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Banda News: अरसा बाद साहित्यकारों का जमावड़ा, प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान से नवाजी गईं सुप्रसिद्ध कथाकार अलका सरावगी
Banda News: 'न्यायबोध और साहित्य: भक्तिकाव्य से दलित विमर्श तक' विषय पर व्याख्यान का सिलसिला चला। जबकि नामचीन कवि नरेश सक्सेना की अगुवाई में काव्यपाठ ने लोगों को बांधे रखा।
Banda News: अरसा बाद बांदा में साहित्यकारों का जमावड़ा नजर आया। एक ओर सुप्रसिद्ध कथाकार अलका सरावगी को उनके चर्चित उपन्यास 'गांधी और सरला देवी चौधरानी' के लिए प्रेमचंद कथा स्मृति सम्मान से नवाजा गया और जाने-माने लोगों समेत खुद अलका ने उपन्यास की रचनात्मकता को रेखांकित किया। दूसरी ओर 'न्यायबोध और साहित्य: भक्तिकाव्य से दलित विमर्श तक' विषय पर व्याख्यान का सिलसिला चला। जबकि नामचीन कवि नरेश सक्सेना की अगुवाई में काव्यपाठ ने लोगों को बांधे रखा। मुक्तकों, दोहों और शेर ओ शायरी ने लोगों को जमकर गुदगुदाया।
'गांधी और सरला देवी चौधरानी' उपन्यास के लिए सम्मानित
हार्पर क्लब में प्रतीक फाउंडेशन और देवेंद्र खरे स्मृति शोध संस्थान के संयुक्त कार्यक्रम की शुरुआत में सुप्रसिद्ध कथाकार और अपने हालिया उपन्यास ‘गांधी और सरला देवी चौधरानी’ से चर्चा में आईं अलका सरावगी को प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान से नवाजा गया। सरावगी को स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र और बतौर सम्मान राशि 21 हजार का चेक भेंट किया गया। मयंक खरे ने मान पत्र पढ़ा।
अलका का उपन्यास, इतिहास भी विस्तार की किताब भी
कार्यक्रम के पहले सत्र में आलोचना के संपादक प्रो. आशुतोष कुमार ने अलका सरावगी के उपन्यास ‘गांधी और सरला देवी चौधरानी’ की विवेचना की। आशुतोष ने कहा, अलका सरावगी की रचना यात्रा कहानी और उपन्यास में नये प्रयोगों का एक सिलसिला है। उनका यह उपन्यास, उपन्यास भी है और इतिहास भी लेकिन साथ ही साथ उसका विस्तार करने वाली यह किताब भी है। उपन्यास में गांधी और सरला देवी एक साथ बढ़ते हुए और टूटते हुए दिखायी देते है। उपन्यास और इतिहास के बीच जिस तरह का द्वंद है, उसी तरह गांधी और सरला देवी के बीच का भी द्वंद उपस्थित है। अलका ने बिना जजमेंटल हुए गांधी को मनुष्य बनने की छूट दी है। उपन्यास में एक इंसान के तौर पर गांधी की कमजोरियां और गलतियां सामने आती हैं, लेकिन मूर्तिभंजन का थ्रिल नहीं है। उपन्यास से स्त्री की मुक्ति के लिए सरला देवी के कार्यों का पता चलता है।
अलका सरावगी ने कहा- बांदा गंभीर पाठकों का धनी
कथाकार अलका सरावगी ने कहा, उनके उपन्यास पर जिस तरह से चर्चा हुई, वह बताता है कि बांदा में गंभीर पाठक मौजूद हैं। उन्होंने उपन्यास की रचना प्रक्रिया पर कहा, गांधी और सरला देवी चौधरानी के संबंधों पर उपन्यास लिखना तनी हुई रस्सी पर चलने के समान था। उपन्यास पर आ रही प्रतिक्रियाओं से लगता है कि वह इस चुनौती का निर्वाह कर पाई हैं। उनके लिए इतिहास हमेशा कथात्मक सामग्री का स्रोत रहा है। उन्होंने आशुतोष से सहमति जताई कि इतिहास की घटनाओं का अर्थ प्रकट करने और चरित्रों के भीतर के संघर्ष से मानवीय सत्य को ढूंढ़ लेने का काम इतिहासकार नहीं, साहित्यकार ही कर सकता है।
न्याय व्यवस्था आधुनिक लोकतंत्र की देन, लेकिन भारत में प्राचीन काल से न्याय का सिद्धांत: बीबी तिवारी
