TRENDING TAGS :
यहां चबूतरे पर चलता है स्कूल, पानी तक को बच्चे हैं तरसते
आगरा: ताजनगरी आगरा में डिजिटल इंडिया और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की पोल खोलता एक ऐसा स्कूल देखने को मिला है, जहां कमरा होना तो दूर वहां छत भी मयस्सर नहीं है। बारिश होने पर बच्चों को सिर छुपाने की जगह नहीं है, तो शौच लगने पर बच्चों को घर जाना पड़ता है।
इतना ही नहीं बल्कि यहां तो हैडपंप न होने की वजह से बच्चे प्यासे ही रह जाते हैं। पिछले आठ वर्षो से यह स्कूल सड़क किनारे संचालित हो रहा है जहाँ सुविधाओं के नाम पर सिर्फ एक ‘चबूतरा’ मात्र है।
नेताओं की हकीकत को बयां करता है ये स्कूल-
चबूतरे पर चल रहा यह स्कूल डिजिटल भारत के दावे करने वाले नेताओं की हकीकत को साफ़ बयां करता है। उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन के दावों से आगरा में चल रहा यह स्कूल पूरी तरह अछूता है।
सुविधाओं से है अछूता-
चबूतरे पर चलाए जा रहे स्कूल में न तो ब्लैक बोर्ड है, न शौचालय न पीने का पानी है और तो और छत भी मयस्सर नहीं है। ऐसे में यहां पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य क्या होगा यह एक गंभीर मसला बना हुआ है।
ताज्जुब तो इस बात का है कि करीब 8 वर्षों से गोबर चौकी में चल रहे कन्या प्राथमिक स्कूल की जानकारी शिक्षा विभाग से लेकर प्रशासन के सभी जिम्मेदार अधिकारियों को है लेकिन इन बच्चों की सुध लेने वाला कोई नहीं।
स्कूल के हालातों के बारे में यहीं की एक छात्रा शन्नो ने बताया कि, ज्यादा गर्मी होने पर यहाँ जल्दी छुट्टी कर दी जाती है और बारिश में तो पूरे दिन अवकाश रहता है।
वहीँ एक अन्य बच्चे सादिक ने बताया कि, इन हालातों में स्कूल में पढ़ना मुश्किल होता जा रहा है तेज होती धूप में बैठकर पढ़ना हमें बीमार कर देता है।
सिर्फ एक टीचर मौजूद-
शर्म की बात तो यह है कि, यहाँ क्लास 1 से लेकर 5 तक करीब 40 बच्चे इस स्कूल में पढ़ रहे हैं जिन्हें पढ़ाने के लिए सिर्फ एक टीचर ‘राजरानी’ मौजूद है
जानें, शिक्षा विभाग का सच-
अब शिक्षा विभाग की हकीकत भी देख लीजिए बच्चों को पढ़ाने की ट्रेनिंग देने के लिए एक शिक्षा मित्र की ड्यूटी भी इसी स्कूल में लगा दी है वह भी चबूतरे पर ही अपनी ट्रेनिंग पूरी कर रही है
प्राइवेट मकान में चल रहे इस स्कूल का एग्रीमेंट शिक्षा विभाग से कई वर्षों पहले ही खत्म हो चुका है ऐसे में मकान मालिक की दया पर यह स्कूल उसी मकान के चबूतरे पर चलाया जा रहा है मकान मालिक सलाहुद्दीन का आरोप है कि, ‘न के बराबर मिलने वाला किराया भी उसे अब नहीं मिल रहा है’
गौरतलब है कि, जिस तरह से आंकड़ों में लगातार शिक्षा के हालात बेहतर होने के दावे किये जाते है तो वहीँ ऐसे स्कूलों का सच इन दावों की जमीनी हकीकत को बयां कर देता है