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उत्तर प्रदेश में नकली ही नहीं ब्लैक में बिक रहा रेमडेसिविर इंजेक्शन
रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना काल में आपदा में अवसर निकालने वालों के लिए एक बड़ा अवसर बनकर आया है।
यूपीः रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना काल में आपदा में अवसर निकालने वालों के लिए एक बड़ा अवसर बनकर आया है। प्राइवेट प्रैक्टिशनर्स और प्राइवेट अस्पताल कोरोना संक्रमित मरीज के अस्पताल में पहुंचते ही मरीज के तीमारदारों के आगे रेमडेसिविर इंजेक्शन की डिमांड रख देते हैं। जिसे ढूंढ कर लाना उनके लिए लगभग नामुमकिन होता है। इसी के साथ शुरू होता है पीड़ित और परेशान परिजनों की भावनात्मक सौदेबाजी जिसमें चार हजार रुपये के इंजेक्शन की कालाबाजार में कीमत 20 से 25 हजार तक पहुंच जाती है। लेकिन अफसोस की बात ये है कि साइबर अपराधी इसमें भी अवसर निकाल कर रेमडेसिविर का नकली इंजेक्शन थमा कर चल देते हैं।
बता दें कि लखनऊ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में इस समय रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी का बाजार गर्म है। अस्पताल में मरीज के काफी प्रयासों के बाद भर्ती होते ही डॉक्टर रेमडेसिविर इंजेक्शन का इंतजाम करने का फतवा सुना देते हैं। इसके बाद मेडिकल स्टोरों पर स्टाक में नहीं है सुनने के बाद आम आदमी इस इंजेक्शन की तलाश में जुट जाता है। जहां पर जैसे भी मिले की धुन में वह दवा माफिया के शिकंजे में फंस जाता है। कंपनियों ने कह तो दिया की हम सीधे रेमडेसिविर इंजेक्शन मरीज तक 24 घंटे में पहुंचा देंगे लेकिन जब उनसे बात की जाती है तो वह स्टाक में न होने का रोना रो देती हैं।
इस बीच इंटरनेट पर जाल बिछाए दवा माफिया के मजबूत जाल में आदमी फंस जाता है। जहां चार हजार के इंजेक्शन के छह इंजेक्शन की कीमत 30 हजार से लेकर एक लाख तक बताकर पैसे ट्रांसफर करवा लिये जाते हैं और उसके बाद न तो इंजेक्शन मिलता है न ही दिये गए मोबाइल नंबर पर बात हो पाती है। इन ठगों ने जानी मानी कंपनियों के नाम पर फेक अकाउंट बना लिए हैं और ठगी को अंजाम दे रहे हैं।
इतने हुए गिरफ्तार
ताजा मामला मेरठ के सुभारती मेडिकल कालेज का है जहां रेमडेसिविर इंजेक्शन के नाम पर मरीज को पानी का इंजेक्शन लगा दिये जाने का मामला सामने आया है। मरीज की मौत के बाद आठ कर्मचारी गिरफ्तार हुए हैं। इससे पहले भी कई डॉक्टर व मेडिकल स्टॉफ के लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। सरकार इंजेक्शन व आक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों पर रासुका लगाने की बात कर रही है लेकिन इनका धंधा बदस्तूर जारी है। जबकि विशेषज्ञों ने रेमडेसिविर के अलावा अन्य सस्ती दवाओं को देने की सलाह दी है जो इतनी ही कारगर हैं लेकिन कमाई का जरिया बने रेमडेसिविर इंजेक्शन के प्रति डॉक्टरों का प्रेम कम नहीं हो रहा है। इसके पीछे डॉक्टरों की कमीशनखोरी भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है।
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