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मदर्स डे स्पेशलः मां का प्यार और दुलार दे रही दिव्यांगों की दिव्या

मां का आँचल क्या होता है कैसे पराए समझे जाने वाले मासूमों को उन्होंने अपना बना लिया। यह कोई बागपत की उस बेटी से सीखें। जिसकी ममता की छांव में 40 से ज्यादा बच्चे रहते हैं।

Paras Jain
Reporter Paras JainPublished By Shweta
Published on: 9 May 2021 2:51 PM GMT (Updated on: 9 May 2021 2:53 PM GMT)
दिव्यांगों  को पढ़ाते हुए
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 दिव्यांगों को पढ़ाते हुए  

यूपीः मां का आँचल क्या होता है कैसे पराए समझे जाने वाले मासूमों को उन्होंने अपना बना लिया। यह कोई बागपत की उस बेटी से सीखे जिसकी ममता की छांव में 40 से ज्यादा बच्चे रहते हैं। किसी का लाडला बोल नहीं पाता है। कोई लाडली सुन नही सकती है, कोई चल नही पाता तो कोई बच्चा मंदबुद्धि है। बेरहम कुदरत ने ऐसा पासा पलटा है कि कई तो खुद खाना तक नही खा सकते हैं, खुद खड़े नहीं हो सकते, चल नहीं सकते। वहीं इन बच्चों को मां का प्यार दुलार दें रही बागपत की इस बेटी की ख्वाहिश है कि उनके आंगन में सेंकडों बच्चे खेलें और साथ में तालीम के दो आखर भी पढ़ें।

अपने ही घर पर स्कूल खोलकर निःशुल्क शिक्षा देने वाली दिव्या उन बच्चों के लिए भगवान से कम नहीं हैं तो वहीं दिव्या को भी इन दिव्यांग बच्चों में अपना संसार नजर आता है । बेटियों का कोख में ही कत्ल कर दिया जाता है । उन्हें आंखें खोलने से पहले ही मौत की नींद सुलाया जा रहा है क्योंकि उन लोगों को बेटियों की कीमत समझ नहीं आ रही है। लेकिन बेटियां वो कमाल कर रहीं हैं कि जो शायद बेटों के लिए मुश्किल हो। एक ऐसी ही एक माँ और बेटी से आज हम आपको मिलवाने जा रहें हैं। जिसने एक मिसाल कायम की है। अपने लिए तो सब जीते हैं लेकिन ये मां और बेटी उन बच्चों को जीना सिखा रही जिनके साथ कुदरत ने भी ना इंसाफी की है।

शिक्षा एक उजियारा है यह न सिर्फ अशिक्षा के अँधेरे को खत्म करती है बल्कि जीवन जीने की कला भी सीखती है। इस परिभाषा को आत्मसात कर राजेश उज्वल ने भी तालीम की रोशनी से अँधेरा दूर करने का बीड़ा उठाया है। उन विकलांग बच्चों को माँ का आँचल दिया जिनके साथ कुदरत ने भी ना इंसाफी की। और समाज ने भी उन्हें पराया समझ लिया। लेकिन बुलन्द हौसले के बुते तालीम का आशियाना बनाने वाली इस माँ ने भविष्य इबारत धरातल पर लिखकर दिखा दी है जिसकी ममता की छाव में 4 दर्जन से भी ज्यादा बच्चे रहते हैं जो मानसिक मन्दता, श्रवण बाधित, डाउन सिंड्रोम, सेरेवल पॉलिसी, शारीरिक अपंगता, मन्द दृष्टि वाले हैं। जिन्हें स्पीच, फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशनल ट्रेनिंग, वोकेशनल ट्रेनिंग, व्यवहार, खेल-विकास, टॉयलेट ट्रेनिंग, लिखना, पढ़ना, बेसिक बातें ,वस्तुओं द्वारा समझाकर बोलना आदि सिखाया जाता है ।

