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पद्मश्री बेकल उत्साही हुए सुपुर्द-ए-खाक, नम आखों से दी गई अंतिम विदाई
बलरामपुर: 'मैं तुलसी का वंश हूं और बलरामपुर का संत हूं' जैसे नज्म से लोगों के दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ने वाले पद्मश्री बेकल उत्साही (88 वर्ष) का शनिवार को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। बेकल उत्साही दिल्ली के लाजपतनगर में अपने घर के बाथरूम में गिर गए थे। उनके सिर में गंभीर चोटें आईं थी। गंभीर हालात में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की हर मुमकिन कोशिश के बावजूद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने बेकल उत्साही के निधन पर गहरा दुख जताया। उन्होंने कहा, उनकी काबिलियत के कारण ही उन्हें राज्य सभा भेजा गया था। बाद में यश भारती सम्मान से भी नवाजा गया।
शायरी से अपनी पहचान बनाने वाले बेकल उत्साही के इस दुनिया से रुखसत होने की खबर से साहित्य क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। बेकल साहब ने अपने परिवार से अपनी अंतिम इच्छा जाहिर करते हुए खुद को अपने मकान के सामने दफन करने की बात कही थी। रविवार को उनके शव को दिल्ली से बलरामपुर लाकर सुपुर्द-ए-खाक किया गया।
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