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एक विधवा ने तोड़ दिया पूर्वांचल के बाहुबली का ‘तिलिस्म’, बृजेश सिंह को बड़ा झटका
आशुतोष सिंह
वाराणसी: पूर्वांचल में माफिया डॉन बृजेश सिंह के नाम का सिक्का चलता है। अपराध जगत के बड़े-बड़े धुरंधर भी उनके नाम से कांपते हैं। लेकिन माफिया से 'माननीय' बने बृजेश अदालत की चौखट पर एक विधवा के जज्बे के आगे हार गए।
यह मामला जुड़ा है 31 साल पहले हुए सिकरौरा कांड से। इस नरसंहार में आरोपी एमएलसी बृजेश सिंह को एडीजे (प्रथम) पीके शर्मा की अदालत से करारा झटका लगा है।
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बृजेश सिंह ने खुद को बताया था नाबालिग
घटना के समय खुद के नाबालिग होने संबंधी याचिका को अदालत ने गुरुवार (12 अक्टूबर) को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया। एडीजे की कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद आरोपी एमएलसी बृजेश सिंह को घटना के समय बालिग माना है। इसके साथ ही लंबे समय से लंबित चल रहे मामले की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया।
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'डॉन' के समर्थक दिखे नाराज
कोर्ट ने वादिनी हीरावती को बयान के लिए 23 अक्टूबर को तलब किया है। अदालत के फैसले के बाद बृजेश सिंह और सैकड़ों की संख्या में जुटे समर्थक खासे निराश दिखे। पिछली कई तिथियों से इस मामले में पेशी के बाद वापसी हो जाती थी लेकिन अदालत का निर्णय सुनने के बाद सभी के चेहरे लटके दिखे।
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आगे की स्लाइड में पढ़ें कैसे पलट गया डॉन के खिलाफ पूरा मामला...
हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई थी सुनवाई
बलुआ थाने (चंदौली) के सिकरौरा गांव में 9 अप्रैल 1986 की रात 11 बजे ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव तथा उनके परिजनों समेत 7 लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी। इस मामले में बृजेश सिंह की गिरफ्तारी हुई थी। हालांकि, उन्हें जमानत मिल गई थी। इसके बाद ये मामले की सुनवाई थम सी गई थी। बाद में उड़ीसा से बृजेश सिंह के वर्ष 2008 में गिरफ्तार होने के बाद वादिनी मृतक की पत्नी हीरावती व उनके पैरोकार राकेश की कोशिशों के बाद मामला आगे बढ़ा। इस मामले में हाइकोर्ट के आदेश के बाद सुनवाई ने रफ्तार पकड़ी।
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...और यूं पलट गया पूरा मामला
सुनवाई शुरू होने के साथ बृजेश सिंह ने कोर्ट में आवेदन देकर दलील दी कि वह घटना के समय नाबालिग नहीं थे। और उनकी उम्र हाइस्कूल प्रमाणपत्र में 1 जुलाई 1968 है। इस पर वादिनी के विधिक पैरोकार राकेश न्यायिक ने आपत्ति दी। राकेश न्यायिक ने बृजेश के विभिन्न प्रान्तों के आर्म्स लाइसेंस, डीएल, पासपोर्ट और कम्पनी रजिस्ट्रार के यहां दिए गए कागजातों में जन्म तिथि 9 नवंबर 1964 का कागजात दाखिल किया। अदालत ने इस मामले में लंबे साक्ष्यों के बाद आरोपी की जन्म तिथि 1964 सही पाया। जबकि हाइस्कूल के कागजात में बृजेश सिंह पुत्र रविन्द्र प्रताप सिंह है जबकि बृजेश सिंह पुत्र रविन्द्र नाथ नाम वास्तविक है। आरोपी ने कई मामलों के विचारण के अपने अंतिम बयान में भी जन्म तिथि 1964 माना है। बहरहाल, आसार जताए जा रहे हैं कि आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी जाएगी।