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NRHM घोटाले में आरोपी पूर्व कैबिनेट मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जमानत मंजूर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनआरएचएम घोटाले के आरोपी पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जमानत अर्जी मंजूर कर ली है।

tiwarishalini
Published on: 24 April 2017 8:19 PM IST
NRHM घोटाले में आरोपी पूर्व कैबिनेट मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जमानत मंजूर
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NRHM घोटाले में आरोपी पूर्व कैबिनेट मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जमानत मंजूर

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इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनआरएचएम घोटाले के आरोपी पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जमानत अर्जी मंजूर कर ली है। कोर्ट ने कहा है कि याची को दो लाख के बेलबांड और 20 लाख की दो प्रतिभूति लेकर रिहा किया जाए। कोर्ट ने यह आदेश सह अभियुक्तों पूर्व मंत्री अनंत कुमार मिश्र, राम प्रसाद जायसवाल, रईस अहमद सिद्दीकी और महेंद्र कुमार पांडेय की जमानत पहले ही मंजूर होने के आधार पर समानता (पैरिटी) देते हुए दिया।

यह आदेश जस्टिस अरूण टंडन ने दिया। याची पर आपराधिक षडयंत्र, धोखाधड़ी करने और और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। याची के विरुद्ध चार चार्जशीट दाखिल हुई। मामले की जांच सीबीआई ने की थी।

सीबीआई कोर्ट ने पूर्व मंत्री होने के नाते साक्ष्य में दखल करने की संभावना को देखते हुए जमानत देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने याची को ट्रायल में सहयोग करने, साक्ष्यों से छेड़छाड़ न करने और ट्रायल में देरी की टैक्टिस न अपनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रक्रिया दो महीने में पूरी की जाए और जमा होने वाली धनराशि का सरकार एनआरएचएम मिशन के लिए इस्तेमाल करे।

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यमुना एक्सप्रेस-वे अथाॅरिटी को मुआवजा निर्धारण का निर्देश

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के चांदपुर गांव की 97,3747 हेक्टेयर यमुना एक्सप्रेस-वे अथाॅरिटी के लिए हुए अधिग्रहण को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि दो महीने के अंदर जमीन और उस पर हुए निर्माण का मूल्यांकन कर 2013 के कानून के तहत मुआवजे का भुगतान किया जाए। जिनको मुआवजे का भुगतान नहीं किया जाता तो उसकी जमीन वापस की जाए।

यह आदेश जस्टिस अरूण टंडन और जस्टिस रेखा दीक्षित की डिविजन बेंच ने रमोराज सिंह और अन्य किसानों की याचिका पर दिया है। याची वकील का कहना है कि 19 फरवरी 2010 को जमीन को धारा-4 और 6 एवं 17 के तहत अर्जेन्सी क्लाॅज में अधिग्रहण किया गया। भूमि अध्रिगहण सुनियोजित विकास के लिए किया गया। कोर्ट ने नए कानून के तहत मुआवजे के भुगतान का निर्देश दिया है।

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पुष्टाहार और खाद्यान्न वितरण पर हाईकोर्ट सख्त

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को बच्चों को पुष्टाहार और राशनकार्ड धारकों को खाद्यान आपूर्ति निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है। कहा है कि कर्तव्य पालन न करने वाले लापरवाह अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही की जाए। कोर्ट ने सूखा एवं मिड-डे मील योजना का कड़ाई से पालन करने का भी निर्देश दिया है।

यह आदेश जस्टिस एस.पी.केशरवानी ने इलाहाबाद छतरगढ़ निवासी राम लखन की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। कोर्ट ने एक महीने के भीतर सभी जिलों में जिला शिकायत निवारण अधिकारी की तैनाती करने का आदेश देते हुए कहा है कि राज्य सरकार शिकायत निवारण तंत्र विकसित करे और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून-2013 को लागू करते हुए योजना को क्रियाशील करे।

कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि 30 दिन के अंदर नियम 5 (3) के अंतर्गत जिला शिकायत निवारण अधिकारियों के वेतन भत्ते सहित शिकायत प्राप्त कर निस्तारण अवधि की अधिसूचना जारी करे।कोर्ट ने पुष्टाहार और खाद्य सामग्री वितरण के खिलाफ शिकायत 90 दिन के भीतर तय करने का भी आदेश दिया है। साथ ही कहा है कि 30 दिन के भीतर लापरवाह और कर्तव्य न पालन करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए। कोर्ट ने जिला, ब्लाक और सस्ते गल्ले की दुकान स्तर पर विजिलेंस कमेटी गठित करने और उसे क्रियाशील करने का राज्य सरकार को एक महीने का समय दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि 30 दिन में कमेटियां पूरे प्रदेश में गठित नहीं हो जाती तो तीस दिन में दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की जाए।

कोर्ट ने जिला पूर्ति अधिकारियांे को भी निर्देश दिया है कि वह कमेटी की कार्यप्रणाली और उपभोक्ता के अधिकारों की जानकारी गल्ले की दुकान के बोर्ड या दीवाए पर लिखवाएं। कोर्ट ने वितरण प्रणाली की निगरानी तथा कालाबाजारी पर रोक लगाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर खरीद फरोख्त पर नजर रखने को कहा है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के इस संबंध में 13 2016 के निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का भी निर्देश दिया है। कहा है कि आदेश की प्रति पालन के लिए मुख्य सचिव को भेजी जाए।

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फाॅरेस्ट रेंज अधिकारी के खिलाफ केस चलाने के लिए शासन की अनुमति जरूरी

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि फाॅरेस्ट रेंज अधिकारी के खिलाफ केस चलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-197 के तहत शासन की अनुमति जरूरी है। बिना शासन की अनुमति बगैर अधिकारी के खिलाफ मजिस्ट्रेट आपराधिक केस नहीं चला सकता।

कोर्ट ने इसी के साथ सपा के तत्कालीन विधायक अरविंद गिरि के इशारे पर एसीजेएम खीरी के समक्ष लंबित आपराधिक केस को शासन की अनुमति न होने के आधार पर रद्द कर दिया।

यह आदेश जस्टिस के.जे.ठाकर ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-482 के अंतर्गत फाॅरेस्ट रेंज अधिकारी दिग्विजय सिंह की अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।

याची के वकील ने मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि सपा विधायक याची से नाराज रहता था। इस कारण उन्हीं के इशारे पर फर्जी केस दर्ज कर याची के खिलाफ कार्रवाई की गई है। जबकि फाॅरेस्ट रेंज अधिकारी के खिलाफ आपराधिक केस चलाने से पहले शासन की अनुमति नहीं ली गई थी। कोर्ट ने उक्त आधार पर एसीजेएम के समक्ष विचाराधीन मुकदमे को रद्द कर दिया है।

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