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जर्जर स्कूलों में बच्चों की जान का खतरा
तेज प्रताप सिंह
गोंडा। प्रदेश सरकार बेसिक स्कूलों को नया लुक देने की तैयारी में है। अलग-अलग मदों के लिए पैसा दिया जा रहा है,लेकिन जिस चीज की सबसे बड़ी जरुरत है उसके लिए चिंता नजर नहीं आती। ये जरुरत है स्कूलों की बिल्डंगों की। जिले में तमाम ऐसे स्कूल हैं जहां बच्चों के लिए न बैठने की जगह है न टॉयलेट हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के दावे चाहे जो हों, सच्चाई यही है कि कई ब्लाकों में बच्चे बेहद जर्जर स्कूलों में पढऩे को मजबूर हैं। शिक्षक तक इन स्कूलों में पढ़ाने से खौफ खाते हैं। जिले में कुल 2237 प्राथमिक विद्यालय और 901 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 3,32, 000 छात्र पंजीकृत हैं। इन स्कूलों में तमाम ऐसे हैं जो दशकों से बेसिक निर्माण और मेंटेनेंस की बाट जोह रहे हैं।
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मिसाल के तौर पर जिले के बभनजोत में 1973 से चल रहे देवरिया मद्दो परिषदीय स्कूल का हाल जानिए। इसकी पहले जो बिल्डिंग थी वो विवाद में फंस गई और किसी काम की नहीं रही। जिस जमीन में वह भवन बना है उस जमीन के मालिक ने स्कूल के कमरों में भूसा भर रखा है। बच्चे एक बाग में जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं। स्कूल में कुल 60 बच्चे हैं। मौसम कोई भी हो, यह विद्यालय बाग में पेड़ के नीचे ही चलता है। मिडडे मील रसोइया राजपती देवी के घर बनता है और बच्चे वहीं जाकर खाना खाते हैं। प्रधानाध्यापक मोहिउद्दीन बेग इस स्कूल में 2007 से पढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि बिल्डिंग के बारे में कई बार लिखापढ़ी की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष बिफई ने बताया कि गांव में ही डेढ़ बीघा बंजर जमीन और खेल मैदान है। विद्यालय को जमीन देने में कोई रुचि नहीं ले रहा है।
स्कूलों को नया लुक देने के सरकार के फैसले को क्रांतिकारी कदम बताते हुए प्राथमिक विद्यालय बनगाई के प्रबंध समिति अध्यक्ष राम आशीष कहते हैं कि इससे परिषदीय स्कूलों के प्रति आकर्षण बढ़ेगा।
शिक्षक संघ के अध्यक्ष अशोक सिंह कहते हैं कि संसाधनों से लैस विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ेगी, लेकिन सबसे जरूरी है कि सत्र शुरू होते ही छात्रों को किताबें उपलब्ध करा दी जाएं। जिले में लगभग पांच माह बाद अभी 15 दिन पहले किताबें बंटी हैं। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी मनीराम सिंह का कहना है कि स्कूल भवन निर्माण प्रभारी निर्माण वर्ष से 15 वर्ष तक के लिए जिम्मेदार होता है। यदि 15 वर्ष के भीतर भवन जर्जर हो गया है तो उसे मरम्मत कराना चाहिए। उसके बाद विभाग की जिम्मेदारी हो जाती है। विगत वर्ष से विद्यालय के रखरखाव की जिम्मेदारी १४वें वित्त आयोग के धन से ग्राम पंचायतों को दे दी गई है।
ये है विद्यालयों का हाल
- इटियाथोक ब्लाक में प्राथमिक विद्यालय रानीपुर के प्रधानाध्यापक कुलदीप यादव बताते हैं कि बरामदे में प्लास्टर गिर गया। कई बार सूचना दी गई है,लेकिन कोई काम नहीं हुआ।सौ बच्चों वाले प्राथमिक विद्यालय पारासराय की छत जर्जर हो चुकी है। इसमें बच्चों को बैठाना जान जोखिम में डालना है। प्रभारी प्रधानाध्यापक राजीव कुमार मिश्र ने बताया कि बच्चों के साथ कमरे में बैठे पढ़ा रहे थे तभी छत का प्लास्टर गिर गया।
- गनीमत यह रही कि किसी को चोट नहीं लगी। यह स्कूल 1984 में बना था तबसे कोई मरम्मत नहीं हुई है।
- 1984 के बने प्राथमिक विद्यालय विनोहनी की छत लटक गई है और किसी समय भी ढह सकती है।
- प्राथमिक विद्यालय तेलियानी कानूनगो का बरामदा एक वर्ष पूर्व धराशायी हो गया था और तबसे वैसे ही पड़ा है।
- बरदांड, मय नगर, मेहनौन, लालपुर, विशुनपुर माफी, पृथ्वी पाल गंज ग्रंट, नये गांव, कुंदेरवा, जंहदरिया, बेलभरिया सहित अन्य विद्यालयों की बिल्डिंगों का भी यही हाल है। इन स्कूलों में कभी भी दुर्घटना हो सकती है।
- वित्तीय वर्ष 2006-07 से 2010-11 के बीच मंजूर छह परिषदीय स्कूलों का निर्माण अभी तक पूरा नहीं कराया जा सका है। 2006-07 में करनैलगंज ब्लाक के कूरी में उच्च प्राथमिक विद्यालय के निर्माण की स्वीकृति दी गई थी। पैसा भी जारी कर दिया गया, लेकिन जमीन विवादों में फंस गई और निर्माण नहीं हो सका।
- वर्ष 2007-08 में बभनजोत ब्लाक के ढोढ़ऊपुर में उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण व मनकापुर के उकरहवा में उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण लिंटर स्तर पर ही ठहरा हुआ है। वर्ष 2008-09 में छपिया के बभनीखास में उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण छत स्तर तक ही पहुंच सका।