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भाजपा के सामने जातीय चक्रव्यूह तोडऩे की चुनौती

seema
Published on: 17 May 2019 1:17 PM IST
भाजपा के सामने जातीय चक्रव्यूह तोडऩे की चुनौती
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: लोकसभा चुनाव के सातवें व अंतिम चरण में 19 मई को वोट डाले जाएंगे। अंतिम चरण में पूरे देश की नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए गढ़ पूर्वांचल पर लगी हैं, जहां की 13 सीटों पर मतदान होना है। साल 2014 के चुनाव में बीजेपी ने इन सभी सीटों पर कब्जा किया था, लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं। 13 में से कम से कम 7 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी और गठबंधन में जोरदार मुकाबला है। कुल मिलाकर मैदान में लड़ाई गठबंधन के जातिगत समीकरण और बीजेपी के राष्ट्रवाद के बीच हो रही है। बाजी किसके हाथ लगेगी, यह तो 23 मई को ही पता चलेगा। इस बीच बीजेपी उम्मीदवारों की उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिकी है जो पूर्वांचल में ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। पीएम ने अपने तीखे बयानों से सियासी लड़ाई को और जोरदार बना दिया है। पूर्वांचल की इस लड़ाई को जीतने के लिए बीजेपी की पूरी पलटन ही मैदान में उतर आई है। वहीं गठबंधन की ओर से अखिलेश-मायावती ने मोर्चा संभाल रखा है। मायावती और अखिलेश रैलियों के जरिए गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। गठबंधन को यकीन है कि अगर मुस्लिम-यादव और दलित वोटबैंक ने साथ दिया तो बीजेपी का खेल बिगडऩा तय है।

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वोटरों की चुप्पी से बीजेपी परेशान

साल 2014 के मुकाबले 2019 की राजनैतिक फिजां बिल्कुल अलग है। सियासी शोर कम सुनाई दे रहा है तो चुनाव को लेकर लोगों की दिलचस्पी भी उतनी नहीं दिख रही है, जिसके लिए पूर्वांचल प्रसिद्ध है। सियासी पार्टियों को लेकर मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग चुप्पी साधे पड़ा है। उसकी पसंद-नापसंद जानने में राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधरों के भी पसीने छूट गए हैं। साल 2014 के चुनाव में पूर्वांचल पूरी तरह से मोदीमय हो चुका था। बच्चे-बच्चे की जुबान पर मोदी छाए हुए थे। हर जाति में उन्हें लेकर उत्साह था, लेकिन इस बार की तस्वीर अलग है। राष्ट्रवाद और विकास को लेकर मोदी जरूर लोगों की पसंद हैं, लेकिन जाति के खांचे में वो फिट नहीं हो पा रहे हैं। बीजेपी की परेशानी की असल वजह भी यही है।

जानकार बता रहे हैं कि शहरी वर्ग में बीजेपी मजबूत है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में उसे अच्छी-खासी मेहनत करनी पड़ रही है। खासतौर से उस वोटबैंक को लेकर जो 2014 में पहली बार बीजेपी से जुड़ा था। बीजेपी के सामने असली चुनौती इस वोटबैंक को फिर से अपने पाले में लाना है। बीजेपी ने दलित वोटबैंक को सहेजने के लिए जमीनी स्तर पर खूब कसरत की। चाहे एससी-एसटी एक्ट का मामला हो या फिर सरकारी योजनाओं का लाभ देना, बीजेपी ने दलितों को लेकर खूब दरियादिली दिखाई, लेकिन लोकसभा चुनाव आते ही दलितों और पिछड़ों में मोदी को लेकर अजब सन्नाटा पसर गया है। दलित न खुलकर मोदी का समर्थन कर रहा है और न ही विरोध। उसकी चुप्पी अब बीजेपी को परेशान करने लगी है।

