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भाजपा के रास्ते पर कांग्रेस, जातीय संतुलन साधने की कोशिश
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: कभी देश की सारी पार्टियां कांग्रेस की कार्यशैली और उसके बताए रास्ते पर चला करती थी मगर बदलते दौर ने इसे उल्टा कर दिया है। अब सत्तासीन पार्टी भाजपा की नकल दूसरे अन्य दलों के अलावा देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी करने लगी है। जिस तरह से हाल ही में उत्तर प्रदेश कांग्रेस में बदलाव हुआ उसमें काफी कुछ भाजपा की कार्यशैली से मिलता-जुलता दिख रहा है।
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दिग्गज कांग्रेसियों से भरे यूपी में नए चेहरे अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो कमेटी में सारे पुराने चेहरों को हटा नए आदोलनकारी तेवर वाले नौजवानों को जगह देने का काम पहली बार किया गया। भाजपा के मार्गदर्शक मंडल की तरह ही यूपी कांग्रेस में घूम फिर कर हर कमेटी में नजर आने वाले तमाम दिग्गजों को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया और बहुत कुछ कर दिखाने का दावा करने वालों को रणनीति तैयार करने वाली एक समिति बनाकर वहां समायोजित कर दिया गया। पहली बार ऐसा हुआ कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी को बेहद छोटा बनाकर केवल 41 सदस्यों को इसमें रखा गया। भाजपा की शैली में ही पूरी कमेटी को केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने स्तर पर बनाकर इसे नए अध्यक्ष अजय कुमार सिंह लल्लू को सौंप दिया।
नई कमेटी की औसत आयु 40 साल की
यहीं नहीं जिस तरह भाजपा में कई नेताओं को मुख्य धारा से हटाकर उनके बेटे-बेटियों को आगे लाने का काम किया जाता है उसी तर्ज पर प्रदेश के पुराने नेता प्रमोद तिवारी को सलाहकार समिति में स्थान देकर उनकी बेटी आराधना मिश्र उर्फ मोना को कांग्रेस विधानमंडल दल का नेता घोषित कर यह संदेश दिया गया कि अब कांग्रेस बदल रही है। नई कमेटी की औसत आयु 40 साल की है। इसमें बाहर से आए दूसरे दलों के लोगों से भी परहेज नहीं किया गया है। लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस में आने वाले वीरेंद्र चौधरी, राकेश सचान, कैसर जहां, धीरेंद्र प्रताप धीरु सरीखे कई नाम इसी तरह के हैं जो अब कांग्रेस मुख्यालय में बड़ी जिम्मेदारी संभालेंगे।
कमेटी में नए लोगों को मौका
यूपी कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी के बारे में ख्ूाब चर्चा हो रही थी कि इस बार कांग्रेस हाईकमान ब्राह्मण चेहरे के तौर पर उन्हें ही प्रदेश की कमान सौंपने जा रही है। हालांकि इसके पहले कांग्रेस ब्राह्मण, ठाकुर, मुसलमान, खत्री सभी को आजमा चुकी है। अरुण कुमार सिंह मुन्ना, जगदंबिका पाल, रीता बहुगुणा जोशी, निर्मल खत्री, राज बब्बर पीसीसी चीफ बने और अब अजय कुमार लल्लू को यह मौका मिला है। प्रमोद तिवारी की बेटी आराधना मिश्रा को कांग्रेस विधानमंडल दल का नेता बनाकर उन्हें भी संतुष्ट करने की कोशिश की गई है। कमेटी में रखे गए 41 लोगों में से ललितेश पति त्रिपाठी, देवेंद्र सिंह जैसे इक्का दुक्का चेहरों को छोडक़र कोई भी कांग्रेस में किसी पद पर तो दूर पीसीसी में किसी बैठक में अगली कतार तक में ही नहीं बैठाया गया।
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तीन महीने तक किया होमवर्क
