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एनटीपीसी हादसा : किसकी जिद ने लील लीं इतनी जिंदगियां?
अनुराग शुक्ला/राजकुमार उपाध्याय
रायबरेली। एक धमाके ने यहां दुनिया बदल दी। इस धमाके के लिए एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन) के वो हुक्मरान जिम्मेदार हैं जिन्होंने न जाने किसे खुश करने के लिए संयत्र की छठी यूनिट को जल्दबाजी में चलाने और चलाए रखने की जिद पाल ली थी। ऐसे हुक्मरान जिन्हें ब्वायलर में दबाव 7000 फीसदी बढ़ जाने पर भी ब्वायलर की स्थिति का अंदाजा ही नहीं मिला। ऐसे हुक्मरान जिन्होंने खराब कोयला मिलने के बाद भी उसकी शिकायत दर्ज नहीं करायी बल्कि मुंह पर ताला लगा कर क्लिंकर बनाने वाले कोयले से ही इस ब्यालर को चलाए रखा।
ऐसे हुक्मरान जिन्होंने हार्पर ऐश डक्ट दो दिन से भर जाने के बाद भी संयंत्र को ठीक करने की सामान्य बात को नजरअंदाज कर दिया। ऐसे हुक्मरान जिन्होंने क्लिंकर बनने और ट्रिपिंग सिस्टम के काम न करने जैसी गंभीर समस्या को अपनी जिद के आगे बौना साबित कर दिया। अगर हुक्मरान किसी को खुश करने की जिद न पालते तो शायद तमाम घरों को रौशन करने वाले ऊंचाहार के एनटीपीसी के प्लांट के धमाके सेे सैकड़ों परिवारों की जिंदगियों में अंधेरा न होता।
इस हादसे ने प्रदेश में चल रहे बिजली संयंत्रों में सुरक्षा मानकों पर भी सवाल उठा दिए हैं।
सवाल इस जिद पर भी है कि क्या 12000 मेगावाट की मांग वाले इस प्रदेश में 170 मेगावाट की बिजली पैदा करने के लिए संचालन में हर तरह की सुरक्षा को अनदेखा किया गया। प्लांट का संचालन और मेंटेनेंस का काम साथ चलाया जा रहा था। गौरतलब है कि इस छठी यूनिट का जो ब्वायलर फटा है उससे महज 170 मेगावाट बिजली बनायी जाती है। जिसे बंद कर अगर साफ किया जाता तो शायद यह घटना रोकी जा सकती थी।
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दरअसल इस प्लांट को शुरू करने से लेकर ही जल्दबाजी दिखाई देती है। किसी भी पावर प्लांट की यूनिट को समान्यत: 1 साल के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) दिया जाता है। यह प्रमाण पत्र श्रम विभाग के निदेशक ब्वायलर के कार्यालय से दिया जाता है। उत्तर प्रदेश श्रम विभाग के उपनिदेशक ब्वायलर आर के पुरवे बताते हैं, ‘सामान्यत: एक साल के लिए पावर प्लांट के ब्वायलर को सर्टिफाइ किया जाता है। इस ब्वायलर को छह महीने की ही एनओसी और सर्टिफिकेशन दिया गया था जिसकी मियाद 26 दिसंबर, 2017 तक ही है।’ यानी इस ब्वायलर को लगाने के लिए छह महीने के सर्टिफिकेशन से काम चला लिया गया।
अपना भारत को मिली जानकारी के मुताबिक बिजली उत्पादन का इस बार का लक्ष्य 50000 मेगावाट का था। इस यूनिट की उत्पादन क्षमता 500 मेगावाट की है। लक्ष्य के सापेक्ष देश भर में इस यूनिट के शुरू होने से पहले 49600 मेगावाट नई बिजली बनाई गई थी। सवाल यह भी उठता है कि क्या 500 मेगावाट की यह यूनिट को 6 महीने का एनओसी मिलने पर भी इसी वजह से शुरू तो नहीं किया गया।
