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Banda News: बांदा में बनाए गए मिट्टी के दिए-कलश, पुरानी परंपरा को जीवित किए हुए प्रजापति समाज के लोग
Banda News: शहरों में चारों तरफ मकान बन जाने के बाद अब मिट्टी ₹40 प्रति बोरी खरीदनी पड़ रही है। जब दीया बनकर तैयार होता है तो लागत महंगी आती है। जब दीया महंगा हो जाता है तो लोग महंगे दीये खरीदने को तैयार नहीं होते।
Banda News: मंडल मुख्यालय बांदा शहर कोतवाली से करीब 2 किलोमीटर दूर खाईपार मोहल्ले में स्थित प्रजापति समाज के कुछ कारीगर आधुनिक तकनीक (इलेक्ट्रॉनिक चौक) या चाक का इस्तेमाल कर दीये बनाते आ रहे हैं। यह परिवार मशीनों और चाक का इस्तेमाल कर मिट्टी के दीये बनाता आ रहा है और दिवाली पर मिट्टी के दीयों के त्योहार में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के कटोरे, घड़े, परैया और कई अन्य बर्तन बनाता आ रहा है।
प्रजापति परिवार लगातार पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए है। इसे देखने के लिए हमारे बांदा संवाददाता अनवर रजा मौके पर पहुंचे और जीरो ग्राउंड रिपोर्टिंग की, जहां देखा गया कि प्रजापति समाज के लोग मिट्टी कहां से लाते हैं, मिट्टी का इस्तेमाल कैसे होता है और दीये कैसे बनते हैं। रिपोर्टिंग के दौरान बताया गया कि सरकार ने मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए प्रजापति समाज के लोगों को पट्टे देने की घोषणा की थी, लेकिन उसमें कुछ नहीं हुआ। 3 साल पहले इलेक्ट्रॉनिक चाक दिए गए थे जिसमें करंट लगने का खतरा रहता है और बिजली का बिल भी ज्यादा आता है। पहले दीये बनाने के लिए मिट्टी खुद खोदनी पड़ती थी।
शहरों में चारों तरफ मकान बन जाने के बाद अब मिट्टी ₹40 प्रति बोरी खरीदनी पड़ रही है। जब दीया बनकर तैयार होता है तो लागत महंगी आती है। जब दीया महंगा हो जाता है तो लोग महंगे दीये खरीदने को तैयार नहीं होते। दिवाली से पहले हम लोग लाखों दीये बनाते थे और कारोबार अच्छा चलता था। वहीं दूसरी तरफ बाजारों में रंग-बिरंगी चाइनीज लाइट और मोमबत्ती का इस्तेमाल ज्यादा लोग करते हैं। बुंदेलखंडी हाथों से तैयार दीयों का चलन भी कम होता जा रहा है। ऐसे में हम लोग करीब 20 से 30 हजार दीये ही बेच पाते हैं। हम और हमारा परिवार सालों से पुरानी परंपरा को जारी रखने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि इसी से हमारी रोजी-रोटी चलती है।