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Banda News: सीएम योगी और अखिलेश यादव की जुबानी जंग में 'तुलसी' और 'शबरी' की एंट्री
Banda News: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित चित्रकूट के वनांचल में सदियों से सौंदर्य बिखेरते जलप्रपात का अनगिनत लोगों से साक्षात्कार हुआ होगा।
Banda News: उत्तर प्रदेश में सीएम योगी और समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव में एनकाउंटरों के बहाने अगड़ों-पिछड़ों को लेकर छिड़ी जुबानी जंग यदि तुलसी और शबरी तक जा पहुंचे तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। चित्रकूट के शबरी जलप्रपात का नाम अचानक बदलकर तुलसी जलप्रपात करने को सरकार की आदिवासी विरोधी मानसिकता करार दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश में शबरी जलप्रपात नाम ही बरकरार रहना योगी विरोधियों के प्रलाप का संबल बना है।
UP-MP में समन्वय की कमी से धरा रहा आदिवासी तीर्थ बनाने मंसूबा
चित्रकूट को समेटे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश भाजपा सरकारें। जलप्रपात के विकास को लेकर दोनों सरकारों में समन्वय का अभाव है। इससे शबरी की विशाल प्रतिमा के साथ जलप्रपात को दोनों सूबे के आदिवासियों का तीर्थ बनाने की बात पीछे छूट गई है। जलप्रपात के दोनों हिस्सों को जोड़ने के लिए पुल बनाने का विचार भी दम तोड़ गया है। बजाय इसके उत्तर प्रदेश का पहला 'ग्लास स्काई वाक ब्रिज' बनाकर पर्यटकों को रिझाने की कोशिश की गई है। कोशिश थोड़ा रंग भी लाई है। लेकिन अल्प समय में ही ब्रिज ने वाहवाही से ज्यादा बदनामी कमाई है। रैंप की मिट्टी धंसने से आरसीसी में आई दरारों ने पर्यटकों को ब्रिज के दीदार से दूर कर दिया है। ब्रिज की खूबसूरती के चर्चे सुनकर रोजाना सैकड़ों सैलानी पहुंचते हैं और वन व पर्यटन विभागों को कोसते हुए लौटते हैं।
गोपाल भाई को जलप्रपात खोज और तत्कालीन DM को शबरी नामकरण का श्रेय
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित चित्रकूट के वनांचल में सदियों से सौंदर्य बिखेरते जलप्रपात का अनगिनत लोगों से साक्षात्कार हुआ होगा। लेकिन प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल भाई को इसकी खोज का श्रेय दिया जाता है। तकरीबन 27 साल पहले कोल आदिवासियों के बीच काम के दौरान जलप्रपात से रूबरू हुए गोपाल भाई तत्कालीन चित्रकूट DM जगन्नाथ सिंह को मौके पर ले गए और पर्यटन स्थल बनाने को प्रेरित किया। खूबसूरत नजारे पर मुग्ध DM सिंह ने कमर कसने में देर नहीं लगाई। अगले ही दिन नानाजी देशमुख आदि श्रेष्ठ जनों की सहमति से शबरी जलप्रपात नामकरण कर बाकायदा बोर्ड भी लगाया गया। वन विभाग और राजस्व महकमे से पर्यटन विकास के लिए करीब 12 लाख रुपए का प्रपोजल तैयार हुआ। इस सबके चलते शबरी जलप्रपात में मेला लगने लगा।
मध्य प्रदेश ने सुंदर प्रवेश द्वार बना शबरी नामकरण अपनाने की मुनादी
शबरी जलप्रपात नामकरण को मध्यप्रदेश सरकार ने भी अपनाया। सतना (मप्र) रोड से मारकुंडी की ओर निकलने पर प्राकृतिक नजारे से भरपूर शबरी जलप्रपात मानो पास बुलाता है। सुंदर प्रवेश द्वार स्वागत के बीच अलग से ध्यान खींचता है। खूबसूरत नक्काशी वाला प्रवेश द्वार लकड़ी का लगता है। जबकि सीमेंट को लकड़ी की शानदार शक्ल दी गई है। अंदर बरगद, पीपल, नीम आदि पौधों की कतारें सुकून देती हैं। प्रपात का कल-कल नाद माहौल को संगीतमय बनाता है। एकदम सामने उत्तर प्रदेश का नजारा नजर आता है। इसी के साथ हर किसी को दोनों हिस्सों के बीच एक अदद पुल की दरकार महसूस होती है।
