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लोकसभा चुनाव : भाजपा के गढ़ में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर बनाम दिग्विजय सिंह
अंशुमान तिवारी
लखनऊ। इस बार के लोकसभा चुनाव में जिन सीटों पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं उनमें भोपाल की सीट भी शामिल है। इसका कारण यह है कि भोपाल में इस बार हाईप्रोफाइल मुकाबला होने जा रहा है। एक तरफ जहां कांग्रेस के दिग्गज नेता और 10 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह कांग्रेस टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं, वहीं बीजेपी ने अपने इस किले को बचाने के लिए अपने भगवा चेहरे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतार दिया है। वर्ष 2008 में हुए मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी रह चुकी प्रज्ञा ठाकुर कट्टर हिंदू छवि वाली साध्वी हैं और उन्हें दिग्विजय सिंह का धुर विरोधी माना जाता है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के मैदान में उतरने से भोपाल में चुनावी जंग सॉफ्ट हिंदुत्व बनाम हार्डलाइन हिंदुत्व की मानी जाने लगी है।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के चुनाव लडऩे से यहां विकास के मुद्दे गौण हो गए हैं और आस्था, धर्म और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे उभरकर सामने आ गए हैं। साध्वी के टिकट के ऐलान के बाद भोपाल सीट पर बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा बनाम कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व के बीच लड़ाई हो गई है। दोनों प्रमुख प्रत्याशियों ने इस सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है। दिग्विजय सिंह पहले ही साध्वी के मैदान में उतरने की संभावना को भांप चुके थे। यही कारण है कि उन्होंने पहले ही मंदिरों का दौरा शुरू कर दिया था। दिग्गी राजा के मंदिर दौरों और चुनाव प्रचार के दौरान अपनी नर्मदा परिक्रमा का मुद्दा उठाने से भगवा ब्रिगेड हमलावर हो गई है। भाजपा ने इसे दिग्विजय का नाटक करार दिया है। भाजपा का दावा है कि हिंदू वोटों के चक्कर में कांग्रेस अपने मुस्लिम वोटों से भी हाथ धो बैठेगी। वैसे भोपाल सीट पर मुस्लिमों की बड़ी भूमिका क्योंकि यहां करीब 4 लाख मुस्लिम वोटर हैं। बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस का दोहरा मापदंड अब जनता के सामने आ गया है।
साध्वी को टिकट देने से कांग्रेस हमलावर
साध्वी को टिकट दिए जाने के बाद कांग्रेस भी हमलावर हो गई है। कांग्रेस ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को दक्षिणपंथी अतिवादी करार दिया है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा ने ऐसी प्रत्याशी को मैदान में उतारा है जो मालेगांव आतंकी हमलों में कथित रूप से शामिल रही हैं। पार्टी ने दिग्विजय सिंह को केंद्र में रखकर भोपाल घोषणापत्र अभियान शुरू किया है। भोपाल में छठे चरण में 12 मई को मतदान होना है। इतना तय है कि मतदान की तिथि से पहले साध्वी और दिग्विजय के बीच आरोप-प्रत्यारोप और तेज होंगे। सोशल मीडिया पर समर्थक अपने-अपने प्रत्याशी के समर्थन में पहले ही सक्रिय हो गए हैं।
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1984 के बाद नहीं जीती कांग्रेस
जहां तक भोपाल सीट का सवाल है तो यह सीट भाजपा का गढ़ रही है। कांग्रेस ने इस सीट पर भाजपा का तिलिस्म तोडऩे के लिए ही इस बार मजबूत उम्मीदवार के रूप में दिग्विजय सिंह को उतारा है। वैसे बताया जाता है कि दिग्विजय पहले यहां से लडऩे को इच्छुक नहीं थे मगर बाद में हाईकमान के कहने पर वे चुनाव लडऩे को तैयार हो गए। इस सीट पर भाजपा का किस कदर वर्चस्व रहा है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि कांग्रेस ने यहां अपना आखिरी संसदीय चुनाव 1984 में जीता था। वह भी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर के सहारे। उसके बाद से 2014 तक कांग्रेस को हर चुनाव में भाजपा के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी। 1989 से रिटायर्ड आईएएस सुशील चंद्र वर्मा चार बार यहां से चुने गए। इसके बाद उमा भारती, कैलाश जोशी (दो बार) इस सीट को जीतने में कामयाब रहे।
इस बार की लड़ाई ठाकुर बनाम ठाकुर
भोपाल सीट पर कुल 19,56,936 वोटर हैं। इनमें चार लाख मुसलमान और करीब सवा लाख सिंधी वोटर भी हैं। दोनों ही चुनाव नतीजों पर बड़ा प्रभाव डालेंगे। दो से ढाई लाख कायस्थ वोटर हैं। करीब 40 फीसदी वोटर ओबीसी हैं। पिछले चुनाव में यहां से बीजेपी के आलोक संजर को जीत मिली थी। उन्हें कुल 714178 वोट मिले थे। कांग्रेस के पीसी शर्मा 343482 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार चुनाव का दिलचस्प पहलू यह है कि दोनों प्रमुख उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर और दिग्विजय सिंह दोनों ही राजपूत हैं। इस तरह इस बार की लड़ाई ठाकुर बनाम ठाकुर की होगी।
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साध्वी की उम्मीदवारी हो सकती है फायदेमंद
