TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

ईद पर लग रहा सट्टा, जानिए कैसे खेला जाता है सट्टेबाजी का खेल , यहाँ है पूरा गुणा गणित

EID 2022: ईद और सट्टा मतलब कुछ अजीब सा लग रहा है ना! हमें भी लगा जब पता चला कि ईद में सट्टा के बाजार में सट्टेबाजी हो रही है।

Network
Newstrack NetworkPublished By Deepak Kumar
Published on: 1 May 2022 2:35 PM IST
Eid 2022
X

ईद 2022। (Social Media)

EID 2022: ईद और सट्टा मतलब कुछ अजीब सा लग रहा है ना! हमें भी लगा जब पता चला कि ईद में सटा के सट्टेबाजी हो रही है। कहां हो रही? कौन कर रहा? कैसे कर रहा? सब पता लगाया आप भी जानिए..

दुनिया भर में शेयर बाजार हैं। 24 घंटे कहीं न कही का शेयर मार्किट खुला रहता है। और लखनऊ के सट्टेबाज इनपर पैसा लगाते हैं बाबू भैया!! समझ में नहीं आया है ना! कोई ना हम बता देते हैं कैसे लगता है ये वाला सट्टा।

कैसे लगता है सट्टा

गूगल ओपन कर के सर्च कीजिए SENSEX। ओपन हो गया। अब देखिए कुछ डिजिट नजर आ रही हैं। दशमलव के बाद की जो दो डिजिट हैं। इनपर ही लगता है सट्टा। कुछ सट्टेबाज इन दोनों पर सट्टा लगाते हैं। तो कुछ लास्ट की डिजिट पर।

मान लीजिये आपकी कैलकुलेशन के हिसाब से लास्ट डिजिट आएगी 8 और मार्केट बंद हो जाएगी। आप ने इसपर 10 रु लगाए हैं। आपको मिलेंगे 100 रु। वहीँ आपकी केलकुलेशन कहती है कि लास्ट की दो डिजिट आयेंगी 80 और इसके बाद मार्किट बंद हो जाएगी तो आपको 10 के 200 मिलेंगे। और नहीं लगा तुक्का तो ये पैसा हजम कर लेगा वो जिसके जरिए आपने सट्टा लगाया है।

सुबह से आधी रात तक लगता है सट्टा

सुबह 11 ताइवान, 12 कोस्पी, 1.30 हेन्सेंग, 3.30 सेंसेक्स, रात 9.21 डेक्स वहीँ रात 1.30 डॉउजोन पर सट्टेबाजी होती है। मार्केट बंद होने के 1 घंटे पहले सट्टा लगवाने वाला पैसा लेना बंद कर देता है।

सट्टेबाज व्हाट्सएप्प, पर्ची, माचिस की डिब्बी, कलाई, मिठाई का डब्बा और भी पता नहीं कहां-कहां ये नंबर लिख कर पहुचाते हैं। वहां कलेक्शन करने वाला नाम डिजिट और पैसे लिख लेता है। छोटे बच्चे भी कैरियर का काम करते हैं।

क्या है ईद कनेक्शन

शहर में इस समय ईद का खुमार है। हर तरफ रौनक बरस रही है। दुकानों पर भीड़ है तो वहीँ सट्टा लगवाने वालों के यहाँ भी भीड़ मची है। भाई लोग कम समय में पैसा कमा के त्यौहार मनाना चाहते हैं। शहर में हर दिन लाखों की हार जीत होती है। सुबह 8 बजे से नंबर और पैसे आने लगते हैं बिरयानी मसाला, सिवैया, चाय, चीनी, मावा, दूध, मसाला, पेन्सिल, कॉपी, बुक, चाप जैसे आम बोलचाल के शब्दों के जरिए ये सट्टेबाजी होती है।

खुला खेल है

शहर के हर बड़े छोटे चौराहों पर ये खेल वर्षों से चला आ रहा है। ऐसा नहीं कि पुलिस को पता नहीं, सब पता होता है। ऊपर से जब सख्ती होती है तो सट्टा लगवाने वालों को कुछ दिन के लिए अंदर कर दिया जाता है। बाहर आकर फिर वो लग जाते हैं अपने काम में। पान की दुकान, मेडिकल स्टोर, मोबाइल शॉप और बड़े शो रूम पर पर्ची का कलेक्शन होता है। पैसों का लेनदेन होता है। आए दिन मारपीट भी होती है। ये सब ऐसा नहीं कि छुपा हुआ है। सबको पता होता है कौन खेल रहा? कौन खिला रहा है? लेकिन सब अपना अपना हिस्सा लेकर खुश हैं। सट्टा लगवाने वालों के कलेक्शन एजेंट भी होते हैं जो पैसा लेने और देने आते हैं।

ये हैं वो इलाके

हुसैनाबाद, चौपाटिया, मुसाहिब गंज, नैपियर कालोनी, सआदतगंज, सिंगार नगर, चंदर नगर, बुद्देश्वर, ठाकुर गंज, खदरा, नक्खास, टूरियागंज, भोलानाथ कुआ, चौक, विशाल खंड, विवेक खंड यहाँ की वीरान गलियों से लेकर दुकानों तक सट्टेबाजी का खेल चल रहा है

मिट जाता है गरीबी अमीरी का भेद

सिर्फ मधुशाला ही नहीं सट्टेबाजी भी अमीरी गरीबी का भेद मिटा देती है। एक साथ दोनों डिजिट तय करते हैं, सट्टा लगाते हैं। ख़ुशी और गम भी मनाते हैं। जीतने वाला पार्टी देता है। हारने वाला फिर से कमर कसता है। यही वर्षों से चल रहा है और चलता रहेगा। नोट कर लीजिये नाम न बताने कि शर्त पर हमें ये एक सट्टेबाज ने ही ये परम ज्ञान दिया है।

देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने के लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।



\
Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story