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ब्रजभूषण शरण सिंह का विवादों से रहा है पुराना नाता, रोकेंगे राज ठाकरे को, आज साधु संतो के साथ बनेगी रणनीति

Raj Thakrey Ayodhya Visit: छह बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह राजनीति के क्षेत्र में चर्चा में तब आए जब भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रामरथ यात्रा निकाली।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Monika
Published on: 10 May 2022 6:31 AM GMT
Raj Thakrey Ayodhya Visit
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बृजभूषण शरण सिंह- राज ठाकरे (फोटो: सोशल मीडिया )

Raj Thackeray Ayodhya Visit: अयोध्या एक बार फिर देश में राजनीति का केन्द्र बनी हुई है। महाराष्ट्र के दो राजनीतिक दलों शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के आपसी टकराव के बीच भाजपा भी कूद पड़ी है। जहां दूसरे राज्य के आपसी टकराव की प्रयोग शाला अयोध्या को बनाया जा रहा हैं वहीं भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan Singh) इसे रोकने के लिए साधु संतो को लामबंद करने में जुट गए हैं। आज भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह साधु संतों का एक बड़ा सम्मेलन कर आगे की रणनीति बनाएगें।

छह बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह राजनीति के क्षेत्र में चर्चा में तब आए जब भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रामरथ यात्रा निकाली। उस दौरान युवा बृजभूषण शरण सिंह इस यात्रा में बराबर एक सेवक के तौर पर आडवाणी की सेवा की । तब आडवाणी ने अंजान युवक के बारे में लोगों से पूछा तो बताया गया कि यह ब्रजभूषण है जो एक पहलवान भी हैं। इस पर लालकृष्ण आडवाणी बेहद खुश हुए और उन्होंने 1991 के लोकसभा चुनाव में उतार दिया। इस चुनाव में ब्रजभूषण सिंह की लम्बे अंतर से जीत हुई। बाबरी विध्ंवस के आरोपितों में से एक बृजभूषण शरण सिंह इसे लेकर जेल भी गए।

अयोध्या आंदोलन से पहचान बनी,आडवाणी के रहे करीबी

बृजभूषण शरण सिंह युवावस्था से घुडसवारी पहलवानी आदि के शौक़ीन थें। उन्होंने पहली बार युवावस्था में ही गन्ना समिति के चुनाव में हिस्सा लिया और चुनाव जीत गए। इसके बाद वह बोफार्स कांड में राजीव गांधी के खिलाफ परचम उठाने वाले विष्वनाथ प्रताप सिंह के जनता दल से जुड गए। लेकिन उनका इस दल में ज्यादा दिन मन नही लगा और वह भाजपा से जुड गए। इस दौरान राममंदिर आंदोलन के चलते उनके अयोध्या के साधु संतो से सम्बन्ध बेहद प्रगाढ हो गए। साधु संतो की छाया में रहते हुए फिर आडवाणी से जुड गए।

मायावती के निशाने पर भी रहे, झेलनी पड़ी नाराजगी

उत्तर प्रदेश में जब बसपा भाजपा की सरकार बनी तो 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने गोंडा जिले का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण रखने का फैसला किया। इस पर ब्रजभूषण शरण सिंह बिफर गए। उन्होंने इसके खिलाफ एक जनादोंलन खड़ा कर दिया जिसके कारण उन्हे अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा। इसे लेकर मायावती के भाजपा से सम्बन्धों पर भी असर पड़ा। हाईकमान की नाराजगी के चलते ब्रजभूषण सिंह को भाजपा से अलग भी होना पड़ा । वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और 2009 का लोकसभा का चुनाव फिर जीता। लेकिन यहां उनकी अखिलेश यादव से बनी नहीं और वह फिर अपने घर यानी भाजपा वापस आ गए।इसके बाद 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव जीता।

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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