दूसरे सत्र में देवेन्द्रनाथ खरे स्मृति व्याख्यानमाला के तहत ‘न्यायबोध और साहित्य: भक्तिकाव्य से दलित विमर्श तक’ विषय पर आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा, न्याय व्यवस्था आधुनिक लोकतंत्र की देन है। लेकिन भारत मे प्राचीन काल से ही न्याय का सिद्धांत चलता आ रहा है। प्राचीन संस्कृत साहित्य से लेकर भक्ति काल साहित्य तक में न्याय के विभिन्न रूप चित्रित हुए हैं। न्याय के दो आधार समता और स्वतन्त्रता है। भारतीय साहित्य में जहां भी इन मूल्यों का रक्षण किया गया है वहां न्याय का पक्ष उभरता है। उन्होंने संस्कृत नाटक मच्छकटिकम से लेकर भक्ति काल मे कबीर, गरीबदास, रज्जब अली की कविताओं में न्याय बोध पर विचार किया। प्रगतिवादी कविता पर कहा, इसमें न्याय बोध वैश्विक और व्यापक संदर्भ में आता है। वर्तमान दलित साहित्य भी न्याय की बात करता है, लेकिन उनका नजरिया केवल जाति तक सीमित है। होना यह चाहिए कि जाति के प्रश्न को समाज के अन्य जरूरी सवालों से जोड़ कर आधारभूत न्याय की संकल्पना को सामने लाना जाए।
भक्तिकाल में शुरू हुई अंधभक्ति आज राजनैतिक और धार्मिक अंधभक्ति के रूप में उफान पर: रामायन राम
युवा आलोचक डा. रामायन राम ने कहा, भारत में अन्याय की परंपरा आर्य कबीलों के गंगा यमुना के मैदानों मे बसने और पशुचारण से कृषक समाज के रूप मे संगठित होने से शुरू होती है। आर्यों ने वेदों के जरिए ब्राह्मणवाद और वर्णाश्रम की नींव डाली। उन्होंने कहा, भक्ति काल के दौरान मध्य युग में नए ज्ञान का मार्ग अवरुद्ध हो गया। अंधभक्ति की शुरुआत हो गई, जो आज राजनैतिक और धार्मिक अंधभक्ति के रूप मे जारी है। इस अंधभक्ति ने एक बंद बुद्धि वाला समाज बनाया है, जिसमें न्याय बोध धूमिल हो गया है। आज के विमर्शों में अन्याय के खिलाफ संघर्ष की अंतर्दृष्टि नहीं है। अंबेडकरवाद से आगे सोचना पड़ेगा। वर्ग के आधार पर वास्तविक न्याय की लडाई लड़नी पड़ेगी। संचालन अमिताभ खरे ने किया।
नामचीन कवि नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में चला काव्यपाठ का सिलसिला, शेर ओ शायरी ने गुदगुदाया
तीसरा सत्र काव्यपाठ के नाम रहा। हिंदी के नामचीन कवि नरेश सक्सेना ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए शिशु बारिश, कांक्रीट और गिरना आदि रचनाएं पेश की। युवा कवि अदनान कफील दरवेश ने किबला, नई सदी में हत्यारे, मेरी दुनिया के बच्चे, गमछा, मां और जूता रचनाएं पढ़ीं। बृजेश यादव ने अवधी के गीत सुनाए। लखनऊ की डा. मालविका हरिओम ने गजल और शेर पेश किए। पंकज प्रसून ने व्यंग्य रचनाएं सुनाईं। श्लेष गौतम ने संचालन के बीच मुक्तकों और दोहों से लोगों को गुदगुदाया।
कोरोना काल में असाधारण योगदान के लिए बांदा के चिकित्सक विष्णु गुप्ता का भी सम्मान
कार्यक्रम में उपस्थित अन्य साहित्यिक हस्तियों में जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय और आलोचक प्रणय कृष्ण आदि शुमार रहे। इस बीच कार्यक्रम संयोजक मयंक खरे ने कोरोना काल में विशेष योगदान के लिए बांदा के चिकित्सक विष्णु गुप्ता को शाल ओढ़ाकर और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस दौरान कवि हृदय वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा, अरुण कुमार अवस्थी, अरविंद उपाध्याय, वासिफ जमा खां, नरेंद्र सिंह राजू, आदर्श तिवारी, सोनू सिंह और विनय आदि मौजूद रहे।