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Bihar Political Crisis: बिहार में भाजपा की बड़ी प्लानिंग से परेशान थे नीतीश, नड्डा के बयान ने भी बढ़ा दिया था तनाव

Bihar Political Crisis: बिहार में अगला विधानसभा चुनाव 2025 में होना है मगर उससे पहले भाजपा राज्य के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बड़ी योजना पर काम कर रही है।

Anshuman Tiwari
Published on: 9 Aug 2022 6:09 PM IST
Bihar Political News
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Bihar CM Nitish Kumar (Image: Social Media)

Bihar Political Crisis: आखिरकार बिहार में पिछले कई दिनों से लगाई जा रहीं सियासी अटकलें सच साबित हुईं और नीतीश कुमार ने एनडीए गठबंधन छोड़कर राजद से हाथ मिला लिया। एक समय नीतीश कुमार राजद की सत्ता को जंगलराज बताकर हमला किया करते थे मगर सियासी मजबूरी ने उन्हें राजद से ही हाथ मिलाने पर विवश कर दिया। वैसे तो भाजपा से नीतीश की नाराजगी के कई कारण माने जा रहे हैं मगर इनमें एक बड़ा कारण बिहार में भाजपा की विस्तारवादी योजना भी है।

बिहार में अगला विधानसभा चुनाव 2025 में होना है मगर उससे पहले भाजपा राज्य के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बड़ी योजना पर काम कर रही है। भाजपा की इस बड़ी प्लानिंग को लेकर नीतीश कुमार सतर्क हो गए क्योंकि उन्हें इस बात का डर सताने लगा कि इससे उनकी अपनी खुद की पार्टी जदयू के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। इसके साथ ही भाजपा के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की ओर से क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व खत्म हो जाने का बयान भी नीतीश कुमार के लिए तनाव बढ़ाने वाला साबित हुआ।

भाजपा का 200 सीटों का लक्ष्य

भाजपा की ओर से जुलाई के आखिर में पटना में बड़ी बैठक का आयोजन किया गया था। 30 और 31 जुलाई को बीजेपी के सात मोर्चों की इस इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और अमित शाह भी पहुंचे थे। इस बैठक के दौरान बिहार की 200 विधानसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य तय किया गया। पार्टी की ओर से तय किया गयागकि 200 सीटों पर वरिष्ठ नेता जाकर प्रवास करेंगे और पार्टी की जीत की संभावनाओं को मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे।

बिहार भाजपा के सह प्रभारी हरीश द्विवेदी ने बैठक के दौरान भाजपा की प्लानिंग का खुलासा भी किया था। उनका कहना था कि पार्टी के नेता राज्य विधानसभा की 200 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए प्रवास करेंगे और इसका फायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी होगा। बिहार के सभी जिलों में भाजपा अपना कार्यालय स्थापित कर चुकी है और इस दो दिवसीय बैठक के दौरान अमित शाह ने इन कार्यालयों का उद्घाटन भी किया था।

नीतीश को नागवार गुजरा नड्डा का बयान

भाजपा की इस प्लानिंग का खुलासा होते ही नीतीश कुमार को जदयू के लिए बड़ा खतरा महसूस होने लगा। इसके साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का एक बयान भी नीतीश कुमार को काफी नागवार गुजरा था। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए नड्डा ने कहा था कि आने वाले समय में भाजपा को छोड़कर सभी पार्टियां समाप्त हो जाएंगी। उनका कहना था कि अगर हम अपनी विचारधारा पर बढ़ते रहे तो आने वाले समय में सारे क्षेत्रीय दल खत्म हो जाएंगे। नड्डा के इस बयान को बिहार के दो बड़े क्षेत्रीय दलों जदयू और राजद पर हमला माना गया।

नड्डा के इस बयान पर जदयू और राजद ने तीखी प्रतिक्रिया भी जताई थी। राजद के नेता और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी का कहना था कि अगर सारी पार्टियां समाप्त हो जाएंगी तो देश में लोकतंत्र भी खत्म हो जाएगा। उन्होंने संघ पर हमला करते हुए कहा था कि वह लोकतंत्र और भारतीय संविधान को पसंद नहीं करता।

जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने भी नड्डा के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। उनका कहना था कि क्षेत्रीय पार्टियों ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने का काम किया है। बिहार में जदयू की ताकत का सभी को एहसास है और क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व कभी खत्म नहीं किया जा सकता।

जूनियर पार्टनर के रोल में जदयू

दरअसल 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने अपना वादा पूरा करते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री तो जरूर बना दिया मगर जदयू की हैसियत जूनियर पार्टनर की हो गई थी। सुशील मोदी के जमाने में भाजपा के साथ नीतीश कुमार की अंडरस्टैंडिंग अच्छी थी मगर डिप्टी सीएम पद से उनके हटने के बाद नीतीश के भाजपा से रिश्ते सहज नहीं रह गए थे।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नीतीश को अपनी ताकत का एहसास करा दिया था। भाजपा बिहार के सामाजिक समीकरणों को साधने में कामयाब रही है और नीतीश कुमार को आने वाले दिनों में भाजपा से अपने सियासी वजूद पर खतरा महसूस होने लगा था।

भाजपा ने दिखा दी थी ताकत

यदि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद की जाए तो जदयू को 122 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 43 सीटों पर ही कामयाबी मिली थी जबकि भाजपा ने 121 सीटों पर चुनाव लड़कर 74 सीटों पर जीत हासिल करते हुए जदयू को काफी पीछे छोड़ दिया था। भाजपा की मजबूत होती सियासी स्थिति को लेकर नीतीश परेशान थे और उन्हें लग रहा था कि जब भाजपा 200 विधानसभा सीटों पर चुनावी तैयारी कर रही है तो अगले विधानसभा चुनाव में वह ज्यादा सीटों की मांग भी करेगी। ऐसी स्थिति में धीरे-धीरे जदयू के अप्रासंगिक होने का खतरा भी नीतीश कुमार को महसूस हो रहा था।

सियासी जानकारों का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो जरूर बन गए थे मगर तमाम फैसलों को लेकर उनके हाथ बंधे हुए थे। भाजपा के दबाव की वजह से वे कई मुद्दों पर खुलकर फैसले नहीं ले पा रहे थे। इसीलिए आखिरकार उन्होंने बड़ा फैसला देते हुए भाजपा से अलग होने की राह चुन ली। हालांकि यह भी सच्चाई है कि राजद के साथ सामंजस्य बिठाकर चलना भी नीतीश के लिए आसान नहीं साबित होगा।



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Rakesh Mishra

Rakesh Mishra

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