सहारनपुर : दो दशक से अधिक समय से न्यायालय में निर्णय की बाट जोह रहे हिंदुस्तान के सबसे संवेदनशील बाबरी मस्जिद व रामजन्म भूमि मामले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जगदीश सिंह खेहर की टिप्पणी ‘कि दोनों समुदायों के पक्षकार विवाद का निपटारा कोर्ट से बाहर आपसी बातचीत से करें’ पर देवबंदी उलेमा ने आखिरी फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर छोड़ दिया है। उलेमा ने कहा कि इससे पूर्व कई बार बातचीत के प्रयास हो चुके हैं, जिनका कभी कोई परिणाम नहीं निकला।
विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षा केंद्र दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने जस्टिस खेहर की टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकार है और वह इस मामले में मुसलमानों की नुमाइंदगी कर रहा है। इसलिए जब तक बोर्ड का कोई निर्णय नहीं आ जाता सभी को खामौशी से इंतजार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बोर्ड को निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। और हर स्थिति में देश का मुसलमान मुस्लिम पर्सनल-लॉ-बोर्ड के साथ खड़ा है।
जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि जमीयत उलेमा ए हिंद बाबरी मस्जिद मामले में कोर्ट में पहले दिन से पक्षकार है। और इससे पूर्व कई बार बातचीत कर कोर्ट से बाहर समझौते के प्रयास किये जा चुके हैं। जिनका कोई हल नहीं निकला। इस लिए मैं नहीं समझता हूं कि समझौता वार्ता के दरवाजे को दोबारा खोलने से कोई हल निकल पाएगा। मौलाना ने स्पष्ट कहा कि इस मामले में कोर्ट को सुनवाई पूरी कर सबूत व दलीलों के आधार पर फैसला सुना देना चाहिए। देश और यहां का कानून हम सबका है इसलिए न्यायालय सबूतों के आधार पर जो फैसला सुनाएगी वह सबके लिए मान्य होगा।
अल कुरआन फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं अरबी विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा कि मंदिर-मस्जिद विवाद को करीब सत्तर साल गुजर गए है लेकिन इसका निपटारा नहीं हो सका है। इसलिए बेहतर यही होगा कि सुप्रीम कोर्ट आस्था के बजाए सबूतों के आधार पर फैसला सुनाने का काम करे। कहा कि इससे पूर्व में भी कई बार बातचीत कर मामले का हल निकालने की कोशिश हो चुकी हैं। लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला अलबत्ता इतना जरूर है कि इन कोशिशों से न्यायालय का फैसला आने में जरूर देरी हो रही है। इसलिए माननीय सुप्रीप कोर्ट को अब बिना देरी किए सुनवाई पुरी कर अपना फैसला सुनाने का काम करना चाहिए।
कांग्रेस नेता द्विजेन्द्र त्रिपाठी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी उन विद्वानों को समर्पित करता हूँ, जो खुद को हिन्दुत्व और इस्लाम का ठेकेदार बताते है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी भारतीय संविधान की मर्यादा को रेखांकित करती है और दोनों पक्षों को एक मौका देती है, कि वो भी उसकी भावना को समझे।
उम्मीद हैकि दोनों पक्ष अहंकार को छोड़ भारतीय संविधान की मर्यादा और सर्वोच्च न्यायालय की भावना का सम्मान करते हुए आपसी समझौते से निराकरण करने की कोशिश करेंगे।अन्यथा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किसी ना किसी एक पक्ष केलिए दुखदायी ही होगा।
इसके बाद हमने लखनऊ के आम मुसलमान युवकों से इस बारे में बात की तो देखिये उन्होंने क्या कहा
दूध कारोबारी कलीम कहते हैं : विवादित जमीन पर मस्जिद और मंदिर दोनों का निर्माण होना चाहिए। ताकि सुबह शाम दोनों मजहब के मानने वाले आपस में मिले, और उनमें भाईचारा बढ़े। अब ये विवाद बहुत हो चुका, दोनों ही कौम के बाशिंदे अब देश के लिए सोचे और अपना दिल बड़ा कर निर्णय लें।
रेस्टोरेंट मालिक रईस कहते हैं : नासमझी और अहंकार से हमेशा नुकसान ही हुआ है। हमें जो भी निर्णय लेना है वो हमें लेना है, कोई हमारा ठेकेदार नहीं है। कोई ये ना समझे की उनका कहा हम अपने ऊपर थोप लेंगे, देश में कितनी मस्जिद हैं जहाँ सालों से रंग रोगन नहीं हुआ नमाज तो बहुत दूर की बात है। कोर्ट को चाहिए की वो दोनों ही धर्मों के बीच जनमत-संग्रह करवा ले और निर्णय करवा कर मंदिर या मस्जिद बनवा दे।कपडा कारोबारी आसिफ कहते हैं : मैंने अपने बड़ों से यही सुना-सिखा है कि जो झुक गया वो बड़ा बन गया। मै ये नहीं कहता की हिन्दू पक्ष हमें जमीन दे दे, ये कहता हूँ की हमारे लोग झुक के उनको बुलाए और एकमत हो भाईचारे की मिसाल दें।
फल कारोबारी शकील कहते हैं : एक तो पहले से ही हमारे और उनके बीच कुछ लोग दीवार खड़ी करने में लगे हैं, और अब इस मुद्दे को भी भुनाने की कोशिश करेंगे। हमें समझदारी के साथ निर्णय लेना होगा बाकी सब अल्लाह के हाथ में।
इसके आलावा आसिफ, मुरीद, अकरम, वासित और अन्य ने सिर्फ इतना ही कहा, कि इस मामले में कोर्ट जनमत-संग्रह करवा ले और जो निकल कर सामने आये, उसी का निर्माण करवा दे। हम नहीं चाहते कि फिर एक बार कोई बड़ा बवाल हो।