दरअसल आपको बता दे कि बागपत जनपद के कस्बा बड़ौत के आजाद नगर मोहल्ले में रहने वाली दिव्या ने बगैर किसी एनजीओ के सहारे अपने ही दम पर दिव्यांग बच्चों के लिए समर्थ स्पेशल स्कूल के नाम से एक स्कूल खोल रखा है | जी हां दिव्या को पहले से ही दिव्यांग बच्चों से बेहद लगाव रहा है। जब भी वे उन बच्चों को देखती थी तो उन बच्चों की सेवा का ख्याल आता था। दिव्या डाॅक्टर या इंजीनियर भी बन सकती थी । लेकिन उसे इन बेबस और मजबूर बच्चों को दिव्या और उनकी माँ ने अपनाया, ये रास्ता मुश्किल जरूर था, लेकिन हिम्मत हर मुश्किल काम को आसान कर देती है ।

इन बच्चों के दिल का दर्द हर कोई नहीं समझ सकता । इनके सपने मानो बिना पंखों के आसमान में उड़ने के हैं । शायद बागपत की ये बेटी इनके दर्द को समझना चाहती थी और इनके सपनों को पूरा करने के लिए इनके साथ भी खड़ा रहना चाहती थी । इसके लिए वो भाषा सीखने की जरूरत थी, जिससे इन बच्चों के बीच आसानी से रहा जा सके। तो राजेश उज्वल ने अपनी बेटी दिव्या को देहरादून भेजने का फैंसला किया और वहां काफी समय तक स्पीच थैरेपी का कोर्स करवाया । कोर्स पूरा होने के बाद दिव्या वापिस लौटी और यहां अपनी माँ के साथ मिलकर एक बच्चे से शुरूआत की । बच्चों की संख्या धीरे धीरे बढ़ती चली गई और फिर राजेश ने अपने घर के आँगन में ही सन 2014 में समर्थ स्पेशल विद्यालय खोल लिया । जिसमें पिछले लगभग 7 वर्षो से बच्चों को निःशुल्क पढ़ाई कराई जा रही है ।

दिव्या ने स्पीच थेरेपी का कोर्स करने के बाद अपने घर पर ही उन्होंने दिव्यांग बच्चो को निशुल्क शिक्षा देने लगी और उनके परिवार ने सहयोग किया। तो ओर भी दिव्यांग बच्चो को अपने घर पर रखने लगी बच्चों की संख्या बढ़ी तो उसके बाद उन्होंने अपने घर पर समर्थ स्पेशल स्कूल के नाम से ही स्कूल खोल लिया। जिसमें अब वे पांच से 18 साल की उम्र तक के 40 से भी ज्यादा दिव्यांग बच्चों की सेवा कर रही है। जहां कोई मूक बधिर है जो बोल नहीं पाते हैं कि ऐसे है कि चल नहीं पाते हैं समझ नहीं पाते और शारीरिक विकलांगता व मंदबुद्धि बच्चे भी उनके पास रहते हैं। और दिव्या इन बच्चों को स्पेशल तरीको से ही तालीम का पाठ पढ़ाती है |

इतना ही नहीं दिव्यांग बच्चों की सेवा करने और उन्हें शिक्षा देने में अकेली दिव्या ही नहीं उनकी माँ व परिवार के अन्य सदस्य भी उनका पूरा साथ निभाते हैं। तो वहीं दिव्या के इस होंसले की हर कोई तारीफ भी करता है और लोग कहते है कि दिव्या उन लोगों के लिए एक सबक है जो दिव्यांग बच्चो की सेवा करना तो दूर उनसे दूर भागते हैं |

ऐसे सीखते हैं बच्चे

दिव्या के स्पेशल स्कूल में बच्चो को सबसे पहले पेंसिल पकड़ना सिखाया जाता है ओर खेल खेल में ही रेत पर लिखना सिखाते है जिससे वे पेंसिल पकड़ना सिख जाते है उसके बाद उन्हें फल , सब्जियां आदि की जानकारी उसी वस्तु को रखकर दी जाती है और दिव्या खुद स्पीच थेरेपी के जरिये बच्चो को पढ़ाती है और सप्ताह में एक दिन बच्चो की विशेष थेरेपी भी होती है जिसके लिए बच्चो के अभिभावकों से कोई फीस भी नही ली जाती है |

Shweta

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