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Banda News: क्या है चंद्रशेखर? यहां पढ़ें Newstrack की स्पेशल रिपोर्ट

Banda News: अधेड़ के जवाब से सवाल कौंधा, कैसी त्याग तपस्या? इसका जवाब Newstrack ने महुआ के ग्रामीणों, भाजपाइयों और RSS पदाधिकारियों से बातचीत में खंगाला और जो तस्वीर उभरी, वह निष्ठा, समर्पण और कौशल की प्रेरक कहानी बयां करती है।

Om Tiwari
Report Om Tiwari
Published on: 28 Nov 2024 4:47 PM IST
Banda News ( Pic- Newstrack)
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 Banda News ( Pic- Newstrack)

Banda News. उत्तर प्रदेश के CM योगी आदित्यनाथ गुरुवार को बांदा जिले के महुआ गांव पहुंच कर तेरहवीं कार्यक्रम में शामिल हुए तो सहज जिज्ञासा उत्कर्ष पर पहुंच गई, क्या है चंद्रशेखर? गांव के एक बुजुर्ग ने आपस में पूछा, 'का बनिगा हवै गांव का या लरिका कि महतारी के न रहैं पै सरकारैं खेंची चली आईं। पहिले राजस्थान का मुख्यमंत्री आवा, आज तेरहीं मा योगी महराजौ पधारि गे। बाकिन मंत्रिन नेतन कै बातेन छोड़ि देय्या।' गांव के ही एक अधेड़ ने जवाब दिया, 'योगी जेहिकी महतारी कै तेरहीं मां आये हवैं वही कर्मयोगी कहा जात है। महतारी के चल बसैं के दिन से आज तेरहीं तक हम सब जनै जउन प्रभुता दीख हवै वा सब चंद्रशेखर कै त्याग अउर तपस्या क्यार फल आय।'

बाबा ने सनातनी और पिता ने रोपे किसानी के संस्कार

अधेड़ के जवाब से सवाल कौंधा, कैसी त्याग तपस्या? इसका जवाब Newstrack ने महुआ के ग्रामीणों, भाजपाइयों और RSS पदाधिकारियों से बातचीत में खंगाला और जो तस्वीर उभरी, वह निष्ठा, समर्पण और कौशल की प्रेरक कहानी बयां करती है। धार्मिक प्रवृत्ति के कर्मकांडी ब्राम्हण और रामलीला आयोजनों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने वाले बाबा स्व. जगन्नाथ तिवारी की गोद में सनातनी संस्कारों के धनी बने चंद्रशेखर में पिता स्व. बाला प्रसाद तिवारी ने किसानी के संस्कार भी रोपे। किसान के बेटे चंद्रशेखर ने कक्षा आठ तक गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए वह जिला मुख्यालय बांदा आ गए और यही वो घड़ी थी, जब जाने-अनजाने शुरू हुए त्याग तपस्या के सफर की मंजिल भले ही बाकी हो लेकिन चंद्रशेखर के मौजूदा मुकाम की चकाचौंध से महुआ समेत बांदा जनपद वासी पिछले 13 दिनों से विस्मय और गौरव के एहसास में डूब-उतरा रहे हैं।

1990 में बांदा आकर 9वीं दाखिला संग ज्वाइन की RSS की शाखा

महज 46 वर्षीय चंद्रशेखर ने 1990 में बांदा आकर अलीगंज रामलीला मैदान स्थित मौसी के घर को ठिकाना बनाकर डीएवी इंटर कालेज में कक्षा 9 में दाखिला लिया। इसी दौरान RSS की रामलीला मैदान शाखा ने चंद्रशेखर को आकर्षित किया। 12-13 वर्षीय चंद्रशेखर की शाखा में नियमित आमद और सभी गतिविधियों में लगनपूर्ण सहभाग ने तत्कालीन प्रचारकों का अलग से ध्यान खींचा। कक्षा 10वीं में प्रवेश के साथ ही चंद्रशेखर की बांदा के पीली कोठी में सेठ तुलसीदास के हाता स्थित RSS कार्यालय में एंट्री हो गई। मंजाई शुरू हुई और चंद्रशेखर का व्यक्तित्व निखरता चला गया।

सपा सांसद पति और पूर्व मंत्री शिवशंकर पटेल से अंगीकार की गुणों की त्रिवेणी

बचपन से ही खिलंदड़ी स्वभाव के रहे चंद्रशेखर ने स्पोर्ट्समैन के सभी गुणों को अंगीकार करते हुए पढ़ाई जारी रखने और संघ कार्य में रमने का निश्चय किया। वर्ष 2000 में चंद्रशेखर ने बांदा के पंडित जेएन डिग्री कालेज से पालिटिकल साइंस में MA किया और इधर संघ ने इसी वर्ष स्वतंत्र दायित्व सौंपा। चंद्रशेखर को बांदा सदर विस्तारक की भूमिका दी गई। एक तरह से तहसील प्रचारक का जिम्मा। सफल दायित्व निर्वाह के चलते कुछ ही समय बाद चंद्रशेखर को बांदा नगर का सह कार्यवाह बनाया गया। यह दायित्व मील का पत्थर साबित हुआ। निष्ठा और समर्पण की पहले ही छाप छोड़ चुके चंद्रशेखर ने तत्कालीन नगर कार्यवाह और मौजूदा सपा सांसद कृष्णा पटेल के पति व पूर्व मंत्री शिवशंकर पटेल से विनम्रता, मृदुभाषिता और मिलनसारिता का जो पाठ सीखा, वह उनकी असल पूंजी है। गुणों की इस त्रिवेणी ने चंद्रशेखर के कौशल में चार-चांद लगा दिए। इस दौरान चंद्रशेखर कानून की पढ़ाई भी पूरी करने में सफल रहे।

