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Barabanki News: संभल में प्रतिबंध के बाद छिड़ी बहस, बाराबंकी में सालार मसूद गाजी के पिता की दरगाह, अब यहां मेला लगेगा या नहीं?
Barabanki News: बूढ़े बाबा की दरगाह पर सैकड़ों वर्ष पूर्व से मेला लगता चला आ रहा है। कुल मेले के दौरान दूर-दूर से जायरीन का यहां आवागमन बना रहता है।
बाराबंकी में सालार मसूद गाजी के पिता की दरगाह (photo: social media )
Barabanki News: संभल में इस साल सैयद सलार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले का आयोजन अब नहीं होगा। पुलिस ने आयोजकों से साफ कह दिया है कि लुटेरों के नाम पर मेले के आयोजन की अनुमति नहीं देंगे। होली के बाद हर साल मेला लगता था। इस आयोजन को लेकर दूसरे समुदाय के लोगों ने पुलिस प्रशासन के सामने आपत्ति जताई थी। वहीं संभल में मेले की मनाही के बाद अब बाराबंकी जिले के सतरिख कस्बे में उनके पिता सैय्यद सालार साहू गाजी रहमतुल्लाह बूढ़े बाबा की दरगाह अचानक चर्चा में आ गई है। यहां भी हर साल ज्येष्ठ माह के बड़े मंगल के बाद शनिवार को कुल मनाया जाता है। ऐसे में सवाल खड़े होने लगे हैं कि यह कुल मेला अब यहां लगेगा या नहीं।
बता दें कि बूढ़े बाबा की दरगाह पर सैकड़ों वर्ष पूर्व से मेला लगता चला आ रहा है। कुल मेले के दौरान दूर-दूर से जायरीन का यहां आवागमन बना रहता है। जिले के अलावा अन्य दूरदराज स्थानों से ट्रैक्टर, ट्राली बस वह पैदल जायरीन यहां पहुंचते हैं। यहां हिंदू लोग बच्चों का मुंडन कराते हैं। बाबा की दरगाह पर निशान और चादर पेश करते हैं। यहां रहने वाले मोहम्मद सिद्दीक व अन्य कार्यकर्ताओं ने बताया कि बूढ़े बाबा अफगानिस्तान के रहने वाले थे। वहां से 1400 साल पहले वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ अजमेर शरीफ आये थे। अजमेर शरीफ से उनकी पत्नी तो वापस अफगानिस्तान चली गईं। लेकिन सैय्यद सालार साहू गाजी रहमतुल्लाह बूढ़े बाबा खुद और उनके साहेबजादे सैयद सलार मसूद गाजी सतरिख आ गये। सतरिख में बूढ़े बाबा की दरगाह है। जबकि उनके साहेबजादे सैयद सलार मसूद गाजी कब्र बहराइच में बनी है।
मेले के पहले दिन चढ़ती है पक्के आम की सीप
बूढ़े बाबा की दरगाह के कार्यकर्ताओं ने बताया कि कुल मेले के पहले दिन यहां पक्के आम की सीप जरूर चढ़ती है। चाहे जहां से भी वह आम की सीप आये। उन्होंने बताया कि मान्यता है कि लोगों की यहां मुरादें पूरी होती हैं। अलग-अलग बीमारियों के मरीज और लाग बिलाग को लेकर भी लोग यहां आते हैं। इस साल 14 मई से 17 मई तक मेला चलेगा। आपको बता दें कि अगर सबसे क्रूर मुगल शासकों की बात होती है तो महमूद गजनवी का नाम आता है। सैयद सालार मसूद गाजी उसी मोहम्मद गजनवी का भांजा था। मुस्लिम शासकों के जमाने में ही इसका महिमामंडन किया गया और बहराइच में उनरी कब्र को दरगाह का रूप दे दिया गया। यहां बहुत सारे लोग पहुंचते हैं। यहां भी मेला लगता है जिसको लेकर कई बार विवाद हो चुका है। वहीं उसकी याद में ही संभल में नेजा मेला लगया है। होली के बाद इस मेले का आयोजन किया जाता है।