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Ballia Loksabha Election 2024: बलिया लोकसभा सीट पर अपनी सियासी विरासत बचाने के लिए नीरज शेखर बने भाजपाई, सपा दे रही कड़ी टक्कर

Ballia Loksabha Election 2024 Analysis: नीरज शेखर अपने पिता के पारंपरिक मतदाताओं के अलावा पीएम मोदी और सीएम योगी के नाम पर यहां के जनता को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 29 May 2024 8:08 PM IST
Ballia Loksabha Election 2024 Analysis
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Ballia Loksabha Election 2024 Analysis 

Ballia Loksabha Election 2024 Analysis: गंगा और सरयू नदी के किनारे बसा बलिया जिला बागी तेवर के साथ ही राजनीति में अपना अलग स्था न रखता है। इस जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चित्तू पांडेय ने देश की आजादी से पहले 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पहली आजाद और समानांतर सरकार की स्थापना कर खुद को बलिया का मुख्य प्रशासक घोषित किया था। धारा के उलट राजनीति करने वाले युवा तुर्क के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और लोकनायक जय प्रकाश नारायण की वजह से बलिया ने हमेशा राष्ट्रीय राजनीति में दखल दी है। अपने राजनीतिक इतिहास के लिए मशहूर बलिया में पहले ही आम चुनाव में मतदाताओं ने बगावती तेवर दिखाते हुए पैराशूट कांग्रेस उम्मीदवार को खारिज कर निर्दलीय को संसद में भेजने का काम किया था। इसके बाद से अब तक चुने गए सांसदों का मिजाज 'बगावती' ही रहा है।

यहां से 8 बार के सांसद रहे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निधन के बाद उनकी विरासत को नीरज शेखर ने संभाला। लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान चंद्रशेखर फैक्टर काम नहीं आया। भाजपा के भरत सिंह ने चंद्रशेखर के बेटे और सपा के उम्मीदवार नीरज शेखर को 1,39,434 वोट से हराकर यहां पहली बार कमल खिलाया था। लेकिन 2019 के चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्तभ सांसद बने। इस बार भाजपा ने उनका टिकट काटकर वर्तमान में राज्यासभा सांसद नीरज शेखर को कमल खिलाने का जिम्माब सौंपा है। जबकि इस बार सपा की ओर से दूसरी बार चुनावी मैदान में उतरे सनातन पांडेय भाजपा को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। वहीं बसपा ने कोर मतदाताओं के साथ पिछड़े वर्ग में सेंध लगाने के लिए पूर्व सैनिक लल्लन सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन इस बार यहां लड़ाई आमने सामने की देखने को मिल रही है। बसपा लड़ाई से बाहर है।

नीरज शेखर को अपने पारंपरिक मतदाताओं के अलावा मोदी और योगी पर विश्वास


बलिया लोकसभा सीट पर 2014 से भाजपा का कब्जा है। इस बार भाजपा ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने के लिए समाजवादी नेता रहे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर पर दांव लगाया है। नीरज शेखर अपने पिता के पारंपरिक मतदाताओं के अलावा पीएम मोदी और सीएम योगी के नाम पर यहां के जनता को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यहां के स्थानीय मुद्दे और जातीय गोलबंदी उनका पीछा नहीं छोड़ रहे। गंगा, घाघरा और टोंस की बाढ़ तथा कटान सबसे बड़ मुद्दा है। कटान से प्रभावित गांवों के लोग लोकतंत्र के उत्स व को खुले मन से गले लगाते हैं। लेकिन सियासत ने हर बार बेवफाई की है। इसके अलावा मंहगाई, बेरोजगारी और पेपर लीक की समस्या अहम मुद्दा है। बता दें कि रोजगार के लिए पलायन तो यहां की नियति में शुमार हैं। देश के किसी भी कोने में जाएं तो वहां दो जून की रोटी के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करने वालों में बड़ी संख्या। में बलियावासी जरूर मिल जाएंगे। वहीं दूर के ग्रामीण इलाकों में पक्केड रास्तेव और मेडिकल सुविधाओं का अभाव है। यहां की सियासी जमीन को साधने के लिए भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के सीएम डॉ. मोहन यादव, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के दोनों उप-मुख्यमंत्री के अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत एनडीए के सभी सहयोगी दिग्गज नेता जनसभा कर चुके हैं। वहीं सपा के कद्दावर नेता व बलिया सदर विधानसभा सीट से कई बार विधायक रहे नारद राय पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए हैं।