तुलसी नाम देने से योगी को आदिवासी विरोधी ठहराने की कोशिश
रानीपुर टाइगर रिजर्व अंतर्गत करीब 25 किमी घुमावदार रास्ते से गुजरने के बाद उत्तर प्रदेश में तुलसी जल प्रपात का साइन बोर्ड मुकाबिल होता है। लोगों के जेहन में सहज ही सवाल कौंधते हैं। नाम बदलने की जरूरत क्यों आन पड़ी? किसके प्रस्ताव और किनकी संस्तुति पर नाम बदला गया? सच्चाई जो भी हो, लेकिन 2023 तक शबरी जलप्रपात रहे नाम को बदलने की तोहमत वन विभाग पर मढ़ी जाती है। चित्रकूटधाम मंडल के एक वन संरक्षक को मुख्य कर्ताधर्ता माना जाता है। जाने-अनजाने हुए इस कृत्य पर उत्तर प्रदेश सरकार की मुहर लग गई है। लेकिन इसे लेकर कोल वनवासियों में निराशा के भाव को विपक्षियों ने भुनाना शुरू कर दिया है। खुद को लोहियावादी बताने वाले एक युवा ने कहा, "सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने योगी सरकार का पिछड़ा और दलित विरोधी चेहरा बखूबी उजागर किया है। लेकिन आदिवासी और महिला विरोधी भी होने की नकाब खुद उनके मातहतों ने उतारी है। रामभक्त होने का दम भरने वाली योगी सरकार को समझना चाहिए कि तुलसी ने राम को गाया है। जबकि शबरी ने राम जूठे बेर खिलाए हैं। बावजूद इसके शबरी पर तुलसी को तरजीह सरकार की आदिवासी विरोधी सोच को दर्शाता है।" बात को बतंगड़ बनाने के सवाल पर युवा नेता कहा, "बात हुई है तो दूर तलक जाएगी।"
'ग्लास स्काई वाक ब्रिज' पर पुलिस के पहरे से पर्यटकों में मायूसी
तुलसी (शबरी) जलप्रपात में उत्तर प्रदेश का पहला 'ग्लास स्काई वाक ब्रिज' बनाकर पर्यटकों को रिझाने की कोशिश की गई है। मामूली सफलता भी मिली है। चित्रकूट और बांदा के अलावा आसपास के लोगों की आमदरफ्त बढ़ी है। आगंतुकों की एंट्री दर्ज कर रहे फारेस्ट गार्ड शिव शर्मा त्रिपाठी ने बताया, "करीब 50-60 चार पहिया वाहनों से तकरीबन 250-300 लोग रोजाना दस्तक देते हैं। रविवार आदि छुट्टियों में तादाद बढ़ जाती है।" सभी की चाह प्राकृतिक नजारे के अलावा ब्रिज की खूबसूरती के दीदार की होती है। लेकिन ब्रिज पर पहरा बिठाने से लोग मन मसोसकर बैरंग लौटने को मजबूर हैं।
धनुष-बाण की शक्ल में बने ब्रिज ने बदनामी बटोरी
पहरा क्यों? दरअसल 3.70 करोड़ की लागत से धनुष-बाण की शक्ल में बने 'ग्लास स्काई वाक ब्रिज' ने अल्प समय में वाहवाही कम, बदनामी ज्यादा बटोरी है। रैंप की फर्श में डाली गई मिट्टी धंसने से आरसीसी में आई दरारों ने एक ओर कथित भ्रष्टाचार का इशारा किया है, तो दूसरी और पर्यटकों को दूरी बनाने को मजबूर किया है। हालांकि पर्यटक हर खतरे को नजरंदाज कर ब्रिज का रुख किए बिना नहीं रहते। हाल ही में भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष ब्रिज के दीदार का लोभ संवरण नहीं कर पाए। सत्ता की हनक में सारे अवरोधों को धता बताकर ब्रिज पर सवार हो गए। समर्थकों के अलावा अन्य लोगों ने भी उनका अनुसरण किया। इसका वीडियो वायरल होने से पुलिस का पहरा बिठाया गया है। अब हर आम व खास के ब्रिज में जाने पर सख्त पाबंदी है। बीते रविवार को एक महिला जज ने परिजनों संग ब्रिज में जाना चाहा। यहां-वहां फोन घनघनाए। पर सफलता नहीं मिली। फारेस्ट गार्ड ने दो-टूक कहा, "DFO के निर्देश पर ही ब्रिज में जाने की अनुमति दी जा सकती है।"
सुरक्षा आडिट की तैयारी
इधर दरारें रफा दफा कर ब्रिज की सुरक्षा आडिट पर फोकस है। प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान से विशेषज्ञ बुलाने के लिए 1.18 लाख रुपए फीस चुकाई गई है। देखना होगा कि सुरक्षा आडिट के साथ पर्यटकों की ब्रिज तक पहुंच का मुहूर्त कब बनता है।