जातीय गणित कर रही परेशान

हर कोई यह जानता है कि सपा-बसपा का गठबंधन पूरी तरह से जातिवाद के फॉर्मूले पर आधारित है और यही गठबंधन की ताकत भी है। अखिलेश और मायावती अपनी इस ताकत का इस्तेमाल चुनावी मैदान में बखूबी तौर पर करते आए हैं। खबरों के मुताबिक छह चरणों तक गठबंधन की केमेस्ट्री कायम रही है। उसे उम्मीद है कि सातवें चरण में भी ऐसा ही होगा। दूसरी ओर बीजेपी के राष्ट्रवाद के रथ पर सवार बीजेपी मोदी मैजिक के भरोसे आगे बढ़ रही है। लेकिन असल दिक्कत जातिवाद के जंजाल को तोड़ पाना है। अपना भारत की टीम ने पूर्वांचल के अलग-अलग जिलों के दौरे किए। वाराणसी को छोड़कर कमोबेश हर जगह जनता जातिवाद का राग दिखा। खासतौर से गठबंधन का वोटबैंक मजबूती से डटा पड़ा है।

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गाजीपुर रेलवे स्टेशन के सामने खड़े ऑटो चालक अब्दुल रहीम चुनावी नब्ज टटोलने पर कहते हैं कि मनोज सिन्हा के आने के बाद बहुत विकास हुआ। हमारी रोजी-रोटी उन्हीं की बदौलत चल रही है। लेकिन वोट किसे देंगे, यह तय नहीं कर पाएं हैं। वोट हम उसी को देंगे जो जीतने वाला है। अब्दुल की तरह कई अन्य वोटर हैं जिन्हें मनोज सिन्हा और बीजेपी का विकास तो पसंद है, लेकिन उनके लिए जातिवाद सबसे ऊपर है। खासतौर से पिछड़े वर्ग में। बीजेपी ने इस वर्ग को साधने के लिए बहुत मेहनत की थी। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया तो सरकारी योजनाओं में जमकर तरजीह दी गई। बावजूद इसके मोदी अभी तक दलितों का दिल नहीं जीत पाए हैं। जातिगत समीकरण में उलझे पूर्वांचल में इसकी झलक साफ दिख रही है। बसपा-सपा के गठबंधन के बाद मजबूत दिख रही मायावती दलितों के वोट बैंक पर मजबूती से कायम हैं। उनके समर्थकों को उम्मीद है कि अगर हालात बदले तो मायावती भी पीएम बन सकती हैं।

मोदी के लिए उतरी बीजेपी की पलटन

दूसरी ओर बीजेपी ने अपनी जीत के लिए सभी घोड़े छोड़ दिए हैं। मोदी की अगुवाई में बीजेपी ताबड़तोड़ प्रचार कर रही है। मोदी के अलावा अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह, केशव प्रसाद मौर्या, जेपी नड्डा, नलिन कोहली, मनोज तिवारी, सिद्धार्थनाथ सिंह, रीता बहुगुणा जोशी सहित लगभग पचास सांसद वाराणसी और आसपास के जिलों में पिछले एक हफ्ते से डेरा डाले हैं। ऐसा लग रहा है कि बीजेपी ने पूरी पलटन ही उतार दी है। वाराणसी में मोदी की जीत के लिए देश के कोने-कोने से कार्यकर्ता और मोदी समर्थक जुटे हुए हैं। इनमें से कई स्टूडेंट भी हैं। वहीं गुजरात से करीब दो हजार बीजेपी कार्यकर्ता, उद्यमी बनारस पहुंचे हुए हैं। ये लोग गली-गली घूमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लोगों से मिल रहे हैं। सरकार की योजनाओं का प्रचार कर रहे हैं। वाराणसी में मोदी की बड़ी जीत के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी बड़ी कसरत कर रही है। संघ ने अपने प्रचारकों की फौज उतार दी है। वहीं चुनाव के अंतिम दौर में मोदी भी बनारस की सड़कों पर उतरेंगे। हालांकि इस बार उनका अंदाज अलग होगा। मोदी की बनारस में मौजूदगी ही अपने आप में किसी प्रचार से कम नहीं होती। इसके पहले साल 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी तीन दिन तक बनारस रुके थे और जमकर प्रचार किया था। इसका असर ये हुआ कि बनारस की आठों विधानसभा सीटों के साथ ही आसपास के जिलों में भी भाजपा को जनसमर्थन मिला था। इस बार भी मोदी की यही कोशिश है। दरअसल बीजेपी के सामने असल चुनौती मोदी के जीत के अंतर को बड़ा करना है। बीजेपी इस बार जीत का अंतर सात लाख से पार ले जाना चाहती है। साल 2014 में मोदी ने करीब पौने चार लाख वोट से अरविंद केजरीवाल को हराया था। बीजेपी समर्थकों के मुताबिक इस बार मोदी विरोधी सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त कराना ही पार्टी का असली लक्ष्य है। 2014 में अरविंद केजरीवाल के अलावा किसी अन्य उम्मीदवार की जमानत नहीं बचा पाया था।

