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Tokyo Paralympics: 8वें नंबर पर रहे इटावा के अजीत सिंह, दोस्त को बचाते हुए ट्रेन हादसे में गंवाया हाथ, इनके बारे में जानें सबकुछ

Tokyo Paralympics: उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले एथलीट डॉक्टर अजीत सिंह टोक्यो पैरालंपिक में आठवें स्थान पर रहे।

Uvaish Choudhari
Published on: 31 Aug 2021 12:30 AM GMT (Updated on: 31 Aug 2021 12:30 AM GMT)
tokyo paralympic 2020
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मैच के दौरान अजीत सिंह (फोटो: सोशल मीडिया)

Tokyo Paralympics: उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले एथलीट डॉक्टर अजीत सिंह टोक्यो पैरालंपिक में आठवें स्थान पर रहे। लेकिन अजीत सिंह का टोक्यो पैरालंपिक में अब तक का सफर प्रेरणादायक है। अजीत सिंह ने बीजिंग में विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रां प्री में गोल्ड मेडल और दुबई में आयोजित विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। लेकिन वह टोक्यो पैरालंपिक में जेवलिन थ्रो इवेंट में पदक नहीं जीत पाए। अजीत की बहनों और दादा को उम्मीद है कि वह अगले पैरालंपिक और विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतेंगे।

पैरालंपिक खेलों में भाग लेने वाला हर एथलीट अपने प्रदर्शन से दुनिया को लगातार प्रेरित और उत्साहित करता है और कभी न हार मानते हुए लगातार आगे बढ़ता रहना चाहिए। इन सारी बातों पर इटावा के लाल अजीत सिंह बिल्कुल खरे उतरते हैं जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति की वजह से अपना एक हाथ गंवाने के बाद भी हार नहीं मानी।
ग्वालियर के लक्ष्मी बाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिज़िकल एजुकेशन से फिज़िकल एजुकेशन में पीएचडी करने वाले एथलीट डॉक्टर अजीत सिंह ने ट्रेन यात्रा के दौरान एक हादसे में अपने एक दोस्त की जान बचाते हुए अपना बाया हाथ गवा दिया था, लेकिन उस हादसे के बाद अजीत ने हार नहीं मानी और सिर्फ 1 साल 6 माह बाद ही बीजिंग में वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतकर सबको चौंका दिया था।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अजीत का बचपन बेहद ही गरीबी में बीता, लेकिन खेलों की प्रति ललक और मेहनत ने 2017 ट्रेन हादसे के बाद भी अजीत को टोक्यो पैरालंपिक तक पहुंचा दिया। 5 सितंबर 1993 को इटावा के भरथना में जन्मे अजीत सिंह के पिता किसान और दादा शिक्षक थे। घर की माली हालत बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थी अजीत के एक बड़े भाई जो सीमा सुरक्षा बल में तैनात हैं तो वहीं दो बहन हैं। बचपन से अजीत की बड़े भाई को एथलीट प्रतियोगिता में भाग लेता देखकर खेलों में रुचि बढ़ गई।
इंटर मीडिएट तक की शिक्षा गांव में ही करने के बाद खेलों के प्रति रुचि की वजह अजीत ने ग्वालियर में शारीरिक शिक्षा के लिए प्रसिद्ध संस्थान लक्ष्मी बाई नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन में बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन में दाखिला लिया। मास्टर ऑफ फिजिकल एजुकेशन करने के बाद फिजिकल एजुकेशन में ही पीएचडी की डिग्री हासिल की।
खेलों के प्रति रुचि होने के साथ ही पढ़ाई में भी अजीत काफी मेहनती थे। अपनी इसी लगन की वजह से वह 16 घंटे लगातार पढ़ाई करते हुए पीएचडी की डिग्री हासिल की। दिसंबर 2017 में दोस्तों के साथ ट्रेन में सफर करते हुए एक हादसा हो गया जिसमें मित्र की जान बचाने को लेकर अजीत ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी और दोस्त की जिंदगी बचाते हुए अपना बाया हाथ गवां दिया। लेकिन इतना बड़ा हादसा भी अजीत के मनोबल को नहीं तोड़।
अजीत 4 महीने बिस्तर पर आराम करने के बाद पंचकूला हरियाणा में आयोजित सीनियर नेशनल पैरा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मैदान में उतर गए। यही नहीं अजीत ने इस प्रतियोगिता में पहला नंबर हासिल कर अंतरराष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत की। इसके बाद चीन में आयोजित सातवें वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में जैवलिन थ्रो में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए गोल्ड मेडल जीतकर सबको चौंका दिया। इसके बाद दुबई में आयोजित वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स मीट प्रतियोगिता में कांस्य पदक हासिल कर टोक्यो पैरा ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था।
खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने की वजह से मध्य प्रदेश सरकार ने अजीत को और बेहतर प्रैक्टिस करने एवं सुविधाएं देने के लिए 6 लाख रुपए प्रोत्साहन के तौर पर दिए थे, लेकिन अजीत ने उस रकम को वापस कर दिया सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अपने प्रदेश उत्तर प्रदेश से आगे अपना करियर चालू रखना चाहते हैं, लेकिन अजीत के दादा की मानें तो उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से अभी तक प्रैक्टिस एवं सुविधा के लिए कोई मदद नहीं मिल सकी है। कोरोना की वजह से अजीत को प्रैक्टिस में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सबको उम्मीद थी अजीत टोक्यो पैरालंपिक भी पदक जीतेंगे, लेकिन उनको सफलता न



Dharmendra Singh

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