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महामारी पर जीत के पर्व के साथ हुई थी बड़ा मंगल मनाने की शुरुआत

Bada Mangal : कोरोना की दूसरी लहर जो अंतिम हो इस कामना के साथ जेठ मास के पहले बड़े मंगल का पर्व आज से शुरू हो गया है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shraddha
Published on: 1 Jun 2021 12:14 PM IST
आज से शुरू जेठ मास का पहला बड़ा मंगल
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आज से शुरू जेठ मास का पहला बड़ा मंगल

Bada Mangal : कोरोना (Corona) की दूसरी लहर जो अंतिम हो इस कामना के साथ जेठ मास के पहले बड़े मंगल (Bada Mangal) का पर्व आज से शुरू हो गया है। भोर से ही लोग अपनी श्रद्धा आस्था और विश्वास के साथ राम को पाने के लिए हनुमान की भक्ति में जुट गए हैं। बड़े मंगल का पर्व भगवान राम की अवधपुरी में केवल लक्ष्मण की नगरी में मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई।

प्रचलित कहानियों पर जाएं तो सबसे प्रसिद्ध कथा अवध की आलिया बेगम की आती है जिसमें उन्होंने अलीगंज में संतान की प्राप्ति के लिए हनुमान मंदिर बनाया था जिसकी बुर्जी पर आज भी चांद दिखायी देता है। जो कि हिन्दू मुस्लिम एकता का पर्याय सदियों से बना हुआ है।

लेकिन लखनऊ में हनुमान को पूजने के कई और भी कारण हैं। कहते हैं भगवान राम ने जब माता सीता को वनवास जाने को कहा था तब माता सीता के पुत्र हनुमान भी साथ हो लिए थे। यह बात माता सीता और महाबली लक्ष्मण दोनो ही जानते थे कि हनुमान जी के साथ रहते माता सीता को वनवास भेजना संभव नहीं है। इसलिए लखनऊ में गोमती किनारे पहुंच कर तनिक विश्राम के बाद माता सीता ने हनुमान से कहा जब तक मै न लौटूं तुम यहां इंतजार करो।

बड़े मंगल के पर्व पर तस्वीरें खिचवाते श्रद्धालु

सीता राम भक्त हनुमान यहीं बैठ कर इंतजार करने लगे। बाद में माता सीता को वन में छोड़ने के बाद लक्ष्मण भी हनुमान को क्या जवाब देंगे ये सोच कर गोमती के दूसरे किनारे पर रुक गए। जो स्थान लक्ष्मण टीला के नाम से प्रसिद्ध है। समय गुजरता गया काल का चक्र चलता गया। माता सीता वनवास से वापस नहीं लौटीं लक्ष्मणटीला रह गया। लेकिन अजर अमर हनुमान अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए।

युगों बीत गए लोग इस बात को भूल भी गए कि हनुमान जी यहीं बैठे हैं। कहते हैं इस्लाम बाड़ी में आलिया बेगम साहिबा ने अर्जी लगाई कि उनके सपने में बजरंग बली आए थे। बजरंग बली ने सपने में एक टीले में प्रतिमा होने की बात कही थी। बेगम ने टीले को खुदवाया तो बजरंग बली प्रकट हुए। समस्या ये थी कि इस प्रतिमा को कैसे ले जाया जाए इस पर हाथी मंगवाया गया और उस पर रखकर हनुमान जी को ले जाया जाने लगा।

बेगम की मंशा हनुमान जी की प्रतिमा गोमती पार स्थापित करने की थी लेकिन हाथी अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के स्थान से आगे ही नहीं बढ़ा। इसकी वजह बताते हुए जानकार कहते हैं गोमती कुंआरी नदी है। हनुमानजी ब्रह्मचारी थे इसलिए गोमती पार नहीं करना चाहते थे हालांकि दोनो में भाई बहन का रिश्ता होने की बात भी है।

आज हनुमान सेतु मंदिर पर श्रद्धालुओं की भीड़

खैर उत्सव के साथ मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर के गुंबद पर चांद का निशान वर्तमान समय में एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करता है। हनुमान मंदिर की स्थापना के कुछ समय बाद सन 1800 में महामारी फैली। बड़ी संख्या में लोगों की मौतों से दहशत फैल गई। अंत में हिन्दू मुसलमान सब मिलकर हनुमानजी की शरण में गए। सबने मिलकर महामारी को दूर करने के लिए बजरंग बली का गुणगान शुरू किया हनुमान जी का चमत्कार हुआ तो महामारी समाप्त हो गई।

महामारी समाप्त होने पर शुभ दिन देखकर बड़े उत्सव का आयोजन किया गया। आयोजन का दिन मंगलवार था और ज्येष्ठ मास के महीने की शुरूआत थी। बड़ा मेला लगा सबने आनंद लिया। यह मेला जेठ के हर मंगल को लगा फिर उसके बाद से हर साल जेठ के बड़े मंगल को मेला लगने की परंपरा शुरू हुई। जिसमें जगह-जगह भंडारे के साथ हिंदू- मुस्लिम दोनों ही शामिल होते रहे। यह परंपरा आज भी जारी है। लेकिन इस बार कोरोना महामारी काल में ऐसे आयोजन नहीं हो रहे हैं। लोग घरों में पूजा अर्चना कर रहे हैं।

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