मोदी के खिलाफ विरोधियों ने भी कसी कमर

मोदी की जीत को फीका करने के लिए विरोधियों ने भी पूरी ताकत लगा दी है। मोदी का मुख्य मुकाबला कांग्रेस के अजय राय और गठबंधन प्रत्याशी शालिनी यादव से है। अजय राय साल 2014 में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि उनकी जमानत जब्त हो गई थी,लेकिन इस बार उन्हें उम्मीद है कि वो मोदी को कड़ी टक्कर देंगे। अजय राय के चुनाव प्रचार के लिए 15 मई को कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाराणसी पहुंचीं। उन्होंने लंका से गोदौलिया तक रोड शो कर कांग्रेसियों में उत्साह भरने की कोशिश की। प्रियंका गांधी के रोड शो में भले ही मोदी जैसी भीड़ ना दिखी हो, लेकिन उन्होंने अपने स्टाइल से बनारसियों का दिल जीत लिया। उन्होंने इंसानियत पर नेतागिरी को हावी नहीं होने दिया। रोड शो के दौरान घायल हुए एक युवक के पास पहुंचीं और उसे तुरंत अस्पताल भिजवाया। लंका चौराहे पर मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद प्रियंका का रोड शो शुरू हुआ। अस्सी के बाद रोड शो जैसे ही भदैनी इलाके में पहुंचा, वहां कांग्रेसी समर्थकों ने प्रियंका गांधी को चुनरी ओढ़ाकर उनका सम्मान किया। इस दौरान कुछ बुजुर्ग ऐसे थे, जो हाथों में चुनरी लेकर खड़े थे, लेकिन प्रियंका तक नहीं पहुंच पाए। इस बात की जानकारी जैसे ही प्रियंका को हुई, उन्होंने बुजुर्ग शख्स को अपनी ट्रक पर बुलाया और उनके हाथों से चुनरी ओढ़ी। इस बीच कांग्रेस कार्यकर्ता और मोदी समर्थकों में जमकर झड़प हुई। लगभग आधा दर्जन बार ऐसा हुआ जब दोनों पक्षों में जमकर झड़प हुई।

वहीं दूसरी ओर सपा प्रत्याशी शालिनी यादव ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार कर रही हैं। हालांकि उन्हें लेकर सपा के नेताओं में ज्यादा उत्साह नहीं है। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि वो मोदी को जोरदार टक्कर देंगीं। गुरुवार को उनके समर्थन में अखिलेश यादव व मायावती ने रैली करके माहौल बनाने की कोशिश की। हालांकि उनके पहले गठबंधन ने बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन अंतिम वक्त पर चुनाव आयोग ने उनका नामांकन रद्द कर दिया। इसके पीछे हवाला दिया गया कि तेज बहादुर यादव ने अपने हलफनामे में अधूरी जानकारी दी थी।

मोदी विरोधियों की नजर मुस्लिम मतदाताओं पर

यकीनन बनारस में मोदी की जीत पर किसी को कोई शक नहीं है। अब सवाल यह है कि मोदी को असल टक्कर देगा कौन? राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बनारस में जिसे मुस्लिमों का समर्थन मिलेगा, वही मोदी को टक्कर दे पाएगा। बनारस में करीब तीन लाख मुस्लिम मतदाता हैं। पिछली बार मुस्लिमों ने अरविंद केजरीवाल का खुलकर समर्थन किया था। इस बार अरविंद केजरीवाल तो मैदान में नहीं है तो सवाल है कि मुस्लिम किसका समर्थन करेंगे? बनारस के सियासी समर में फिलहाल मुसलमान चुप्पी साधे हैं। कांग्रेस और गठबंधन को लेकर उनकी उलझन बनी हुई है। हालांकि मुस्लिमों के एक बड़े तबके के बीच अजय राय की अच्छी पकड़ है। अजय राय मुस्लिम इलाकों में लगातार बने रहते हैं। ऐसे में संभव है कि अंतिम वक्त में मुस्लिम मतदाता गठबंधन के बजाय कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय को तरजीह दें।