भाजपा के लिए साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस उम्मीदवारी ने बीजेपी को पूरे देश में हिंदुत्व के मुद्दे को उठाने में मदद की। साध्वी को उम्मीदवार बनाए जाने की खबर को देश भर के अखबारों व न्यूज चैनलों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। जानकारों का कहना है कि साध्वी की उम्मीदवारी से भाजपा को मतों के ध्रुवीकरण में मदद मिलेगी। इसका असर सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि उन राज्यों में भी पड़ सकता है जहां भाजपा मजबूती से चुनाव लड़ रही है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि आरएसएस विधानसभा चुनाव में हार के बाद इस चुनाव को बड़ी चुनौती के रूप में ले रही है। प्रज्ञा को टिकट देने का फैसला आरएसएस से सहमति के बाद लिया गया है। इसलिए पूरे संघ परिवार की यह जिम्मेदारी है कि साध्वी की जीत सुनिश्चित हो।
क्या था मालेगांव धमाका
महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को धमाका हुआ था। इसमें छह लोग मारे गए थे जबकि 100 से अधिक घायल हुए थे। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा समेत कई लोग आरोपी बनाए गए थे। एनआईए ने जांच के बाद साध्वी प्रज्ञा को क्लीनचिट दी थी मगर कोर्ट में यह मामला अभी भी चल रहा है। फिलहाल साध्वी प्रज्ञा जमानत पर हैं।
साध्वी को कोर्ट से बड़ी राहत
इस बीच मुंबई की एनआईए कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को बड़ी राहत दी है। एनआईए कोर्ट ने चुनाव लडऩे से रोकने की याचिका को खारिज कर दिया है। सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि दायर याचिका में शिकायतकर्ता ने अपना हस्ताक्षर ही नहीं किया है। शिकायतकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने दलील दी कि साध्वी प्रज्ञा को स्वास्थ्य के आधार पर जमानत दी गई है, लेकिन वह टीवी पर इंटरव्यू देते दिखाई दे रही हैं। इस पर साध्वी के वकील जेपी मिश्रा ने कहा कि उनकी मुवक्किल इलाज करा रही हैं। उनकी स्थिति में सुधार हुआ है। एक डॉक्टर हमेशा उनके साथ रहता है। वह विचारधारा और देश के आधार पर चुनाव लड़ रही हैं। वकील ने कहा कि वह साबित करना चाहती है कि भगवा आतंकवाद जैसा कुछ भी नहीं है। यही कारण है कि वह चुनाव लड़ रही है। याचिका दायर होने पर साध्वी ने कहा था कि याचिका राजनीति से प्रेरित है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट का समय बर्बाद किया है। इसलिए उस पर जुर्माना लगाकर याचिका को खारिज किया जाना चाहिए।
जालौन से एमपी जाकर बसा साध्वी का परिवार
बहुत कम ही लोग जानते हैं कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर मूल ठिकाना उत्तर प्रदेश का जालौन जिला है। साध्वी के पिता डॉ.चन्द्र पाल सिंह राजावत जालौन जिले के ग्राम परावर के मूल निवासी थे। पहूज नदी के किनारे बसे परावर गांव में खेती से कोई खास उपज न मिलने पर वे परिवार के साथ मध्य प्रदेश के लहार (भिंड) जाकर बस गये। साध्वी को आतंकवादी बताए जाने पर पिता को ऐसा सदमा लगा कि 2013 में उनका निधन हो गया। साध्वी के पिता ने आयुर्वेद की पढ़ाई की थी। लहार में वे इलाज कर अपनी गृहस्थी चलाने लगे। साध्वी के पिता डा.सी.पी.सिंह संघ से जुड़े हुए थे।
डॉ सीपी के पांच संताने हुईं जिनमें चार बेटियां और एक बेटा है । इनके नाम हैं- उपमा, प्रज्ञा,उत्तमा,पुष्पमित्र और प्रतिमा। प्रज्ञा का जन्म 1970 में हुआ था। प्रज्ञा का स्वभाव बचपन से ही दूसरी बहनों से बिल्कुल अलग था। वे घर चलाने में बेटे को ही लायक मानने के खिलाफ थीं। यहीं से शायद उनके मन में विवाह न करने का विचार घर कर गया। प्रज्ञा के बारे में सबसे छोटी बहन प्रतिमा का कहना है कि उनकी दीदी बचपन से ही स्वतंत्र स्वभाव की रही हैं। छात्र जीवन में वह संघ की विचारधारा की ओर मुड़ गईं और एबीवीपी की सदस्य बन गयीं। 1997 में आरएसएस की दुर्गा वाहिनी की पूर्णकालिक सदस्य बनकर मंडल प्रमुख का दायित्व निभाने लगीं। बाद में स्वामी अवधेशानंद से प्रभावित हुईं और 2005 में हमेशा के लिए भगवा चोला धारण कर लिया। उन्होंने भिंड से स्नातक करने के बाद बिलासपुर से बीपीएड का कोर्स किया। वह शुरू से ही अच्छी वक्ता रही हैं।
धमाके में नाम आने के बाद सबकुछ बदल गया
बाद में 2008 में मालेगांव धमाके में नाम आने के बाद सबकुछ अचानक बदल गया। भगवा आतंकवाद का शब्द इसी घटना के बाद प्रयोग में लाया गया था। 23 अक्टूबर 2008 को साध्वी को एटीएस ने साध्वी को पूछताछ के लिए बुलाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत में दिए गए बयान में साध्वी ने एटीएस पर 23 दिनों तक प्रताडि़त करने का आरोप लगाया था। उनका यह भी आरोप है कि लाई डिटेक्टर और नार्को एनेलिसस टेस्ट भी बिना अनुमति के कराया गया। 2017 में सबूत के अभाव में साध्वी को जमानत मिल गई। इस प्रकरण को लेकर परिवार इस कदर तनाव में रहा कि वह बिखर गया। साध्वी के पिता सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके और 2013 में उनका निधन हो गया। प्रज्ञा को चुनाव जिताने के लिए सभी बहनें उनके चुनाव प्रचार में उतरने जा रही हैं।