अगर इसके संचालन की बात की जाए तो बिजली से जुड़े हर संयंत्र पर ट्रिपिंग मैकेनिज्म होता है। दिए गये लोड से ज्यादा होते ही संयत्र स्वत: बंद हो जाता है। जैसे कि घर में लगी एमसीबी जो किसी शार्ट सर्किट या हाई वोल्टेज पर बिजली बंद कर देती है। लेकिन इस संयत्र में या तो ट्रिपिंग मेकेनिज्म नहीं था या फिर वह काम नहीं कर रहा था। प्रेशर बढ़ते ही इसे ट्रिप हो जाना चाहिए था। ब्वायलर में अगर प्रेशर की बात की जाय तो +5 या -5 एमएमडब्ल्यूएच (+5/-5MMWH) तक ही उतार चढ़ाव मंजूर है। ‘अपना भारत’ को मिली जानकारी के मुताबिक जिस समय धमाका हुआ उस समय प्रेशर बढक़र +345 एमएमडब्ल्यूएच (+345 MMWH) तक बढ़ गया था। ऐसे में ट्रिपिंग मैकेनिज्म काम क्यों नहीं कर पाया।
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू कि कोई भी बिजली संयंत्र जब चलता है कि उसके आस पास बहुत से सारे मजदूर नहीं होते। इस यूनिट के परिसर में 250 मजदूर, कर्मचारी, अफसर क्या कर रहे थे। क्या ऐसा तो नहीं कि संयंत्र बिना बंद करे चलाने की जिद के चलते इस ब्वायलर के परिसर में ही अनुरक्षण या फिर इन्सूलेशन का काम चल रहा था।
सबसे महत्वपूर्ण वजह जो बताई जा रही है, और शायद सरकारी जांचों में जो वजह सामने आएगी वह यह कि इस ब्वायलर में क्लिंकर बन गये थे। क्लिंकर यानी कोयले और राख के ऐसे गोले जो जमकर रोड़े बन जाते हैं और रुकावट पैदा करते हैं। इसके अलावा हार्पर ऐश यानी कोयला जलने के बाद की राख जिसने इतनी जानें ले लीं वह आउट डक्ट में जम गयी थी। यानी राख बाहर निकालने वाली नली में राख जम गयी थी जिससे प्रेशर बढ़ गया।
‘अपना भारत’ को मिली जानकारी के मुताबिक यह समस्या वहां पर धमाके के दो दिन पहले से हो रही थी पर संयत्र न रोकने की जिद में किसी तरह की कार्यवाही ठीक से प्लान नहीं की गयी। इस समय प्रदेश में 12 हजार मेगावाट की जरूरत है। ऐसा मौसम भी है कि न सी न ही हीटर की जरूरत है। सयंत्र के इस ब्वायलर के जरिए महज 170 मेगावाट बिजली ही बन रही थी। ऐसे में अगर इसे रोककर 1 दिन में अनुरक्षण का काम करा दिया जाता तो शायद धमाके में जिंदगियों की आवाज गुल न हो जाती।
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इस मामले पर आल इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे का मानना है, ‘बिजली जैसे जटिल तकनीकी क्षेत्र में सुरक्षा मानकों को ताक पर रख कर कार्य कराये जा रहे हैं जिससे स्वतंत्र भारत में पावर प्लांट की सबसे वीभत्स घटना हो गयी। अब यह जरूरी हो गया है कि सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन किया जाये, ऊंचाहार दुर्घटना की उच्च स्तरीय तकनीकी जांच करायी जाये और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।’
वैसे यह संगठन खुद भी एक स्वतंत्र जांच कर रहा है जिसकी रिपोर्ट केंद्रीय बिजली मंत्री को भेजी जाएगी। शैलेंद्र दुबे ने मारे गये मजदूरों का मुआवजा 1 करोड़ और हर परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी की मांग की है। वैसे तो इस घटना पर अभी सियासत जांच और रिपोर्टों की झड़ी लगने वाली है पर सवाल यह भी है कि किसकी जिद ने इतनी जिंदगियां लील ली।