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बेसिक शिक्षा की डिजिटल किताब का बना मजाक, टीचर्स नहीं जानते QR कोड
सुल्तानपुर: इस सत्र से बेसिक शिक्षा विभाग प्राथमिक और जूनियर कक्षाओं की किताबों को डिजिटल किताब के रूप में उप्लब्ध कराया है। इन किताबों पर QR कोडअंकित है, इस क्यूआर कोड के बारे में अध्यापकों को कोई जानकारी नहीं है और न ही इस कोड के बारे में विभाग ने कोई ट्रेनिंग दी है।
किताबों की डिजिटल पहचान के लिए अंकित है QR कोड
गौरतलब हो कि केन्द्र और प्रदेश सरकार शिक्षा पर करोड़ो खर्च करती है लेकिन विभाग उसे अन देखा करता है। इस सत्र की जो किताबें छापी गई हैं उन किताबों के समस्त पाठ पर क्यूआर कोड अंकित है। जिससे ये पता चलता है की ये किताबें डिजिटल हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य बात ये है कि इस कोड के बारे में टीचर्स को जरा सा भी ज्ञान नहीं है।
इनको यह भी नहीं मालूम की ये किताबें डिजिटल हैं। विभाग ने इस पर लापरवाही किया है कि टीचर्स को इस क्यूआर कोड की ट्रेनिंग नहीं दिया और किताब थमा दी। ऐसे में विभाग की बड़ी उदासीनता जाहिर हो जाती है, जब टीचर्स को क्यूआर कोड के बारे में जानकारी नहीं है तो वो बच्चों को क्या ज्ञान बाटेंगे?
क्या है QR कोड?
QR” का मतलब है “Quick Response”, क्योकि इन्हे क्विकली रीड करने के लिए डिजाइन किया गया है। QR कोड को डेडिकेटेड क्यूआर कोड रीडर या फिर सेल फोन के द्वारा पढ़ा जा सकता है। सेल फोन से क्यूआर कोड रीड करने के लिए आपको QR Code Reader ऐप इंस्टॉल करना होगा। इसके लिए फोन के अलग अलग ओएस के प्लेटफार्मों के लिए विभिन्न एप्लिकेशन स्टोर में कई मुफ्त क्यूआर कोड रुडर आपको मिल जाएंगे।
क्यूआर कोड दो डायमेंशनल बारकोड होते है, जिन्हे क्यूआर कोड रीडर या स्मार्टफोन से रीड किया जाता है। क्यूआर कोड ब्लैक और व्हाइट पैटर्न के छोटे स्क्वेर होते है। इन्हे आप कई जगह पर देख सकते है, जैसे कि प्रॉडक्ट, मैगज़ीन और न्युजपेपर। क्यूआर कोड को विशिष्ट प्रकार कि जानकारी को सांकेतिक शब्दों में बदने के लिए प्रयोग किया जाता है।
बीएसए ने डाला झूठ पर पर्दा
क्यूआर कोड को टेक्स्ट, ईमेल, वेबसाइट, फोन नंबर और अन्य से सिधे लिंक किया जाता है। जब आप किसी प्रॉडक्ट पर छपे इस क्यूआर कोड को स्कैन करते है, तब आप सीधे इन साइट पर जा सकते है, जहाँ पर उस प्रॉडक्ट के बारें में अधिक जानकारी होती है।
वैसे जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) कौस्तुभ सिंह ने हर बार की तरह अपने झूठ पर पर्दा डाला। उनका कहना है कि टीचरों को इसकी ट्रेनिंग दी गई है। लेकिन जमीनी हकीकत इस बयान से इतर है।