुदायों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की। लेकिन इसके परिणामस्वरूप कुछ समुदायों में नाराजगी और तनाव भी देखा गया। यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता और उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखने का एक उदाहरण था।6 दिसंबर, 1992 की बाबरी मस्जिद ध्वस्तीकरण की घटना ने भारतीय समाज और राजनीति में गहरी धुरियां पैदा कीं। इसने न केवल धार्मिक और सांप्रदायिक मतभेदों को बढ़ाया, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाए।बाबरी मस्जिद की घटना और उसके परिणाम आज भी भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।