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Jhansi News: झाँसी के उल्दन गांव में मृत्युभोज का बहिष्कार, मरने के बाद परिवार ने भोज कराया तो लगेगा जुर्माना
Jhansi News Today: यह फैसला झाँसी के बंगरा विकास खंड के उल्दन गांव में अहिरवार समाज के लोगों ने लिया है। इस गांव में अहिरवार समाज के लोगों की आबादी पांच हजार के करीब है।
Jhansi News: अहिरवार समाज के लोगों ने तय किया है कि परिवार के किसी सदस्य की मौत के बाद वे मृत्यु भोज का आयोजन नहीं करेंगे। इस समाज के लोगों ने यह भी निर्णय लिया है कि जो लोग इस बात को नहीं मानेंगे और मृत्युभोज का आयोजन करेंगे, उन पर जुर्माना लगाकर सामाजिक दंड देते हुए उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा। यह फैसला झाँसी के बंगरा विकास खंड के उल्दन गांव में अहिरवार समाज के लोगों ने लिया है। इस गांव में अहिरवार समाज के लोगों की आबादी पांच हजार के करीब है।
गांव में रहने वाले कालूराम कहते हैं कि हमारे गांव में कई ऐसी घटनाएं हुई, जब 20 से 35 साल के लड़के दुर्घटना में या किसी बीमारी से मर गए। इनके इलाज पर झाँसी से लेकर ग्वालियर तक पूरा पैसा खर्च हो गया। परिवार के लोग टूट गए लेकिन इसके बाद भी इन पर दबाव रहता था कि समाज को तेंरहवीं का भोज कराया जाए। कई लोगों को कर्ज लेना पड़ा तो कई को जमीन बेचनी पड़ी। इन सब घटनाओं को देखकर समाज ने तय किया कि अब इस प्रथा का ही त्याग कर दिया जाए। कालूराम जोर देते हुए कहते हैं कि जो तेंरहवीं का भोज करेगा, उस पर दंडा लगेगा और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा।
पांच सौ से अधिक परिवारों के हस्ताक्षर
गांव में रहने वाले भगवत प्रसाद भी उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने इस प्रथा का त्याग करने के लिए मुहिम की शुरुआत की। भगवत बताते हैं कि गांव में उनकी किराना की दुकान है। एक तेरहवीं भोज के लिए लोग जितना सामान उनसे खरीद कर ले जाते थे, उस पर चार से पांच हजार रुपये की बचत हो जाती थी। इसके बावजूद वे इस प्रथा को बंद करने के समर्थक हैं। इस अभियान में अभी तक पांच सौ ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर कराए गए हैं। गांव में समाज के उन लोगों को भी समझाने की कोशिश हो रही है, जो अभी तक इस निर्णय से सहमत नहीं हैं। भगवत यह भी दावा करते हैं कि दूसरे समाज के लोग भी उनका समर्थन कर रहे हैं।
इस मुहिम को दूसरे गांवों में ले जाने की कोशिश
सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त दयाराम राम वर्मा बताते हैं कि उल्दन में चार मोहल्ले हैं, जिनमें उनके समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं। सभी मोहल्लों में लोगों के साथ बैठक हुई और सबने समर्थन किया है। कुछ लोग हैं, जो अभी सहमत नहीं हैं। हम उन्हें भी अपनी मुहिम से जोड़ने और समझाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरे गांव में जाकर लोगों को प्रेरित करेंगे और इस कुप्रथा का विरोध करने को कहेंगे। हमारे इस अभियान में बड़ी संख्या में पढ़े लिखे नौजवान भी साथ हैं। हम सबने उन परिवारों की बर्बादी देखी हैं, जिन्हें मजबूरी में अपनी जमीनें बेचनी पड़ी और कर्ज लेना पड़ा।
झाँसी में चर्चा का विषय
उल्दन गांव के अहिरवार समाज के लोगों का मृत्युभोज के बहिष्कार का यह निर्णय इस समय आसपास के बड़े इलाके सहित पूरे झाँसी जिला में चर्चा का विषय है। निर्णय के पक्ष और विपक्ष में लोग अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। इन सबसे बीच जिस समूह ने इस प्रथा के बहिष्कार का एेलान किया है, वह बेहद मजबूती के साथ अपने निर्णय के साथ है। गांव के बुजुर्ग जगदीश बाबा कहते हैं, तेरहवीं के भोज के लिए जमीन बेचना पड़ता है। समाज बर्बाद हो रहा हैं। हमने यह सब रोक दिया है। समाज को बर्बाद नहीं होने देंगे।