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Sonbhadra: 1800 मिलियन वर्ष पुराने पत्थरों के संरक्षण के लिए लगा बोर्ड, इको टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा

Sonbhadra के म्योरपुर ब्लाक के मुर्धवा और जमतिहवा नाला के पास वैज्ञानिकों को अध्ययन में चार बार धरती के उलट-पुलट होने के प्रमाण मिले थे। अब उस जगह के संरक्षण की पहल शुरू हो गई है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 27 Oct 2022 7:49 PM IST (Updated on: 27 Oct 2022 10:57 PM IST)
board set up for the protection of 1800 crore year old stones in sonbhadra
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समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गोंड़ और दुद्धी विधायक राम दुलार गोंड़ एवं अन्य 

Sonbhadra News : सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लाक के मुर्धवा और जमतिहवा नाला के पास वैज्ञानिकों को अध्ययन में चार बार धरती के उलट-पुलट होने के प्रमाण मिले थे। अब उस जगह के संरक्षण की पहल शुरू हो गई है। डीएफओ रेणुकूट मनमोहन मिश्रा (DFO Renukoot Manmohan Mishra) की ओर से दोनों जगहों पर संरक्षण से जुड़े बोर्ड लगाए गए हैं। गौरतलब है कि, बीते दिनों भारत, बांग्लादेश और अमेरिका के 60 सदस्यीय वैज्ञानिकों के दल ने इस इलाके का दौरा कर अध्ययन किया था। तभी, उन्होंने इसके संरक्षण की बात की थी।

इसी कड़ी में आज मोटी रस्सी के जरिए संबंधित पत्थरों से जुड़े इलाके की घेराबंदी की गई। अब इस एरिया को 'ईको टूरिज्म' (Eco tourism) से जोड़ने की पहल की जाएगी। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस अनमोल धरोहर की जानकारी मिले। साथ ही, उन्हें नजदीक से इसे देखने का मौका मिले।


राज्यमंत्री और विधायक ने किया बोर्ड का अनावरण

समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गोंड़ और दुद्धी विधायक राम दुलार गोंड़ ने गुरुवार को मुर्धवा नाले के समीप वन विभाग की तरफ से लगाए गए बोर्ड का फीता काटकर उद्घाटन किया। विशेष चट्टानों का अवलोकन करते हुए अपनी तरफ से भी इस महत्वपूर्ण धरोहर के संरक्षण के लिए पहल की बात कही।

महाकौशल समुद्र के तलछट से निर्मित हुई है चट्टानें

बताते चलें कि बीएचयू के प्रोफेसर वैभव श्रीवास्तव (BHU Professor Vaibhav Srivastava) की अगुवाई में भारत-बांग्लादेश और अमेरिका के 60 सदस्यीय वैज्ञानिकों के दल ने मुर्धवा और जमतिहवा नाले का पिछले दिनों निरीक्षण किया था। दावा किया गया था कि दोनों नालों में पाए गए जीवाश्म रूपी पत्थर दुनिया के सबसे प्राचीनतम चट्टानों में एक हैं। यह भी दावा किया गया था कि इन चट्टानों में धरती के चार बार उलट-पुलट होने के प्रमाण छिपे हुए हैं। भू वैज्ञानिकों के दावे के अनुसार यहां के चट्टानों की उत्पत्ति 1800 मिलियन वर्ष पूर्व महाकौशल नामक समुद्र में तलछटों के आरंभिक क्षैतिज जमाव के साथ हुई थी।

खनन या अतिक्रमण पर प्रतिबंध

इसे लेकर प्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन मिश्रा का कहना था कि, 'चट्टानों पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने पत्थरों के संरक्षण की बात कही थी, जिसको लेकर पहल शुरू कर दी गई है। यहां किसी भी प्रकार का खनन या अतिक्रमण नहीं होने दिया जाएगा। सरकार इको टूरिज्म पर खासा ध्यान दे रही है। इस इलाके को भी इको टूरिज्म से जोड़ा जाएगा।'



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Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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