चंदौली में जातीय समीकरण कर रहा परेशान

वाराणसी से सटे चंदौली में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय की साख दांव पर लगी है। महेंद्रनाथ पांडेय के खिलाफ जन सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय चौहान सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने जन अधिकार पार्टी की शिवकन्या कुशवाहा को समर्थन दिया है। बताया जा रहा है कि महेंद्रनाथ पांडेय गठबंधन और कांग्रेस के जातिगत समीकरण में फंस गए हैं। उन्हें इन दोनों ही पार्टियों से जोरदार टक्कर मिल रही है। यही नहीं पांडेय के खिलाफ स्थानीय लोगों में गुस्सा भी है। लोगों का आरोप है कि पांच साल के कार्यकाल में वे बेहद कम वक्त अपने क्षेत्र में रहे। यही नहीं सिर्फ अपने ही लोगों का भला किया।

चंदौली के धानापुर के रहने वाले अरविंद कहते हैं कि पांच साल तक सांसद रहने के दौरान वे कभी हमारे इलाके में नहीं आए। आप बताइए जो नेता हमारे सुख-दुख में साथ ना हो, हम उसे क्यों वोट दें। सिर्फ अरविंद ही नहीं सकलडीहा के रहने वाले सकलदीप भी महेंद्रनाथ पांडेय से नाराज दिखे। उन्होंने कहा कि महेंदनाथ पांडेय मोदी कैबिनेट में मंत्री बने। यूपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे। चंदौली में कौन सा विकास कार्य किया। सालों से एक फ्लाईओवर निर्माणाधीन है। अब तक पूरा नहीं हुआ।

लोगों की नाराजगी और जातिगत समीकरण में फंसने के बावजूद महेंद्रनाथ पांडेय को यकीन है कि जीत उन्हीं की होगी। इसके लिए उन्होंने पूरी सियासी बिसात बिछा दी है। राजपूत वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए वे बीएसपी नेता और बाहुबली विनीत सिंह को अपने पाले में लाने में कामयाब हुए हैं। हालांकि विनीत की बीजेपी में अनौपचारिक इंट्री नहीं हुई है। फिर भी माना जा रहा है कि उनके आने से काफी हद तक राजपूत मतदाताओं की नाराजगी कम होगी।

लोगों की राय

मोदी जी ने वाराणसी के विकास के लिए बहुत काम कराए हैं। यकीनन उनकी तुलना में यहां पर कोई दूसरा प्रत्याशी नहीं है। लेकिन देखना होगा कि मोदी की जीत पिछले बार की तुलना में अधिक रहती है या फिर कम।

शैलेंद्र पांडेय, स्थानीय निवासी

मोदी सरकार से जनता तो बहुत खुश है, लेकिन हमारे सांसद ने अपेक्षित काम नहीं कराया। सरकार की ओर से गरीब महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर दिए। घर में बिजली आ गई है। वहीं चंदौली आज भी पिछड़ा है।

पूजा, निवासी चंदौली

बनारस में नरेंद्र मोदी ने विकास के जो काम कराए हैं वो शहर के लिए मील का पत्थर है। चाहे सड़क हो, रेल हो या फिर सीवर या अन्य सेक्टर। मोदी के विकास कार्यों से बनारस की जनता बमबम है।

गौरव कुमार, अधिवक्ता

नरेंद्र मोदी ने हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन इन पांच सालों रोजगार के क्या हालात है, हर कोई जानता है। बनारस में भी रोजगार के साधन नहीं है। हमारे जैसे नवजवानों को मोदी जी से बहुत उम्मीदें थीं। उन्होंने हमारा सपना तोड़ दिया।

शशांक, स्थानीय निवासी

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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