अविवाहित रहने और जीवन संघ को समर्पित करने से चढ़ते रहे पायदान दर पायदान

इस बीच विवाह न करने और पूरा जीवन संघ को अर्पित करने का संकल्प ले चुके चंद्रशेखर को बांदा से रुखसत कर झांसी नगर प्रचारक सायं बनाया गया। आयातित भाजपाई माननीय भी नहीं जानते कि सायंकाल प्रचारक का क्या मतलब है। दरअसल सायं शाखा में सिर्फ बच्चों को व्यक्ति निर्माण की कसौटी में कुंदन बनाना होता है। अपेक्षाकृत कठिन दायित्व माना जाता है। लेकिन बखूबी दायित्व निर्वाह के चलते चंद्रशेखर संघ में एक पायदान और ऊपर चढ़े। उन्हें जिला प्रचारक बनाकर औरैया भेजा गया। 2006 में चंद्रशेखर विभाग प्रचारक बने और फरुखाबाद और करीबी जिलों में संघ कार्य को विस्तार देने की कमान संभाली। फरुखाबाद के बाद कानपुर नगर और झांसी संभागों में बतौर विभाग प्रचारक संघ के मंतव्य को आगे बढ़ाया।

2014 में भाजपा में एंट्री, बतौर काशी क्षेत्रीय संगठन मंत्री संभाली मोदी के चुनाव की कमान

2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चंद्रशेखर को भाजपा में भेजा गया। काशी प्रांत का क्षेत्रीय संगठन मंत्री बनाकर उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र की विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई। मोदी की शानदार विजय के बाद चंद्रशेखर बतौर क्षेत्रीय संगठन मंत्री पश्चिमी उत्तर प्रदेश भेजे गए। वहां भी उन्होंने कौशल के झंडे गाड़े। इसी के साथ कुशल रणनीतिकार बनकर उभरे चंद्रशेखर को कठिन मोर्चे पर लगाने का निश्चय हुआ। चंद्रशेखर को प्रदेश संगठन महामंत्री बनाकर राजस्थान को भेजा गया।

राजस्थान भाजपा संगठन महामंत्री बनकर कसी वसुंधरा की नकेल, CM व DCM चयन में निभाया रोल

हालांकि 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा राजस्थान फतेह नहीं कर पाई। जीत का सेहरा कांग्रेस ने बांधा। महारानी वसुंधरा को अपदस्थ कर अशोक गहलोत CM बने। चंद्रशेखर ने इस झटके को गंभीरता से लिया और अगले चुनाव के कील कांटे दुरुस्त करने में जुट गए। संगठन में न केवल महारानी वसुंधरा के वर्चस्व को तोड़ा बल्कि लोहे से लोहा काटने के अंदाज में प्रभावशाली राजघराने की दीया कुमारी को आगे लेकर आए। 2023 में कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जातीय समीकरण संतुलन के चलते चंद्रशेखर ने ही भजनलाल शर्मा को राजस्थान का CM बनवाने में अहम भूमिका निभाई और दीया कुमारी को DCM बनवा कर वसुंधरा को उनके दिन लदने के संकेत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजस्थान के बाद चंद्रशेखर को तेलंगाना का भाजपा संगठन महामंत्री बनाया गया है। 2024 लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में भाजपा की सीटों में इजाफे को भी चंद्रशेखर की कार्य कुशलता से जोड़ा जाता है।

तेलंगाना रहते लगा मां के निधन का आघात, आजीवन महुआ की बहू बनी रहीं नाती-पोतों वाली जयंती

तेलंगाना में अपने काम में मगन चंद्रशेखर को आघात लगा, जब बीते 15 नवंबर को उनकी मां जयंती तिवारी 70 बरस जीकर गोलोकवासी हो गईं। जयंती अपने पीछे दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गई हैं। बेटियां अपनी ससुराल में सुखी हैं। बड़े बेटे राधेश्याम तिवारी परंपरागत किसानी संभाले हैं। राधेश्याम का बेटा और बेटी पढ़ाई कर रहे हैं। हमीरपुर के भेड़ी जलालपुर गांव से ब्याह कर महुआ आईं जयंती मरते दम तक महुआ गांव की बहू बनी नहीं। चार बच्चों की मां और दादी-नानी बनने के बाद भी घूंघट उनकी खूबी रही। गांव वाले इसका बखान किए बिना नहीं रहते। मां का निधन चंद्रशेखर को सर्वाधिक मर्माहत करने वाला क्षण है। लेकिन यह भी सही है कि मां को श्रद्धांजलि देने के लिए पिछले 13 दिनों से महुआ में वीवीआईपीज की निरंतर जारी रही आमदरफ्त ने पहली बार लोगों को चंद्रशेखर की हैसियत और रुतबे का साक्षात्कार कराया है।



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Shalini Rai

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