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आजमगढ़ से भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी होंगे अमर सिंह!

raghvendra
Published on: 27 July 2018 12:57 PM IST
आजमगढ़ से भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी होंगे अमर सिंह!
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संदीप अस्थाना

आजमगढ़: एक जमाने में मुलायम सिंह यादव के अखाड़े के पहलवान रहे सपा के पूर्व महासचिव व राज्यसभा सदस्य अमर सिंह आजमगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी होंगे! अन्दरखाने से मिली जानकारी के अनुसार इसकी सारी रणनीति तय हो चुकी है। चुनाव के नजदीक आने पर ही इसकी घोषणा होगी। ऐसे में इस सीट से जो लोग अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, वह लोग काफी पशोपेश में है। माना जा रहा है कि अपने गृह जनपद की लोकसभा सीट जीतकर अमर सिंह ऐसे लोगों का मुंह बन्द कर देना चाहते हैं जो यह कहते हैं कि अमर सिंह अपने गांव की प्रधानी भी नहीं जीत सकते हैं, इसीलिए वह हमेशा पिछले दरवाजे यानी राज्यसभा सदस्य बनकर देश के राजनैतिक क्षितिज पर छाये रहना चाहते हैं।

मोदी व शाह से बढ़ीं हैं नजदीकियां

मूल रूप से आजमगढ़ जिले के तरवां के रहने वाले अमर सिंह के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ पहले से बेहतर रिश्ते थे। जब से अमर सिंह ने सपा से नाता तोड़ा है तब से ये नजदीकियां और भी बढ़ी हैं। खुले तौर पर भी अमर सिंह ने मोदी के बेहतर शासन-सत्ता की तारीफ की है। भाजपा की नीतियों को वह कई मौकों पर देशहित में बताते रहे हैं।

समझा जाता है कि अमर सिंह भाजपा गठबंधन से तो चुनाव लड़ सकते हैं मगर वह कमल निशान से चुनाव लड़ेंगे, इसकी संभावना कम ही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि बड़ी संख्या में मुसलमान उनके समर्थक हैं। ऐसे में वह यदि भाजपा का सिम्बल लेकर मैदान में आते हैं तो मुसलमान उनसे दूरी बना लेगा जो शायद वह खुद नहीं चाहते।

कैसे किया गया संपर्क

भाजपा के बड़े नेताओं को पता है कि भाजपा के सहयोगी दल भासपा के संस्थापक अध्यक्ष व यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के अमर सिंह के साथ अच्छे रिश्ते हैं। अमर सिंह भी राजभर को अपना छोटा भाई ही मानते हैं। एक रणनीति के तहत ओमप्रकाश राजभर का बेटा अरविन्द राजभर अपनी शादी का निमंत्रण लेकर खुद अमर सिंह के पास दिल्ली गया था। अमर सिंह वाराणसी में उसके विवाह समारोह में शामिल हुए। चर्चा है कि इसी दौरान ओमप्रकाश राजभर ने अमर सिंह को ‘भासपा’ के सिम्बल से आजमगढ़ से लोकसभा का चुनाव लडऩे को राजी कर लिया। बहरहाल इस बाबत अभी तक भासपा या अमर सिंह की ओर से कोई बयान नहीं आया है।

सपा से नाता टूटने के बाद भी मुलायम सिंह यादव व अमर सिंह के बीच रिश्तों में कोई दरार नहीं आयी है। मुलायम ने भी कहा था कि अमर सिंह दल में भले ही नहीं हैं मगर वह मेरे दिल में हैं। अब जबकि हवा में तेजी से यह बात तैर रही है कि अमर सिंह आजमगढ़ से चुनाव लड़ेंगे इसी बीच सपा की ओर से यह अधिकृत बयान आ गया है कि मुलायम सिंह यादव इस बार मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे तो लोगों को यह लग रहा कि कहीं मुलायम ने अमर के लिए तो आजमगढ़ की सीट नहीं छोड़ी है।

अमर सिंह के अति करीबी वीरभद्र प्रताप सिंह का कहना है कि अभी नेताजी की ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है। फिलहाल वह बड़े लोग हैं, कभी कोई फैसला ले सकते हैं और उन लोगों को जैसा आदेश करेंगे, वह वही करेंगे।

भाजपा चाहती है अमर की उम्मीदवारी

यह भी सही है कि अमर सिंह चुनाव लडऩे के मूड में नहीं हैं। उसकी वजह यह कि राज्यसभा की उनकी सदस्यता का कार्यकाल 2022 तक है। इसके बावजूद भाजपा उन्हें ही चुनाव लड़ाना चाहती है। इसकी वजह यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बाहुबली रमाकान्त यादव इस सीट से पहली बार कमल खिला सके थे। मोदी लहर में मुलायम सिंह यादव के चुनाव मैदान में आ जाने के कारण समाजवादियों की इस जमीन पर भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। चुनाव हारने के बाद से रमाकान्त यादव अपने दल भाजपा के एजेण्डे से हटकर हमेशा काम करते रहे। फिर भी भाजपा ने रमाकान्त को हमेशा सम्मान दिया। यहां तक कि पिछले विधानसभा चुनाव में दस विधानसभा सीटों वाले इस जिले में उनके करीबी सात लोगों को चुनाव लड़ाया गया। ये सभी चुनाव हार गये। मौजूदा समय में उनका बेटा अरुणकान्त यादव जिले की पवई-फूलपुर सीट से भाजपा का विधायक है।

इसके बावजूद पार्टी लाइन से हटकर वह हमेशा सभा में और मीडिया के सामने अगड़ों व पिछड़ों की बात करते हैं। यहां तक कि राजनाथ सिंह व योगी आदित्यनाथ पर पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाया। वह दल से तो नहीं निकाले गये मगर हाशिये पर जरूर हो गये। भाजपा इस बार इन्हीं कारणों से न तो रमाकान्त को चुनाव लड़ाना चाहती है और न ही नीचे से उपर तक का कोई भी कैडर भाजपाई उनको चुनाव लड़ाने के पक्ष में है। इन्हीं कारणों से भाजपा ऐसा बड़ा चेहरा खोज रही है जो चुनाव भी जीत जाये।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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