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भारतीय जनता पार्टी: रामजी करेंगे बेड़ा पार
योगेश मिश्र
भारतीय जनता पार्टी का कभी यह लोकप्रिय नारा था-रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे। इसी नारे के कठघरे में भारतीय जनता पार्टी बीते 26 सालों से खड़ी की जाती रही है, लेकिन इन दिनों मंदिर आंदोलन से जुड़े रामविलास वेदांती हों, साक्षी महाराज, विनय कटियार हों या फिर भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी अथवा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सब लोग मंदिर बनाए जाने को लेकर जो भी बयान दे रहे हैं, उनमें सिर्फ पुनरावृत्ति नहीं है बल्कि आश्वस्ति भाव भी है जिसमें मंदिर निर्माण का पक्ष दिखता है।
पुरातत्व विभाग द्वारा करायी गई खुदाई में मिले अवशेषों ने यह तो साबित कर ही दिया है कि रामजन्मभूमि पर निर्मित मंदिर को तोडक़र मस्जिद तामीर कराई गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के फैसले में विवादित दो दशमलव सात सात एकड़ जमीन के टुकड़े में दो तिहाई हिस्सा हिन्दू पक्ष के हक में जा चुका है। बीते दिनों सर्वोच्च अदालत ने अपने एक फैसले में यह साफ कर दिया है कि मस्जिद नमाज का अभिन्न हिस्सा नहीं यानी विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से हिन्दू पक्ष मंदिर बनने की उम्मीद का पाठ पढ़ सकता है।
अयोध्या में मंदिर निर्माण की मांग को लेकर चार दिनों से आमरण अनशन पर बैठे महंत परमहंस दास ने कहा है कि जो भी मंदिर निर्माण का विरोध करेगा वह ना तो हिंदू है और ना ही कोई साधु। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुद्दों पर घेरने की सियासत कर रहे कभी विहिप नेता रहे प्रवीण तोगडय़िा 21 अक्टूबर से अचानक अयोध्या कूच की बात करने लगे हैं। पांच अक्टूबर को धर्माचार्यों के दिल्ली में जमावड़े, इलाहाबाद कुंभ में मंदिर के मुद्दे पर बड़ी तैयारी बताती है कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ चल रहा है। शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को सपने में भगवान राम यूं ही नहीं नजर आने लगे हैं।
19 तारीख से होगी रोजाना सुनवाई
सर्वोच्च अदालत आगामी 19 तारीख से मंदिर की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर चल रही रोजाना सुनवाई करने जा रही है। हाल ही में सेवानिवृत्त हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के बारे में यह कथा के तौर पर ही सही प्रचलित था कि वे मंदिर मामले का फैसला देकर जाएंगे।
हालांकि यह हो नहीं पाया। अब तक के प्रमाणों के आधार पर एएसआई ने विवादित स्थल के नीचे के उत्खनन की 574 पन्ने की जो रिपोर्ट दी है, उसमें कहा गया है कि पुरातात्वीय साक्ष्य बताते हैं कि तोड़ गए ढांचे के नीचे 11वीं सदी के हिन्दुओं के धार्मिक स्थल से जुड़े साक्ष्य बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
राडार सर्वेक्षण में मिला था मंदिर
न्यायालय में भगवान शंकर की मूर्ति के सबूत भी पेश किये गए हैं। परिसर का राडार सर्वेक्षण भी कराया गया जिसमें यह तय हुआ कि ढांचे के नीचे एक और ढांचा है। 27 दीवारें मिलीं। दीवारों में नक्काशीदार पत्थर लगे हैं। एक छोटे से मंदिर की रचना मिली जिसे पुरातत्ववेत्ताओं ने 12वीं शताब्दी का हिंदू मंदिर लिखा है। उत्खनन की रिपोर्ट बताती है कि जो वस्तुएं मिलीं वे सभी उत्तर भारतीय हिन्दू मंदिर की वस्तुएं हैं। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर हाईकोर्ट के तीनों न्यायमूर्तियों ने माना कि विवादित स्थल का केन्द्रीय स्थल रामजन्मभूमि है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितंबर 2010 को अपने आदेश में अयोध्या के विवादित स्थल को 2:1 के अनुपात में हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच विभाजित कर दिया था। उच्च न्यायालय ने मस्जिद के गुम्बद क्षेत्र को जहां अस्थायी ढांचे में रामलला विराजमान है, हिन्दू पक्ष को आवंटित किया था। बाबरी मस्जिद के ढांचे को 6 दिसंबर 1992 को हिन्दू कारसेवकों के एक समूह ने ध्वस्त कर दिया था। इसके निकट का राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया। सुन्नी वक्फ बोर्ड को विवादित जमीन का बाहरी एक तिहाई हिस्सा दिया गया।
उच्च न्यायालय ने दावेदारों के बीच हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति के विभाजन में सीमाओं के सिद्धांत के अनुसार विभाजित किया था। वर्तमान में केन्द्र सरकार पूरी विवादित भूमि की रिसीवर है और इन सभी क्षेत्रों के प्रशासन और यथास्थिति के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है। सरकार ने 1993 में अयोध्या अधिनियम के तहत विवादित क्षेत्र में और उसके आसपास करीब 68 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की हुई है।
भाजपा को अयोध्या से संजीवनी की उम्मीद
इन दिनों उच्चतम न्यायालय तीन हिस्से में इस भूखंड को किए जाने के फैसले पर सुनवाई कर रहा है। इसी समय देश में मंदिर से जुड़े लोगों का मंदिर बनना शुरू होने का बयान और लोकसभा चुनाव में उतरने की भाजपा की तैयारी के बीच यह समझना आसान हो जाता है कि भाजपा के शक्ति केन्द्र अयोध्या, मथुरा, काशी से उसे संजीवनी मिलने की उम्मीद नजर आने लगी है। हालांकि मथुरा और काशी भाजपा के एजेंडे में नेपथ्य में हैं। हाल फिलहाल अयोध्या ही उम्मीद की किरण है। अभी तक जो मुद्दे और दृश्य दिख रहे हैं उसमें मंदिर निर्माण की शुरुआत के अलावा उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदर्शन को दोहराने और देश भर में भाजपाई सीटों की संख्या बढ़ाने का कोई दूसरा नुस्खा नहीं है।