इस बार प्रदेश अध्यक्ष के नाम के साथ ही प्रदेश कमेटी के पदाधिकारियों के नामों का भी एलान किया गया है। इन पदाधिकारियों के चयन के लिए भी प्रियंका गांधी की टीम ने तीन महीने लगातार होमवर्क किया। एक-एक पदाधिकारी को चुनने से पहले उसके बारे में जानकारी जुटाई,जातीय-क्षेत्रीय समीकरण को भी देखा गया। इसी का नतीजा है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में घोषित 41 नामों में से कुछ को छोडक़र ज्यादातर की कुंडली तलाशने पर भी कांग्रेस की राजनीति के माहिर लोगों को नहीं मिल पा रही है। साल 2014 के बाद भाजपा ने सपा-बसपा से पिछड़ा वोट बैक छीनने का काम किया है। इसे ध्यान में रखकर यूपी कांग्रेस की नई कमेटी में पिछड़ों को खास तरजीह दी गयी है। पिछड़ों में भी यादवों के अलावा अतिपिछड़ी जातियों को ज्यादा जगह मिली है। अपने-अपने इलाके में प्रभाव रखने वाले गैर यादव पिछड़े नौजवान नेताओं को सीधे प्रदेश की राजनीति में लाया गया है।
इस तरह प्रियंका की पसंद बने लल्लू
लल्लू का पिछड़ा होना, प्रदेश कांग्रेस में किसी गुट से संबद्ध न होना और विपरीत हालात में भी लगातार दो बार चुनाव जीतना उनके पक्ष में गया। कांग्रेस कार्यकताओं से टीम प्रियंका के लिए गए फीडबैक में लल्लू जैसे नेता को ही अगुआ बनाने का मशविरा निकलकर आया। बड़े नेताओं की सिर फुटौव्वल के बीच प्रियंका गांधी को प्रदेश अध्यक्ष के लिए लल्लू ही सबसे बेहतर विकल्प लगे। प्रियंका गांधी एक ऐसा नया चेहरा भी चाहती थीं जो इससे पहले प्रदेश कांग्रेस में किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को न संभाल चुका हो। लोकसभा चुनावों के दौरान प्रियंका गांधी की गंगा यात्रा में उनके साथ हर कदम पर साथ रहने वाले कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू वहीं से नेतृत्व की नजरों में आए। इसी यात्रा के दौरान प्रियंका गांधी को लल्लू की सादगी, कार्यकर्ताओं के साथ व्यवहार और मेहनत करने का जज्बा पसंद आया। लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बावजूद लल्लू का आंदोलनकारी तेवर बरकरार रहा और जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया तो उन्होंने एक के बाद एक कई आंदोलन किए।
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कमेटी की खास बात यह है कि 12 महासचिवों में गजब का जातीय संतुलन बैठाते हुए दलित, पिछड़ा, अगड़ा, अल्पसंख्यक व महिला सबका तालमेल बैठाया गया है। इनमें चौधरी घूराम लोधी, राकेश सचान, अनिल यादव पिछड़ा वर्ग से तो युसुफ अली, बदरुद्दीन कुरैशी अल्पसंख्यक, आलोक पासी दलित, विश्वविजय सिंह ठाकुर, योगेश दीक्षित ब्राह्मण, राहुल राय भूमिहार, शबाना खंडेलवाल वैश्य और वीरेंद्र सिंह जाट समाज से हैं। इसी तरह का सामंजस्य सचिवों की सूची में भी दिखता है। हालांकि महिला आरक्षण की पुरजोर वकालत करने वाली सोनिया गांधी की कांग्रेस में महिलाओं को टोटा जरूर यूपी कांग्रेस कमेटी में दिखता है। पूरी कमेटी में महज चार महिलाएं ही जगह पा सकी हैं।
कांग्रेसी दिग्गजों को एडजस्ट करने की कवायद
यूपी कांग्रेस की 41 सदस्यों की कमेटी के अलावा दो अन्य समितियां भी बनायी गयी हैं। इन समितियों में कांग्रेसी दिग्गजों को एडजस्ट करने की कवायद की गयी है। संगठन में काम करने का जिम्मा जहां नए लोगों को दिया गया है वहीं 18 सदस्यों वाली सलाहकार समिति में प्रमोद तिवारी, सलमान खुर्शीद, आरपीएन सिंह, पीएल पुनिया, निर्मल खत्री, प्रदीप माथुर, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, मोहसिना किदवई, प्रवीण एरन, रंजीत सिंह जुदेव, अजय राय, अजय कपूर, संजय कपूर, विवेक बंसल, राजेश मिश्रा व राशिद अल्वी को रखा गया है। पार्टी ने रणनीति व योजना पर काम करने के लिए एक वर्किंग ग्रुप भी बनाया है। बताया जाता है कि वर्किंग ग्रुप की जिम्मेदारी सलाहकार मंडल से ज्यादा होगी। इस ग्रुप में जितिन प्रसाद, आरके चौधरी, राजीव शुक्ला, इमरान मसूद, प्रदीप जैन, ब्रजलाल खाबरी, राजाराम पाल और राजकिशोर सिंह को रखा गया है।