सनातन पांडेय को पार्टी के कोर वोटर्स के अलावा एंटी इनकंबेंसी पर भरोसा


सपा उम्मीदवार सनातन पांडेय दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं। रसड़ा विधानसभा क्षेत्र के पांडेयपुर के रहने वाले सनातन पांडेय ने 1980 में आजगमढ़ से पॉलिटेक्निक की पढ़ाई की। इसके बाद गन्ना विकास परिषद में जेई बन गए। 1996 में नौकरी से इस्तीफा देकर सपा से जुड़ गए। 1997 व 2002 में जिले की चिलकहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए सपा का टिकट मांगा। पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतरे और हारे। 2007 के चुनाव में सपा ने उन्हें चिलकहर विधानसभा सीट से टिकट दिया तो वह जीतकर विधायक बने। 2012 में नए परिसीमन में चिलकहर विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। पार्टी से उन्हें रसड़ा सीट से चुनाव लड़ाया। लेकिन वह बसपा के उमाशंकर सिंह से हार गए। 2016 में सनातन को उत्तर प्रदेश शासन के पर्यटन एवं संस्कृति विभाग का सलाहकार बनाया गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वह रसड़ा विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर लड़े । लेकिन एक बार फिर असफलता हाथ लगी। इसी के बाद बलिया लोकसभा सीट से 2019 के चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही सपा एक बार फिर उन पर भरोसा जताया। भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त के खिलाफ कांटे की लड़ाई रही और वह महज 15,519 वोटों से हारे। मस्त को 4,69,114 और सनातन पांडेय को 4,53,595 वोट मिले थे। सपा उम्मीदवार सनातन पांडेय इस बार गांवों की खराब सड़कें और रोजगार के लिए होने वाले पलायन के अलावा केंद्र सरकार की योजना का जितना लाभ ग्रामीणों को मिलना था वह नहीं मिला है इसे मुद्दे बनाकर जनता के बीच उतरें हैं।

बसपा उम्मीदवार को अपने कोर वोटर्स पर भरोसा


बसपा उम्मीदवार लल्लन सिंह यादव मूलरूप से गाजीपुर के रहने वाले हैं। इंटर की पढ़ाई के बाद वह सेना में भर्ती हो गए थे। करगिल युद्ध में भाग ले चुके लल्लन सिंह यादव वर्ष 2010 में रिटायर्ड होने के बाद बसपा से जुड़े और संगठन को मजबूती प्रदान करने में जुटे रहे। लल्लन सिंह यादव ने 2019 लोकसभा चुनाव में गाजीपुर लोकसभा से टिकट की दावेदारी की थी। लेकिन टिकट नहीं मिला था। लल्लन लगातार लोगों के बीच जाकर वोट मांग रहे हैं। उनका कहना हैं कि बलिया आजादी के इतिहास से ही अग्रणी रहा है । लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि प्रधानमंत्री देने वाला बलिया विकास से अछूता है। बता दें कि बलिया में बसपा लोकसभा चुनाव 2004 और 2009 में दूसरे नंबर पर थी। 2014 के चुनाव में खिसककर तीसरे नंबर पर चली गई। पिछले चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन करके चुनावी मैदान उतरे थे, लेकिन इस बार बसपा अकेले दम में सियासी मैदान सजा रही है।

बलिया लोकसभा सीट के जातीय समीकरण

अगर बलिया लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों की है। यहां करीब तीन लाख ब्राह्मण हैं। इसके बाद यादव, राजपूत और दलित वोट हैं। तीनों वर्ग की आबादी करीब ढाई-ढाई लाख है। मुस्लिम वोट बैंक भी इस क्षेत्र में करीब एक लाख है। बलिया के दोआबा और नगर विधानसभा में ब्राह्मण सबसे अधिक हैं। ऐसे में बलिया की जनता विरासत के साथ चलेगी या सियासत के साथ यह जानने के लिए जिले के आसपास के लोग उत्साहित हैं, जो कि 4 जून को पता चलेगा।



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Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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